परमेश्वर के साथ बातचीत करना
हमने देखा कि यह महज़ एक कल्पना करने की बात नहीं है। दरअसल, मूसा ने वाकई परमेश्वर से बातें की थीं। हमारे बारे में क्या? अब परमेश्वर इंसानों से बातें करने के लिए अपने फरिश्ते नहीं भेजता। लेकिन आज हमारे साथ बातचीत करने का परमेश्वर के पास एक बेहतरीन ज़रिया है। हम परमेश्वर की बातें कैसे सुन सकते हैं? पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है, इसलिए जब हम उसका वचन बाइबल पढ़ते हैं, तो हम परमेश्वर की बातें सुन रहे होते हैं। भजनकार ने परमेश्वर के सेवकों से गुज़ारिश की कि वे “रात दिन” उसका वचन पढ़ें। इसके लिए हमें बहुत यत्न करने की ज़रूरत होगी। लेकिन हमारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। क्योंकि जैसा बाइबल हमारे स्वर्गीय पिता की तरफ से एक अनमोल खत की तरह है। तो इसे पढ़ना सिर्फ एक खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए। इसे पढ़ते वक्त हमें इसे सजीव बनाने की कोशिश करनी चाहिए। हम यह कैसे कर सकते हैं? बाइबल की घटनाओं को पढ़ते वक्त कल्पना कीजिए कि आप खुद वहाँ मौजूद हैं। उसमें बताए किरदारों को देखने की कोशिश कीजिए। उनकी संस्कृति, उनके हालात, और उनके इरादों को समझने की कोशिश कीजिए। उसके बाद जो आपने पढ़ा है उस पर गहराई से सोचिए। खुद से ऐसे सवाल पूछिए यह घटना मुझे परमेश्वर के बारे में क्या सिखाती है? मैं उसके किस गुण को यहाँ देख सकता हूँ? परमेश्वर कौन-सा सिद्धांत मुझे सिखाना चाहता है और मैं इसे अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकता हूँ?’ पढ़िए, मनन कीजिए और उस पर अमल कीजिए। जब आप ऐसा करेंगे, तो परमेश्वर का वचन पढ़ने में और भी दिलचस्प लगेगा और उसमें जान आ जाएगी।परमेश्वर “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए भी हमसे बातें करता है। जैसे यीशु ने भविष्यवाणी की थी, संकट भरे इन अंतिम दिनों में, “समय पर . . भोजन” देने के लिए अभिषिक्त भाइयों से बना एक छोटा-सा


समूह ठहराया गया है। जब हम वे किताबें पढ़ते हैं जो हमें बाइबल का सही ज्ञान देने के लिए तैयार की जाती हैं और जब हम सभाओं और अधिवेशनों में हाज़िर होते हैं, तो हम इस समूह से आध्यात्मिक भोजन ले रहे होते हैं। ये समूह, मसीह का सेवक है, इसलिए बुद्धिमानी दिखाते हुए हम यीशु के शब्दों को ध्यान में रखेंगे चौकस रहो कि तुम किस रीति से सुनते हो? हमें बड़े ध्यान से इस दास की बातें सुननी चाहिए, क्योंकि हम जानते हैं कि यह हमसे बात करने का परमेश्वर का एक ज़रिया हैl लेकिन खुद परमेश्वर के साथ बातचीत करने के बारे में क्या? क्या हम परमेश्वर से सीधे-सीधे बात कर सकते हैं? यह विचार ही हमारे अंदर विस्मय और श्रद्धा की भावना भर देता है। मान लीजिए कि आप दुनिया के सबसे शक्तिशाली सम्राट के सामने जाकर उसे अपनी समस्याओं के बारे में बताना चाहते हैं, तो क्या उस तक पहुँचने में आप कामयाब हो सकेंगे? कई बार तो ऐसी कोशिश करना ही खतरे से खाली नहीं होता! एस्तेर और मोर्दकै के दिनों में अगर कोई इंसान फारस के सम्राट के सामने बिना इजाज़त पहुँच जाता, तो उसे अपनी जान से हाथ धोने पड़ सकते थे। अब ज़रा सोचिए, आप इस पूरे जहान के महाराजाधिराज के सामने हाज़िर होते हैं, जिसके सामने दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग ‘टिड्डियों के तुल्य हैं। क्या हमें उसके सामने जाने से खौफ खाना चाहिए? बिलकुल नहीं परमेश्वर ने हमें उस तक पहुँचने का एक ऐसा ज़रिया दिया है, जो सबके लिए खुला है और बेहद आसान है—प्रार्थना। यहाँ तक कि एक छोटा बच्चा भी प्रभु यीशु के नाम से पूरे विश्वास के साथ परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता है। साथ ही हम प्रार्थना में अपने दिल की गहरी बातें बता सकते हैं, उन विचारों के बारे में भी जो हमें घायल कर रहे हैं और जिनका शब्दों में बयान करना मुश्किल होता है। परमेश्वर से प्रार्थना करते वक्त लच्छेदार, आडंबरी भाषा का इस्तेमाल करने
और लंबी-लंबी बातें करने से कोई फायदा नहीं। दूसरी तरफ, हम परमेश्वर से कितनी देर तक और कितनी बार प्रार्थना कर सकते हैं, इसके लिए उसने कोई हद नहीं बाँधी गयी है। उसका वचन हमें उससे “निरन्तर प्रार्थना” करने के लिए उकसाता है। याद रखिए कि सिर्फ परमेश्वर को ‘प्रार्थनाओं का सुननेवाला’ कहा गया है और वह सच्ची हमदर्दी के साथ हमारी सुनता है। क्या वह अपने वफादार सेवकों की प्रार्थनाओं को सिर्फ बरदाश्त करता है? जी नहीं, बल्कि वह उनकी प्रार्थनाओं से प्रसन्न होता है। उसका वचन ऐसी प्रार्थनाओं की तुलना उस सुगंधित धूप से करता है, जिसकी सुख-दायक, मनमोहक खुशबू धूँए के साथ आसमान की तरफ उठती है। क्या यह जानकर हमें दिलासा नहीं मिलता कि हमारी प्रार्थनाएँ भी इस जहान के महाराजाधिराज के पास पहुँचती हैं और उसे सुख पहुँचाती हैं? इसलिए अगर आप परमेश्वर के करीब आना चाहते हैं, तो दीनता के साथ हर रोज़, कई बार उससे प्रार्थना कीजिए। उसके सामने अपना दिल खोल दीजिए; आपके मन में जो कुछ चल रहा है सब-का-सब उससे कह दीजिए, कुछ रख मत छोड़िए। अपने प्रभु यीशु के साथ अपनी चिंताएँ, अपनी खुशियाँ बाँटिए, उसे धन्यवाद और स्तुति दीजिए। ऐसा करने से आप दोनों के बीच का रिश्ता और भी मज़बूत होता जाएगा। प्रभु आप सब को आशीष देवे।
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