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Wednesday, 7 May 2025

धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों? Dharmee Kee Pareeksha: Achchhaee ke Baavajood Duhkh kyon?

                           धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों?

 धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों -क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम भलाई करते हैं फिर भी हमारे जीवन में दुःख कठिनाई और अन्याय क्यों आता है?बाइबल में यह प्रश्न कई बार उठाया गया है। परमेश्वर के वचन में यह स्पष्ट है कि धर्मी व्यक्ति भी परीक्षाओं से नहीं बचता बल्कि वह उन परीक्षाओं के माध्यम से और अधिक मजबूत और सिद्ध बनता है

Dharmee Kee Pareeksha: Achchhaee ke Baavajood Duhkh kyon?


 धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों? 1. धर्मी भी क्यों पीड़ित होते हैं? भजन संहिता 34:19 — धर्मी बहुत क्लेश में होता है, परन्तु यहोवा उसको उन सब से छुड़ाता है।  इस वचन में स्पष्ट है कि धर्मी व्यक्ति क्लेशों से गुजरता है। यह इसलिए नहीं कि परमेश्वर उसे छोड़ देता है, बल्कि इसलिए कि वह उसे शुद्ध और सिद्ध बनाना चाहता है।
व्याख्या: दुनिया का न्याय व्यवस्था और परमेश्वर की योजना अलग होती है। परमेश्वर अपने बच्चों को कष्टों से नहीं बचाता, बल्कि उन कष्टों में उनके साथ चलता है और उन्हें निकालता है।

 धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों? 2. अय्यूब का जीवन: एक जीवित उदाहरण अय्यूब 1:1 - उत्स देश में अय्यूब नाम का एक पुरुष रहता था वह निष्कलंक और सीधा था और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था अय्यूब ने कभी किसी का बुरा नहीं किया, फिर भी उसके जीवन में ऐसी परीक्षा आई कि उसने सब कुछ खो दिया – संतानें धन स्वास्थ्य

व्याख्या: परमेश्वर ने शैतान को यह सिद्ध करने दिया कि सच्चे विश्वासियों की परीक्षा उन्हें गिराने के लिए नहीं बल्कि उन्हें और अधिक गहरा और विश्वसनीय बनाने के लिए होती है।

धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों?  3. यीशु मसीह का जीवन: परम उदाहरण 1 पतरस 2:22-23 - उसने न कोई पाप किया और न उसके मुंह से कोई छल की बात निकली जब उस पर निन्दा की गई तो उस ने उत्तर में निन्दा नहीं की जब वह दुःख उठा रहा था, तो धमकी नहीं दी  यीशु ने पूर्णतः भलाई की फिर भी क्रूस पर चढ़ाया गया।

व्याख्या: यीशु मसीह ने हमें यह रास्ता दिखाया कि सच्ची भलाई करने वालों को इस संसार से बदले में प्रशंसा नहीं, बल्कि विरोध भी मिल सकता है। लेकिन अंततः उन्हें परमेश्वर से महिमा मिलती है।

 धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों? 4. भलाई का फल देर से मिलता है पर मिलता अवश्य है गलातियों 6:9 - हम भलाई करते करते थकें नहीं क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे 

व्याख्या: जब हम अच्छाई करते हैं और तुरंत परिणाम नहीं देखते तब हमें धैर्य रखना चाहिए। परमेश्वर का समय हमारे समय से अलग है लेकिन वह न्यायी है

 धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों? 5. धर्मियों के आँसू गिनता है परमेश्वर भजन संहिता 56:8 - तू ने मेरे मारे फिरने का हिसाब रखा है मेरे आँसू अपनी कुप्पी में रख दे क्या वे तेरी पुस्तक में नहीं हैं?

व्याख्या: परमेश्वर आपके हर दुःख, हर आँसू, हर अन्याय को गिन रहा है। वह किसी भी भलाई को व्यर्थ नहीं जाने देता। वह न्याय करेगा – अपने समय पर, अपने ढंग से।


निष्कर्ष -  धर्मी की परीक्षा: अच्छाई के बावजूद दुःख क्यों?  धर्मी की परीक्षा उसका विनाश नहीं उसकी परिपक्वता लाती है
यदि आप अच्छाई के बदले बुराई का सामना कर रहे हैं तो याद रखें - आप अकेले नहीं हैं। परमेश्वर आपके साथ है और वह हर परीक्षा को आपके लिए आशीष में बदल सकता है

Prayer Vachan Hindi
हे प्रभु जब मैं भलाई के बाद भी दुःख झेलूं तो मुझे हिम्मत देना तू मेरे आँसू गिनता है तू मेरी लड़ाई लड़ता है मुझे विश्वास दे कि तू मेरी परीक्षा को मेरी गवाही बना देगा। आमीन

Monday, 1 April 2024

believers and faith vishvaasee aur vishvaas


साधारण शब्दों में प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने वाला विश्वासी है। विश्वास क्या है - विश्वास मनुष्य के मन,बुद्धि और शरीर की वह प्रक्रिया है, जिनमें मनुष्य अपने आप को किसी वस्तु व स्थिति में सीमित कर दे और यह निश्चय रखे कि केवल यही है जिसके द्वारा( मेरा) हर एक कार्य हो सकता है तथा यह आशा रखे कि मेरा कार्य हो जाएगा। इस प्रक्रिया में ऐसा होता है कि वह जिन बातों को नहीं जानता कि वे हैं या हो जाएँगी उसे क्रिया रुप में कहना और देखना प्रारंभ करता हैं। 





जब एक व्यक्ति जिसे यीशु मसीह की गवाही तथा सुसमाचार सुनाया जाता है तो यह सुनकर उसकी बातों पर विश्वास करता है। यह उसी प्रकार हैं जिस प्रकार एक सूबेदार जिसका सेवक बीमार था और उसने आकर यीशु से कहा - मेरा सेवक लकवे का मारा हुआ घर में पड़ा है और बहुत तकलीफ में है तब यीशु ने उससे कहा - मैं आकर उसे चंगा करूंगा। सूबेदार ने जवाब में कहा - हे प्रभु मैं इस लायक नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए परंतु केवल मुख ही से कही दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। ( मतती 8:6-8)

यह सूबेदार का ऐसा बड़ा विश्वास था जिसमें आशा और निश्चय की बहुतायत थी जिसके चलते प्रभु यीशु मसीह द्वारा वहीं से कहा गया और सूबेदार का सेवक चंगा हो गया। 

सूबेदार ने यीशु मसीह के बारे में एक  आशा जागृत किया और उसे निश्चय हुआ कि मेरे द्वारा यीशु से कहे जाने पर वह उसे चंगा करेगा। 

यह विश्वास हैं बगैर देखे विश्वास करना अर्थात सुनकर विश्वास करना। 

(2) दूसरा विश्वास हैं देखकर विश्वास करना। 

प्रभु यीशु मसीह के बारह चेले थे जिसमें से एक था थोमा। उसे जब  शेष 10 चेलो ने ( एक चेला यहूदा फांसी लगाकर मर गया था) बताया कि यीशु मसीह मुर्दो में जी उठा है तब थोमा ने कहा जब तक मैं उसके हाथों के छेद में ऊँगली और उसकी पसली में हाथ डालकर ना देख लूँ 
तब तक विश्वास ना करूंगा। थोमा अविश्वास में था कि यीशु मसीह मुर्दो में जी उठा है लेकिन हमारे प्रभु ने उसे दर्शन दिया और अविश्वास से विश्वास में लाया। तब उसने यीशु को अपना प्रभु और परमेश्वर स्वीकार किया। 

यह विश्वास हैं देखकर करना। आज भी हजारों लोग हैं जो अपने जीवन में यीशु के द्वारा दिए गए आश्चर्य कर्मो को नहीं लेते उसकी उपस्थिति को महसूस नहीं कर लेते तब तक वे उस पर विश्वास नहीं करते। 

विश्वासी कौन हैं? 

विश्वासी वह व्यक्ति हैं-

(1) जो मन से यह विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे यीशु को मरे हुओ में जिलाया हैं। ( रोमियो 10:9)

(2) और यीशु को अपना प्रभु जानकर अंगीकार ( कहें ) करें। ( रोमियो 10:9 )

( 3) अपना मन फिराकर परमेश्वर के पास आए ( मतती 3:2 )

यहाँ पर निम्न प्रकार की बातें हैं -



(1) लिखा है ( मन से यह विश्वास करें कि) परमेश्वर ने उसे मरों हुओ में जिलाया हैं। निश्चय, विश्वास के लिए प्रथम जरूरी बात है जब एक व्यक्ति को निश्चय हो जाता है कि यीशु मसीह को परमेश्वर ने मुर्दो में से जीवित कर दिया है। उस मनुष्य के मन में दूसरी आशा उतपन होती हैं। निश्चय के द्वारा वह व्यक्ति यह जान पाता है यीशु का लहू मुझे सब पापो से शुद्ध करता है वह मेरे लिए मारा गया है कि मैं जीवन पाऊँ और यीशु मेरे लिए जी उठा कि मैं हमेशा जिंदगी पाऊँ। 


(2) जब इस निश्चय के द्वारा वह व्यक्ति अपने मुँह से अंगीकार करता है कि परमेश्वर ही मेरा प्रभु और स्वामी है तब एक सेवक की आशा अपने स्वामी से प्रारंभ हो जाती है और मुँह से किया गया यह अंगीकार कि यीशु ही मेरा प्रभु है उसके जीवन में एक और आशा उतपन करता है कि यीशु जो शरीर स्वर्ग पर उठा लिया गया वह मुझे अपने साथ पिता के पास ले जाने आएगा जब वो आएगा तब मैं चाहें दफन ( गाड़ा) किया जाऊँ, चाहे जीवित होऊँ उठा लिया जाऊँगा और अविनाशी देह को धारण करूँगा। 

(3) जब जक्ई नाम महसूल ( कर)  लेने वाले व्यक्ति के घर यीशु मसीह गये तब एक बहुत बड़ा परिर्वतन जक्ई के जीवन में दिखाई दिया। वह धन जो उसने बहुत लोगों से जबरदस्ती करके लिया था, तथा पाप के द्वारा जमा किया गया था। बड़ा आश्चर्य। उसने वह धन जिस जिस से लिया था उनको चार गुना वापस किया जक्ई के मन में यीशु के आने से पापों के प्रति पश्चात उतपन हुआ और उसने अपने गुनाहो को तो मान ही लिया और जिसके प्रति गुनाह किया था उसने भी क्षमा के लिए उनका धन वापस दे दिया इसी तरह एक व्यक्ति के जीवन में जब प्रभु यीशु आ जाते हैं तब वह अपने किए हुए गुनाहों से पछताता हैं। मूर्तिपूजा, झूठ, जादूटोना, व्यभिचार, चोरी, लालच, बैर आदि पापों से और परमेश्वर की इच्छा के विरोध में किए गए कामों से और किसी भी मनुष्य का बुरा चाहकर किए गए कार्यो से पछताकर पश्चाताप करता है। तब उसके घर उद्वार और छुटकारा आता हैं। 




(1) एक चुना हुआ वंश - यदि हम अपनी वंशावली में जाए इस प्रकार जैसे मेरा नाम सौरभ है मेरे पिता का नाम माधव प्रसाद मेरे दादा का नाम राम प्रसाद उनके पिता का नाम रामलाल ये वंशावली मेरे परिवार की है जो इस तरह जाकर किसी ने किसी रूप में आदम से मिलती है। पहले आदम ने पाप किया और पाप के द्वारा अब तक मृत्यु सारी जाति पर कब्जा रखे हुए हैं। 

परंतु हमारे प्रभु यीशु पुनः जीवित होकर मृत्यु पर जयवंत हो गए और हमें इस जगत से आवाज देकर अलग किया जैसे कि लिखा है मेरी भेड़ मेरा शब्द सुनकर मेरे पीछे हो लेती है। हमने परमेश्वर के वचनों को सुना और यीशु मसीह के पीछे हो लिए। यीशु मसीह ने हमें जगत से चुनकर अपने वंस में शामिल किया और हमें अपनी संतान बनाया। ( यूहनां 1:12, 10:16)