Monday, 29 October 2018

SAVARG KE BARE ME PURA JANKARI | स्वर्ग के बारे में सम्पूर्ण अध्ययन | स्वर्ग के बारे में A TO Z जानकारी | इस लेख को पठने के बाद स्वर्ग के बारे में आप सब कुछ जान जायेंगे |

स्वर्ग का सम्पूर्ण अध्ययन
          1. स्वर्ग क्या है ? 
स्वर्ग अति पवित्र स्थान है । जो हमारी आँखों वैज्ञानिक  
के दूरदर्शी यंत्रो से परे आकाश गंगाओं से ऊपर एक ऐसा
 स्थान है जंहा मनुष्यो के व इस संसार के हर एक ग्रह , 
नझत्र आकाशगंगाओं ओ अंतरीक्ष को बनाने वाले सर्वशक्तिमान,
सर्वक्षाता,सर्वकालिक,सर्वउपसिथति संसारकर्ता प्रभु परमेस्वर रहते है
( 1 राजा 8:30 ) स्वर्ग की अदभुत सिद्धता और महीमा अवणँनिय है ।
( कुरी. 2: 7-9 ) अर्थात मनुष्य अपने विवेक से स्वर्ग सम्पूर्ण वतांत नही 
कर सकता है परंतु भीर भी बाइबिल के अनुसार हम इसका वर्णन पाते है 
जिसे हम आगे देखेंगे ।
2. स्वर्ग और क्या कहलाता है ?
1) स्वर्ग प्रभु परमेस्वर का निवास स्थान है ( मत्ती 6: 9)
2) स्वर्ग में इमारत है ( 2 कुरी. 5: 1)
3) स्वर्ग ख़त्ता कहलता है ( मत्ती 3: 12 )
4) स्वर्ग पिता का घर कहलाता है ( यूहन्ना 14: 2 )
5 ) स्वर्ग विक्षाम का स्थान कहलाता है ( इब्रा 4 : 9)
3. स्वर्ग कब बनाया गया है ?
  स्वर्ग परमेस्वर द्वारा पहला निर्माण कार्य है । 
उतपति 1:1 - आदि में परमेस्वर ने स्वर्गो और पृथ्वी की रचना की ।
 ( अंग्रेजी kjv ) स्वर्ग का निर्माण अरबो खरबो वर्षो पहले
 परमेस्वर द्वारा किया गया है । इसी तरह परमेस्सर ने
 पृथ्वी को भी करोड़ो वर्ष पूर्व बनाया ।
4. स्वर्ग का आकार क्या है ?
स्वर्ग का आकार असीम है स्वर्ग का सिंहासन और पृथ्वी पैरों की 
चौकी है। जब मनुष्य परमेस्वर के घुटने तक अर्थात  पैरों 
की चौकी से बैठने से स्थान तक का ही पता नही लगा सकता 
है तो भीर परमेस्वर जंहा पर बैठा है उस स्थान का फैलाव
 कैसे माप सकता है ( यिर्मयाह 31: 37)परमेस्वर जिसे चाहे
 स्वर्गीय करा सकते है जैसा यशायाह यूहन्ना आदि को 
और इस परमेस्वर स्वर्ग एवं अपनी महिमा कर सकते है
प्रकाशित वाक्य 21 अनुसार कई लोग नए यरूशलेम को स्वर्ग
मान लेते है नया यरूशलेम स्वर्ग नही है परंतु स्वर्ग में ही विशवासियो
के लिये निर्माणधीन एक नगर है जिसमे यीशु मसीह हमारे लिए 
निवास हेतु भवन तैयार करवा रहे है । ( यूहन्ना 14: 1-3 )
5 . स्वर्ग में क्या है ?
स्वर्ग में परमेस्वर का राजासन सिंहासन है जिस पर वे विराजमान है । 
स्वर्ग में ऊंची इमारते है जीवन के जल की नदी है 12 महीने 12
प्रकार के फल देने वाले वक्ष है ( जीवन का वक्ष ) स्वर्ग में 
वातानुकूलीत वातावरण है ।न ठंड ना गर्मी ना बरसात
वहां सूर्य व चंद्रमा नही है परमेस्वर का तेज ही प्रकाशित है ।
स्वर्ग में ही किसी हिस्से में निर्माणधिन नया यरुशलेम भी है ।
( जिसके बारे में हम आगे विस्तार पूर्वक समझेगे )
6. स्वर्ग क्यो बनाया गया ?
परमेस्वर के स्वर्ग बनाने का कारण परमेस्वर द्वारा रचित मनुष्यो व 
स्वर्गदूतों को अपनी ऊपस्थिती में एकत्रित कर संगति करना था ।
.शैतान मनुष्य की सृष्टि के पूर्व प्रधान स्वर्गदूत था जिसे परमेस्वर
 से अधिकार व उत्तरदायित्व प्राप्त था वह धर्मी स्वर्गदूत था पर
 ( यहेजकेल 8 :14,13) वह अपने आप की सुंदरता व लेंन देंन के
 चलते घमंट से परिपूर्ण होकर परमेस्वर से ऊंचा होने की कामना
 करने लगा ( यशायाह 14:13-14 , यहेजकेल 28:15-18 ) जिसकी
 वजह से वह परमेस्वर द्वारा स्वर्ग से अपने साथी दूतो सहित
 निकाल दिया गया ( यहेजकेल 28: 16-17 प्रकाशित वाक्य 12:4)
 शैतान के मन के घमंड ने उसे परमेस्वर की संगति से दूर कर दिया
 नहीं तो वह प्रभु के साथ उपस्थिती में बना रहता ।
.परमेस्वर ने अदन के बगीचे में मनुष्य ( आदम हवा ) को रचा कारण
 यह था कि अदन में परमेस्वर की योजना को बिगाड़ने की कोशिश की 
और विचारों द्वारा मनुष्य को बहका कर परमेस्वर की संगती से दूर कर
 दिया ( उतपति 3 अध्यय ) इस तरह मनुष्य परमेस्वर से विमुख होकर
 पाप मुत्यु प्राप्त करने लगा । इसी कारण मनुष्य परमेस्वर के गुणो को 
( जीवन ) खोकर परमेस्वर से ( स्वर्ग से ) विमुख हो गया ।
.आज अदन स्वर्ग में है जंहा पर जीवन के फल का वृक्ष है और मसिह 
के विश्वासि भी जो सो गये है । वहा पर परमेस्वर की उपस्थिति व
 संगीत में है।तब से अब तक परमेस्वर के साथ परमेस्वर के 
आज्ञाकारी स्वर्गदूत वास करते है और वे लोग जो मसीह पर विस्वाश
 करते हुए जीवित करते रहते  सो गए है वो स्वर्ग में प्रभु की संगति
 में रहते है।यीशु पर विस्वाश करने वालो को छोड़ संसार के 
बाकी मनुष्य स्वर्ग में इसलिए नही है क्योंकि वे परमेस्वर को
 जानकर भी अंजान बन गये है ( रोमियों पहला अध्याय )
 तथा उन्होंने यीशु को ग्रहण नही किया ( यूहन्ना 3: 16 )
7. कितने स्वर्ग है ?
पौलुस प्रेरित एक घटना तीसरे स्वर्ग तक उठा लिये गये ।
 प्रेरित 14:19-20 प्रेरित 22:17 )यह दो वचन बताते है कि
 तीसरा स्वर्ग है इसका मतलब यह हुआ कि अवश्य है कि
 पहला व दूसरा स्वर्ग भी है ।
पहला स्वर्ग - तारा स्वर्ग है अर्थात पृथ्वी के ऊपर का वायुमंडलीय
 घेरा जिसमे नभचर व हवाई जहाज उङते है ।
दूसरा स्वर्ग - तारा मंडल स्वर्ग है अर्थात वायु मंडल के ऊपर
 अंतरिक्ष मे जंहा तक भी तारे ग्रह नक्षत्र उपग्रह गंगा पाई
 जाती है और वह स्थान भी जिस पर मनुष्य कई खोज कर रहा है 
तथा उपग्रह एवं अंतरिक्ष यानो को खोज हेतु भेज रहे है ।
तीसरा स्वर्ग - तारा मंडल स्वर्ग से ऊपर जहाँ परमेस्वर वास
 करते है परमेस्वर का स्वर्ग ( मत्ती 6:9 )

8. स्वर्ग कहां है ?
  स्वर्ग अंतरिक्ष  के पार सुदूर उत्तर की ओर है ऊपर
 अर्थात पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव ऊपर की ओर है शायद 
उसी दिशा में ऊपर की ओर।
9. स्वर्ग में कौन रहता है ?
1) पिता परमेश्वर स्वर्ग में रहते है । ( मत्ती 6: 9 )
2) यीशु वंहा रहते है ( प्रे के काम. 3:21, मत्ती 16: 19 )
3) स्वर्ग दुत वंहा रहते है ( मत्ती 18 : 11, मत्ती 26: 53)
  स्वर्ग में तीन प्रकार के स्वर्ग दूत है ।
1. साराप - इनके छ: पंख होते है और ये निरंतर परमेस्वर
 की उपस्थिति में खण्डे रहते है ( यशायाह 6:2)
2) करूब - इनके चार मुँह और चार पंख होते है । सामने का 
चेहरा करूब का दाहिना चेहरा सिंह का ,बाई ओर का बैल का और
 पीछे की ओर का गरुण का ।इनके हाथ मनुष्य जैसे व पैर बछड़े के
 खुर के समान होते है ।इनके शरीर पर सब ओर आंखे ही आँख होती है । 
( यहेजकेल 1: 5-25, 10 वा अध्याय ) करूबों की आकृति मूसा ने वाचा
 के संदुक पर बनवाया था ( व्यवस्थ वी 37: 1-9 )
 प्रकाशित वाक्य 4:6-8 में 6 पंखों वाले व सम्पूर्ण शरीर पर आंखों वाले
 स्वर्गदूतो का वर्णन है । जिनमे प्रत्येक स्वर्गदूतों के अलग अलग प्राणियो 
के मुंह है 1.सिंह 2. बैल 3.मनुष्य 4.गरुड़ के जैसा है ।
3) मनुष्य की तरह दिखने वाले स्वर्गदूत ( दानिएल 10:5-6,
 निर्गमन 18:1-33, प्रकाशित वाक्य 22:8-9 )
4) वे जो मसीह पर विस्वाश करते हुए मरे उनकी आत्माएँ वहा है ( 1थिस्स 4: 14 )
5) एलिय्याह व हनोक जो जीवित स्वर्ग उठा लिए गए वहा रहते है ( मत्ती 5:24, 2 राजा 2:11 )
6) वे लोग जिनकी आत्माएँ कैद थी स्वर्ग लोक में उन्हें यीशु ने 
छुटकारा दिया उनकी आत्माएँ स्वर्ग में है ।(1 पतरस 3:18 मत्ती 27: 52-53 )
10 ) मरने के बाद किस मनुष्य को स्वर्ग प्राप्त होगा ?
यूहन्ना 3 का 16 के अनुसार हर एक वह व्यक्ति स्वर्ग का वासी है
 जो विस्वाश करता है और आत्मा और पानी से जन्म लेता है 
युहन्ना 3 का 5 इसके साथ ही मन फिरा कर मसीह का अनुगमन करता है ।
मुनष्य को स्वर्ग उसके कर्म के द्वारा प्राप्त नही होता यह तो
 परमेस्वर का प्रेम है जो वह किसी मुनष्य को यीशु रूपी द्वारा के
 स्वर्ग से दया के द्वारा प्रवेश करवाता है। परमेस्वर नही चाहता कि 
कोई भी मनुष्य नरक जाए पतन्तु उनकी इच्छा है कि प्रत्येक मनुष्य पुत्र 
पर विस्वाश करने के द्वारा अनंत जीवन पाये ( यूहना 3 का 16 )
11) स्वर्ग का काल कितने समय का है ?
स्वर्ग का काल अनंत है जिसने स्वर्ग जाएंगे उन्हें अनंत
 जीवन प्राप्त होगा ( यूहन्ना 3 का 16 )
12) क्या विस्वशियो को स्वर्ग में 
प्रतिफल प्राप्त होगा ?
प्रत्येक विस्वशी कि यह आशा है कि प्रभु यीशु मसीह हमे 
लेने आने वाले है और हमे अपने साथ स्वर्ग ले जाएंगे ।
जब हम मसीह के साथ बादलो पर उठाए जा रहे होंगे तब 
पहले मुर्दे अविनाशी दशा में जीवित होंगे भीर जो जीवित है पलक
झपकते ही बदल जाएंगे ।अर्थात अविनाशी दशा को प्राप्त करेंगे ।( थीस्स 4: 16-17 )
यही वह समय होगा जब हमारा न्याय किया जाएगा ।
क्योकि अवश्य है कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के
सामने खुल जाए कि हर व्यक्ति अपने अपने भले बुरे कामो का
बदला जो उसने देह के द्वारा किए हो जाए ( 2 कुरु. 5:10 )

      धर्मियो के जी उठने पर उन्हें प्रतिफल प्राप्त होगा । ( लुका 14 का 14 )
 मसीह के सामने इस समय केवल विस्वासियो का ही न्याय
 किया जाएगा ।जब वे बादलो पर हमें लेने आयेंगे।
 इस न्याय में विस्वासियो के काम प्रगट किए जायेंगे 
विस्ववासियो ने जो भी पाप मसीह को ग्रहण करने से पहले किए
 है उनका लेख नही लिया जायेगा। ( इब्रानियों 10 का 17 )
 इब्रानियों 11 अध्याय विस्ववासियो को सिध्द रूप में दर्शाता है
 क्योंकि विस्ववासियो के पाप मसीह यीशु के लहू द्वारा ढाप दिए गए 
मसीह को ग्रहण करने के बाद  विस्ववासियो ने जो भी पाप किए है 
और उनका अंगीकार कर लिया है ऐसे पापो का न्याय नही किया जाएगा
 (1यूहन्ना 1:9 ) क्योकि अंगीकार किए हुए पाप सदा के लिए क्षमा किये जाते है
नौ बातो का न्याय -
1) हमारी शिक्षा, सिध्दांत व उपदेशों ( प्रचार ) का न्याय ( तितुस 1:9 )
2) हमारे व्यवहार का न्याय ( इफी.4:2, 25,32 रोमियो 15: 5,7,14 )
3) हमारे कार्यो का न्याय ( 1 कुरु 3: 13)
4) हमारे बातो का न्याय किया जाएगा ( मत्ती 12:36-37 )
5) हमारे विचारों का न्याय ( मत्ती 15: 19-20)
6) शारीरिक अभिलाषोलो का न्याय ( 1 कुरु. 9:27 , निटिव 16 :32 )
7) हमारे गुप्त बातो का न्याय किया जाएगा ( रोमियो 2: 16 ,लुका 18:17)
8) हमारे उददेश्यों का न्याय किया जाएगा
9) पवित्रता का न्याय ( इब्रा 12:1014 , थीस्स 4:3,7)
मन वचन और कर्म से विस्ववासियो से कितननी गलतिया 
होती है हम उन्हें कभी अंगीकार करते है कभी नही करते है
 कभी इस हेतु अवश्य ही सतर्क रहें।
   1) हम क्या सोच रहे है
2)  हम क्या कर रहे है गुप्त में या खुले रूप में
3 ) हम क्या कर रहे है और
4) हमारा मनसूबा कार्य करने का उद्देश्य सही है या नहीं ।
यह न्याय किस प्रकार होगा ?
तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा क्योंकि वह दिन उसे 
बताएगा इसलिए कि आग के साथ प्रगट होगा और वह आग
 हर एक का काम परखेगी की कैसा है जिसका काम उस पर बना
 हुआ स्थिर रहेगा वह मजदूरी पाएगा ।यदि किसी का काम जल 
जाएगा तो वह हानि उठाएगा पर वह आप बच जाएगा परन्तु 
जलते जलते ।( 1 कुरी 3: 13-15 )यह न्याय का सावर्जनिक बगैर
 भेदभाव का प्रदर्शन होगा । जो आग प्रगट होगी वह कामो को परखेगी 
आग में जो कार्य बच जाएंगे उनका प्रतिफल प्राप्त होगा और जो कार्य 
जल जाएगे वह व्यक्तिगत हानि उठाएंगे पर स्वयं बच जाएगा जलते जलते
 ।हानि उठाने से तातपर्य यह महसूस होता है कि ये विसवासी प्रतिफल
 प्राप्त नही कर सकेंगे जो उनके लिए शर्म का कारण होगा ( प्रकाशित वाक्य 21:24 )
  न्याय की आग में कौन कार्य जलेंगे और कौन से नही जलेंगे ?
1कुरु.3: 13 कहता है सोना चांदी बहुमूल्य पत्थर लकड़ी भूसा और ठूठ ।
. लकड़ी भूसा और ठूंठ ज्वलनशील जलने वाले पदर्थ है ।
ये विभिन्न कार्यो को दर्शाते हैं
1) आत्मा को शोकित करना 2) पाप 3) दुष्टता
4) लोभ 5) पद की भूख या लालसा
6) छल कपट
7) घुस  8) हर प्रकार के बेईमानी
9) डरा धमका कर लाभ लेना या दबाव पूर्वक कार्य करना।
10) घमंड 11) व्यभिचार 12) जीविका का घमंड
13 ) आखो की अभिलाषा
. सोना चांदी और बहुमूल्य पत्थर ना जलने 
वाले पदार्थ  है यह विभिन्न कार्यो को दर्शाते हैं-
1)नम्रता और दीनता मसीह के अनुसार 2) धार्मिक आचरण
 3) परमेस्वर और मनुष्य से ईमानदारी
4) धीरज के साथ रहने का गुण
5) विस्वाश का जीवन जीना
6) मेल मिलाप 7) प्रार्थना 9) दान 10) सुसमाचार
आज मसीहियों की आवश्यकता
1) मसीहियों को आवश्यता है कि वे अपने स्वयं का दैनिक आकलन
 कर अपने जीवन मे सुधार लाए और उद्धार के हर्ष में जिये।
2) प्रतिदिन बाइबल अध्ययन कर वचनों पर मनन करे और जीवन मे ढाले ।
3) प्रतिदिन प्रार्थना करे।
4) प्रभु की महान आज्ञा को पूरा करे।
13. स्वर्ग में प्रतिफल रूपी मुकुट
न्याय के बाद विस्ववासी प्रतिफल में 
निम्न मकुट अर्जित कर सकते है।
1) अविनाशी मकुट - (कुरु.9:24-27) यह मुकुट उन्हें प्राप्त होगा
 जो अपने पुराने स्वभाव पर ( शारीरिक व मानसिक स्वभाव )
 सयम रखते है । जय के जीवन के लिए।
2) आशा आनंद और बड़ाई का मुकुट -
  यह मुकुट उनके लिए है जो आत्माओ को जीतते है।
3) धमिरक्ता का मुकुट - यह मुकुट उनके लिए है जो प्रभु यीशु के
 आगमन से प्रेम रखते है और उन्हें उसके आने की आशा है।
4) जीवन का मुकुट - यह मुकुट उनके लिए है जो परीक्षा में
 स्थिर रहते है। और अंत तक विस्वाश योग्य रहते है।
5) महिमा का मुकुट- यह मुकुट उन प्राचीनों और डीकनो 
व सेवको के लिए है जो मसीही के झुंड की रखवाली शुध्द विवेक से करते है ।
यह मकुट शहीदों को भी प्राप्त होगा ।
6) सोने का मकुट - यह मुकुट सभी विस्ववासियो को मिलेगा। 
परतुं वे लोग जिनके काम जल जाएंगे और वे हानि उठाएंगे और खुद जलते
 जलते बच जायेगा।उन्हें कही इस मकुट की ही हानि ना उठाना पड़े ।
 भीर बाकी मुकुटों को छोड़ ही दे ।
14. स्वर्ग में हमारे शरीर कैसे होंगे ?
स्वर्ग में हमारी देह - महिमानिवत देह होगी। जिस प्रकार प्रभु 
यीशु की देह हिमामय देह हो गई थी और वे बंद द्वारा को पार करके चेलो के
 बीच आ गए । उसी प्रकार हम भी महिमामय हो जाएंगे और मसीह के सदश्य
 हो जाएंगे। उस समय हम स्वर्गदूतो के सदश्य दिखेंगे तथा मन की गति से 
विचरण करेंगे और एक दूसरे को स्पर्श भी कर सकेंगे जैसे थोमा ने प्रभु यीशु 
मसीह के तीसरे दिन जीवित हो उठने के बाद अविष्वास होने पर मसीह 
को स्पर्श किया था ।

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