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Monday, 1 April 2024

believers and faith vishvaasee aur vishvaas


साधारण शब्दों में प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने वाला विश्वासी है। विश्वास क्या है - विश्वास मनुष्य के मन,बुद्धि और शरीर की वह प्रक्रिया है, जिनमें मनुष्य अपने आप को किसी वस्तु व स्थिति में सीमित कर दे और यह निश्चय रखे कि केवल यही है जिसके द्वारा( मेरा) हर एक कार्य हो सकता है तथा यह आशा रखे कि मेरा कार्य हो जाएगा। इस प्रक्रिया में ऐसा होता है कि वह जिन बातों को नहीं जानता कि वे हैं या हो जाएँगी उसे क्रिया रुप में कहना और देखना प्रारंभ करता हैं। 





जब एक व्यक्ति जिसे यीशु मसीह की गवाही तथा सुसमाचार सुनाया जाता है तो यह सुनकर उसकी बातों पर विश्वास करता है। यह उसी प्रकार हैं जिस प्रकार एक सूबेदार जिसका सेवक बीमार था और उसने आकर यीशु से कहा - मेरा सेवक लकवे का मारा हुआ घर में पड़ा है और बहुत तकलीफ में है तब यीशु ने उससे कहा - मैं आकर उसे चंगा करूंगा। सूबेदार ने जवाब में कहा - हे प्रभु मैं इस लायक नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए परंतु केवल मुख ही से कही दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। ( मतती 8:6-8)

यह सूबेदार का ऐसा बड़ा विश्वास था जिसमें आशा और निश्चय की बहुतायत थी जिसके चलते प्रभु यीशु मसीह द्वारा वहीं से कहा गया और सूबेदार का सेवक चंगा हो गया। 

सूबेदार ने यीशु मसीह के बारे में एक  आशा जागृत किया और उसे निश्चय हुआ कि मेरे द्वारा यीशु से कहे जाने पर वह उसे चंगा करेगा। 

यह विश्वास हैं बगैर देखे विश्वास करना अर्थात सुनकर विश्वास करना। 

(2) दूसरा विश्वास हैं देखकर विश्वास करना। 

प्रभु यीशु मसीह के बारह चेले थे जिसमें से एक था थोमा। उसे जब  शेष 10 चेलो ने ( एक चेला यहूदा फांसी लगाकर मर गया था) बताया कि यीशु मसीह मुर्दो में जी उठा है तब थोमा ने कहा जब तक मैं उसके हाथों के छेद में ऊँगली और उसकी पसली में हाथ डालकर ना देख लूँ 
तब तक विश्वास ना करूंगा। थोमा अविश्वास में था कि यीशु मसीह मुर्दो में जी उठा है लेकिन हमारे प्रभु ने उसे दर्शन दिया और अविश्वास से विश्वास में लाया। तब उसने यीशु को अपना प्रभु और परमेश्वर स्वीकार किया। 

यह विश्वास हैं देखकर करना। आज भी हजारों लोग हैं जो अपने जीवन में यीशु के द्वारा दिए गए आश्चर्य कर्मो को नहीं लेते उसकी उपस्थिति को महसूस नहीं कर लेते तब तक वे उस पर विश्वास नहीं करते। 

विश्वासी कौन हैं? 

विश्वासी वह व्यक्ति हैं-

(1) जो मन से यह विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे यीशु को मरे हुओ में जिलाया हैं। ( रोमियो 10:9)

(2) और यीशु को अपना प्रभु जानकर अंगीकार ( कहें ) करें। ( रोमियो 10:9 )

( 3) अपना मन फिराकर परमेश्वर के पास आए ( मतती 3:2 )

यहाँ पर निम्न प्रकार की बातें हैं -



(1) लिखा है ( मन से यह विश्वास करें कि) परमेश्वर ने उसे मरों हुओ में जिलाया हैं। निश्चय, विश्वास के लिए प्रथम जरूरी बात है जब एक व्यक्ति को निश्चय हो जाता है कि यीशु मसीह को परमेश्वर ने मुर्दो में से जीवित कर दिया है। उस मनुष्य के मन में दूसरी आशा उतपन होती हैं। निश्चय के द्वारा वह व्यक्ति यह जान पाता है यीशु का लहू मुझे सब पापो से शुद्ध करता है वह मेरे लिए मारा गया है कि मैं जीवन पाऊँ और यीशु मेरे लिए जी उठा कि मैं हमेशा जिंदगी पाऊँ। 


(2) जब इस निश्चय के द्वारा वह व्यक्ति अपने मुँह से अंगीकार करता है कि परमेश्वर ही मेरा प्रभु और स्वामी है तब एक सेवक की आशा अपने स्वामी से प्रारंभ हो जाती है और मुँह से किया गया यह अंगीकार कि यीशु ही मेरा प्रभु है उसके जीवन में एक और आशा उतपन करता है कि यीशु जो शरीर स्वर्ग पर उठा लिया गया वह मुझे अपने साथ पिता के पास ले जाने आएगा जब वो आएगा तब मैं चाहें दफन ( गाड़ा) किया जाऊँ, चाहे जीवित होऊँ उठा लिया जाऊँगा और अविनाशी देह को धारण करूँगा। 

(3) जब जक्ई नाम महसूल ( कर)  लेने वाले व्यक्ति के घर यीशु मसीह गये तब एक बहुत बड़ा परिर्वतन जक्ई के जीवन में दिखाई दिया। वह धन जो उसने बहुत लोगों से जबरदस्ती करके लिया था, तथा पाप के द्वारा जमा किया गया था। बड़ा आश्चर्य। उसने वह धन जिस जिस से लिया था उनको चार गुना वापस किया जक्ई के मन में यीशु के आने से पापों के प्रति पश्चात उतपन हुआ और उसने अपने गुनाहो को तो मान ही लिया और जिसके प्रति गुनाह किया था उसने भी क्षमा के लिए उनका धन वापस दे दिया इसी तरह एक व्यक्ति के जीवन में जब प्रभु यीशु आ जाते हैं तब वह अपने किए हुए गुनाहों से पछताता हैं। मूर्तिपूजा, झूठ, जादूटोना, व्यभिचार, चोरी, लालच, बैर आदि पापों से और परमेश्वर की इच्छा के विरोध में किए गए कामों से और किसी भी मनुष्य का बुरा चाहकर किए गए कार्यो से पछताकर पश्चाताप करता है। तब उसके घर उद्वार और छुटकारा आता हैं। 




(1) एक चुना हुआ वंश - यदि हम अपनी वंशावली में जाए इस प्रकार जैसे मेरा नाम सौरभ है मेरे पिता का नाम माधव प्रसाद मेरे दादा का नाम राम प्रसाद उनके पिता का नाम रामलाल ये वंशावली मेरे परिवार की है जो इस तरह जाकर किसी ने किसी रूप में आदम से मिलती है। पहले आदम ने पाप किया और पाप के द्वारा अब तक मृत्यु सारी जाति पर कब्जा रखे हुए हैं। 

परंतु हमारे प्रभु यीशु पुनः जीवित होकर मृत्यु पर जयवंत हो गए और हमें इस जगत से आवाज देकर अलग किया जैसे कि लिखा है मेरी भेड़ मेरा शब्द सुनकर मेरे पीछे हो लेती है। हमने परमेश्वर के वचनों को सुना और यीशु मसीह के पीछे हो लिए। यीशु मसीह ने हमें जगत से चुनकर अपने वंस में शामिल किया और हमें अपनी संतान बनाया। ( यूहनां 1:12, 10:16)