तीसरी वाणी : जिसे यीशु ने क्रूस पर कही ।
यूहन्ना 19:26,27 यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था, पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा; हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।
तब उस चेले से कहा, यह तेरी माता है, और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया॥
इस वाणी के द्वारा यीशु हमे क्या शिक्षा देना चाह रहे है सीखेंगे :
1. अपनी माता मरियम को नारी कह के क्यों पुकारा ?
2. अपनी माता को अपने प्रिय चेले को सौपना ।
1. यीशु ने अपनी माता को नारी कह कर यह स्पष्ट किया की मैं तेरा पुत्र नही । परमेश्वर का पुत्र हूं , परमेश्वर की उस प्रतिज्ञा को पूरा करने आया हूँ , जिसे जिब्राईल स्वर्गदूत ने तुझ से की । जिसका वर्णन बाइबिल में इस प्रकार है ।
लुक 1:26-35 " छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में एक कुंवारी के पास भेजा गया। जिस की मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरूष से हुई थी: उस कुंवारी का नाम मरियम था। स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना।
वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा। मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरूष को जानती ही नहीं।
स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा। "
इससे स्पष्ट होता है , यीशु , कुंवारी मरियम का पुत्र नही , परमेश्वर का पुत्र है । इस लिए यीशु ने मरियम को नारी कह के संबोधित किया ।जिब्राईल स्वर्ग दूत ने मरियम के मंगेतर युशूफ से भी यही बात की यीशु मरियम का पुत्र नही ,जो बाइबिल में मिलता :
मत्ती 1: 18,19" अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। सो उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की।
मत्ती20-23 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा। यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो। कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा, जिस का अर्थ यह है “ परमेश्वर हमारे साथ”।
उपरिक्त वचन से स्पष्ट होता है । यीशु , मरियम का पुत्र नही, परमेश्वर का पुत्र है , परंतु देहधारण के लिए कुंवारी मरियम को चुना ।
उपरोक्त वचन से यह स्पष्ट होता है जैसा लिखा है, वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा । यीशु , स्वयं परमेश्वर होकर इस जगत में हम मनुष्यो को हमारे पापों से उद्धार देने आये ।
परमेश्वर ने इस जगत में जन्म लेने के लिए मरियम को क्यों चुना ?
जबकि बहुत सी कुंवारिया इस संसार में थी । क्या आप जानते है? पुरे संसार में परमेश्वर ने इस्राएल जाती के यहूदा गोत्र की कुंवरी को क्यों चुना ?
बाइबिल इस बात को प्रगट करती है । कि पूरे संसार में इस्त्राएल जाती को परमेश्वर ने चुना । बाइबिल बताती है इस्त्राएल जाती मिस्त्र में परदेशी हो कर रह रहे थे , ओर मिस्त्र के राजा अपने कर्मचारियों के द्वारा इस्त्राएलियों पर बहुत अधिक काम के बोझ तले दबा रहा था । वे बहुत दुख और मुसीबत को झेल रहे थे ,और राजा उन पर मुसीबत बढ़ता जा रहा था तब वे स्वर्ग के परमेश्वर को पुकार उठे , हे परमेश्वर हमे मिस्त्र की गुलामी से आजाद कर । उनकी पीड़ा बहुत अधिक होने के कारण वे परमेश्वर से गिड़गिड़ाकर बिनती करने लगे । तब परमेश्वर ने उनकी बिनती सुन अपने सेवक मूसा को भेज, उन्हें मिस्त्र की गुलामी से आजाद किया । जब इस्राएली मिस्त्र से निकले तब परमेश्वर इस्राएलियों के आगे आगे आग और बादल के खम्बे के रूप में चलता था ,और इस्राएली परमेश्वर के पीछे चलते थे। तब परमेश्वर ने अपने सेवक मूसा के द्वारा मिस्त्र की गुलामी से आजाद किया । तब इस्राएली उद्धार के भूखे और प्यासे हो परमेश्वर के पीछे पीछे चल रहे थे । वे जच्चा की सी पीड़ा के साथ परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते पीछे पीछे चल रहे थे । तब उन्हें उद्धार देने के लिए परमेश्वर ने इस्राएल के यहूदा गोत्र से कुवारी मरियम को चुना ,परमेश्वर के पुत्र जनने के लिए । जब शैतान ने देखा कि इस्राएली परमेश्वर के पीछे चल रहे है ,और उस की आज्ञा पा पालन कर रहे है ,तो उस ने एक तिहाई को पाप में गिरा नाश कर दिया । ताकि वे परमेश्वर से उद्धार पा स्वर्ग में जाने न पाए । प्रकाशित वाक्य 12:1-6 में इसे पढ़ सकते है ।
प्रा.वा. 12:4 और वह अजगर उस स्त्री से साम्हने जो जच्चा थी, खड़ा हुआ, कि जब वह बच्चा जने तो उसके बच्चे को निगल जाए।
प्रकाशित वाक्य 12:5 और वह बेटा जनी जो लोहे का दण्ड लिए हुए, सब जातियों पर राज्य करने पर था, और उसका बच्चा एकाएक परमेश्वर के पास, और उसके सिंहासन के पास उठा कर पहुंचा दिया गया। "
उपरोक्त वचन से यह स्पस्ट होता है जब कुंवारी मरियम ने पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ धारण किया तो शैतान ,यीशु को मार डालना चाहता था । क्यों कि वह जानता था ,यीशु के निर्दोष बलिदान के द्वारा मानव जाति पापों की क्षमा पा स्वर्गी राज्य में प्रवेश कर पायेगी । इस लिए यीशु के जन्म के तुरन्त बाद हेरोदेश राजा को बहकाकर यीशु को मार डालना चाहा । इस लिए हेरोदेश राजा ने यरूशलेम और आसपास के नगरों के बच्चों को मरवा डालने का आदेश दिया । लेकिन परमेश्वर ने यीशु की रक्षा की । यीशु के बड़े होने के बाद भी शैतान शास्त्री फरीसियों यहूदियों को बहकाकर मार डालने के लिए उपाय खोजता रहा । अंत में यीशु को रोमी सरकार द्वारा पकड़वा कर बहुत अपमानित करवाया , 39 कोड़े लगवाया , भारी क्रूस उठाकर चलवाया , क्रूस पर किलों से ठुकवा दिया , ताकि भारी यातना में यीशु के द्वारा कोई अप शब्द निकले और पाप गिना जाए । लेकिन यीशु ने एक भी अपशब्द अपने मुंह से न निकाला और निर्दोष सब कुछ सहता रहा ।उसके सिर पर काटों का मुकुट भी रखा गया । फिर भी यीशु ने कुछ न कहा । प्रियों बाइबिल बताती है :
रोमियो 5:12 इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया। "
प्रियों, पाप के कारण मनुष्यों में मृत्यु आई ।
1. शरीक मृत्यु 2.आत्मिक मृत्यु (नरक का दंड )
लेकिन यीशु ने एक भी पाप न किया जिसके कारण यीशु को मृत्यु न आती , अतः यीशु ने प्राण को परमेश्वर पिता के हाथों में शौप दिया । अतः शैतान , यीशु की कुछ भी हानि न कर सका । तीसरे दिन यीशु जीवित हो 40 दिन अपने चेलों से बातचित की फिर स्वर्ग पर सबके देखते चढ़ गए । यीशु आज भी जीवित है । यीशु हमारे पापों के प्रायश्चित हेतु क्रूस पर निर्दोष बलिदान हुए । ताकि हमें पापों से उद्धार मिले । और हम अनंत जीवन स्वर्गीय जीवन को पा सके ।
प्रियों, इस वाणी से यह शिक्षा मिलती है ,कि हमें उद्धार की भूख और प्यास का होना जरूरी है । तभी हम परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर सकेंगे ।
2.यीशु ने अपनी माता से कहा ;देख यह तेरा पुत्र है । तब उस चेले से कहा ,यह तेरी माता है , और उसी समय से वह चेला उसे अपने घर ले गया ।
प्रियों, यीशु भारी दुख और पीड़ा के बाद भी अपने पुत्र होने के फर्ज को निभाया । वैसे ही हमे भी अपने बुजुर्क माता पिता के प्रति पुत्र पुत्री होने के फर्ज को निभाना चाहिए ।
प्रियो, इस वाणी से मुख्य शिक्षा मिलती है, यदि हम स्वर्ग जाना चाहते है तो पापों से उद्धार की भूख और प्यास के साथ यीशु के पाप आये । जैसा परमेश्वर का वचन कहता है :
योएल 2:12 ,१३तौभी यहोवा की यह वाणी है, अभी भी सुनो, उपवास के साथ रोते-पीटते अपने पूरे मन से फिरकर मेरे पास आओ। अपने वस्त्र नहीं, अपने मन ही को फाड़ कर अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो; क्योंकि वह अनुग्रहकारी, दयालु, विलम्ब से क्रोध करने वाला, करूणानिधान और दु:ख देकर पछतानेहारा है।
प्रियो, परमेश्वर आपके लौट आने का इंतजार कर रहा है । वह नही चाहता कि कोई नाश हो । परमेश्वर आप को सच्चा पश्चातापी मन दे । परमेश्वर के भय में चलने की आत्मा दे । और परमेश्वर की दया आप सभों पर इस लोक में ओर परलोक में भी सदा बानी रहे । अमीन
परमेश्वर इस वचन के द्वारा आप सभों को बहुतायत की आशीष दे ,और स्वर्गी राज्य के लिए चुन लें । अमीन
यदि आप ने इस वचन से आशीष पाई है तो अवश्य लाइक कर अपने मित्रों में शेयर करे ।
यूहन्ना 19:26,27 यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था, पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा; हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।
तब उस चेले से कहा, यह तेरी माता है, और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया॥
इस वाणी के द्वारा यीशु हमे क्या शिक्षा देना चाह रहे है सीखेंगे :
1. अपनी माता मरियम को नारी कह के क्यों पुकारा ?
2. अपनी माता को अपने प्रिय चेले को सौपना ।
1. यीशु ने अपनी माता को नारी कह कर यह स्पष्ट किया की मैं तेरा पुत्र नही । परमेश्वर का पुत्र हूं , परमेश्वर की उस प्रतिज्ञा को पूरा करने आया हूँ , जिसे जिब्राईल स्वर्गदूत ने तुझ से की । जिसका वर्णन बाइबिल में इस प्रकार है ।
लुक 1:26-35 " छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में एक कुंवारी के पास भेजा गया। जिस की मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरूष से हुई थी: उस कुंवारी का नाम मरियम था। स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना।
वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा। मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरूष को जानती ही नहीं।
स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा। "
इससे स्पष्ट होता है , यीशु , कुंवारी मरियम का पुत्र नही , परमेश्वर का पुत्र है । इस लिए यीशु ने मरियम को नारी कह के संबोधित किया ।जिब्राईल स्वर्ग दूत ने मरियम के मंगेतर युशूफ से भी यही बात की यीशु मरियम का पुत्र नही ,जो बाइबिल में मिलता :
मत्ती 1: 18,19" अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। सो उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की।
मत्ती20-23 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा। यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो। कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा, जिस का अर्थ यह है “ परमेश्वर हमारे साथ”।
उपरिक्त वचन से स्पष्ट होता है । यीशु , मरियम का पुत्र नही, परमेश्वर का पुत्र है , परंतु देहधारण के लिए कुंवारी मरियम को चुना ।
उपरोक्त वचन से यह स्पष्ट होता है जैसा लिखा है, वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा । यीशु , स्वयं परमेश्वर होकर इस जगत में हम मनुष्यो को हमारे पापों से उद्धार देने आये ।
परमेश्वर ने इस जगत में जन्म लेने के लिए मरियम को क्यों चुना ?
जबकि बहुत सी कुंवारिया इस संसार में थी । क्या आप जानते है? पुरे संसार में परमेश्वर ने इस्राएल जाती के यहूदा गोत्र की कुंवरी को क्यों चुना ?
बाइबिल इस बात को प्रगट करती है । कि पूरे संसार में इस्त्राएल जाती को परमेश्वर ने चुना । बाइबिल बताती है इस्त्राएल जाती मिस्त्र में परदेशी हो कर रह रहे थे , ओर मिस्त्र के राजा अपने कर्मचारियों के द्वारा इस्त्राएलियों पर बहुत अधिक काम के बोझ तले दबा रहा था । वे बहुत दुख और मुसीबत को झेल रहे थे ,और राजा उन पर मुसीबत बढ़ता जा रहा था तब वे स्वर्ग के परमेश्वर को पुकार उठे , हे परमेश्वर हमे मिस्त्र की गुलामी से आजाद कर । उनकी पीड़ा बहुत अधिक होने के कारण वे परमेश्वर से गिड़गिड़ाकर बिनती करने लगे । तब परमेश्वर ने उनकी बिनती सुन अपने सेवक मूसा को भेज, उन्हें मिस्त्र की गुलामी से आजाद किया । जब इस्राएली मिस्त्र से निकले तब परमेश्वर इस्राएलियों के आगे आगे आग और बादल के खम्बे के रूप में चलता था ,और इस्राएली परमेश्वर के पीछे चलते थे। तब परमेश्वर ने अपने सेवक मूसा के द्वारा मिस्त्र की गुलामी से आजाद किया । तब इस्राएली उद्धार के भूखे और प्यासे हो परमेश्वर के पीछे पीछे चल रहे थे । वे जच्चा की सी पीड़ा के साथ परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते पीछे पीछे चल रहे थे । तब उन्हें उद्धार देने के लिए परमेश्वर ने इस्राएल के यहूदा गोत्र से कुवारी मरियम को चुना ,परमेश्वर के पुत्र जनने के लिए । जब शैतान ने देखा कि इस्राएली परमेश्वर के पीछे चल रहे है ,और उस की आज्ञा पा पालन कर रहे है ,तो उस ने एक तिहाई को पाप में गिरा नाश कर दिया । ताकि वे परमेश्वर से उद्धार पा स्वर्ग में जाने न पाए । प्रकाशित वाक्य 12:1-6 में इसे पढ़ सकते है ।
प्रा.वा. 12:4 और वह अजगर उस स्त्री से साम्हने जो जच्चा थी, खड़ा हुआ, कि जब वह बच्चा जने तो उसके बच्चे को निगल जाए।
प्रकाशित वाक्य 12:5 और वह बेटा जनी जो लोहे का दण्ड लिए हुए, सब जातियों पर राज्य करने पर था, और उसका बच्चा एकाएक परमेश्वर के पास, और उसके सिंहासन के पास उठा कर पहुंचा दिया गया। "
उपरोक्त वचन से यह स्पस्ट होता है जब कुंवारी मरियम ने पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ धारण किया तो शैतान ,यीशु को मार डालना चाहता था । क्यों कि वह जानता था ,यीशु के निर्दोष बलिदान के द्वारा मानव जाति पापों की क्षमा पा स्वर्गी राज्य में प्रवेश कर पायेगी । इस लिए यीशु के जन्म के तुरन्त बाद हेरोदेश राजा को बहकाकर यीशु को मार डालना चाहा । इस लिए हेरोदेश राजा ने यरूशलेम और आसपास के नगरों के बच्चों को मरवा डालने का आदेश दिया । लेकिन परमेश्वर ने यीशु की रक्षा की । यीशु के बड़े होने के बाद भी शैतान शास्त्री फरीसियों यहूदियों को बहकाकर मार डालने के लिए उपाय खोजता रहा । अंत में यीशु को रोमी सरकार द्वारा पकड़वा कर बहुत अपमानित करवाया , 39 कोड़े लगवाया , भारी क्रूस उठाकर चलवाया , क्रूस पर किलों से ठुकवा दिया , ताकि भारी यातना में यीशु के द्वारा कोई अप शब्द निकले और पाप गिना जाए । लेकिन यीशु ने एक भी अपशब्द अपने मुंह से न निकाला और निर्दोष सब कुछ सहता रहा ।उसके सिर पर काटों का मुकुट भी रखा गया । फिर भी यीशु ने कुछ न कहा । प्रियों बाइबिल बताती है :
रोमियो 5:12 इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया। "
प्रियों, पाप के कारण मनुष्यों में मृत्यु आई ।
1. शरीक मृत्यु 2.आत्मिक मृत्यु (नरक का दंड )
लेकिन यीशु ने एक भी पाप न किया जिसके कारण यीशु को मृत्यु न आती , अतः यीशु ने प्राण को परमेश्वर पिता के हाथों में शौप दिया । अतः शैतान , यीशु की कुछ भी हानि न कर सका । तीसरे दिन यीशु जीवित हो 40 दिन अपने चेलों से बातचित की फिर स्वर्ग पर सबके देखते चढ़ गए । यीशु आज भी जीवित है । यीशु हमारे पापों के प्रायश्चित हेतु क्रूस पर निर्दोष बलिदान हुए । ताकि हमें पापों से उद्धार मिले । और हम अनंत जीवन स्वर्गीय जीवन को पा सके ।
प्रियों, इस वाणी से यह शिक्षा मिलती है ,कि हमें उद्धार की भूख और प्यास का होना जरूरी है । तभी हम परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर सकेंगे ।
2.यीशु ने अपनी माता से कहा ;देख यह तेरा पुत्र है । तब उस चेले से कहा ,यह तेरी माता है , और उसी समय से वह चेला उसे अपने घर ले गया ।
प्रियों, यीशु भारी दुख और पीड़ा के बाद भी अपने पुत्र होने के फर्ज को निभाया । वैसे ही हमे भी अपने बुजुर्क माता पिता के प्रति पुत्र पुत्री होने के फर्ज को निभाना चाहिए ।
प्रियो, इस वाणी से मुख्य शिक्षा मिलती है, यदि हम स्वर्ग जाना चाहते है तो पापों से उद्धार की भूख और प्यास के साथ यीशु के पाप आये । जैसा परमेश्वर का वचन कहता है :
योएल 2:12 ,१३तौभी यहोवा की यह वाणी है, अभी भी सुनो, उपवास के साथ रोते-पीटते अपने पूरे मन से फिरकर मेरे पास आओ। अपने वस्त्र नहीं, अपने मन ही को फाड़ कर अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो; क्योंकि वह अनुग्रहकारी, दयालु, विलम्ब से क्रोध करने वाला, करूणानिधान और दु:ख देकर पछतानेहारा है।
प्रियो, परमेश्वर आपके लौट आने का इंतजार कर रहा है । वह नही चाहता कि कोई नाश हो । परमेश्वर आप को सच्चा पश्चातापी मन दे । परमेश्वर के भय में चलने की आत्मा दे । और परमेश्वर की दया आप सभों पर इस लोक में ओर परलोक में भी सदा बानी रहे । अमीन
परमेश्वर इस वचन के द्वारा आप सभों को बहुतायत की आशीष दे ,और स्वर्गी राज्य के लिए चुन लें । अमीन
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