प्रभु यीशु उसने कैसी ज़िंदगी जी
(यिर्मयाह 9: 23)
यहोवा यों कहता है, बुध्दिमान अपनी बुध्दि पर घमणड न करे, न वीर अपनी वीरता पर,
और धनी अपने धन पर घमणड करे;
(यिर्मयाह 9: 24)
परन्तु जो घमणड करे वह इसी बात पर घमणड करे, कि वह मुझे जानता और समझता हे,
कि मैं ही वह यहोवा हूँ, जो पृथ्वी पर करूणा, न्याय और धर्म के काम करता है;
क्योंकि मैं इन्हीं बातों से प्रसन्न रहता हूँ।
“मेरा खाना यह है कि मैं अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करूँ और उसका काम पूरा करूँ।”
यीशु ने ऊपर दिए शब्द जिस समय और हालात में कहे, उससे पता चलता है कि वह किस
काम को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देता था। यीशु अपने चेलों के साथ
सुबह से सामरिया के पहाड़ी इलाकों में पैदल चल रहा था और अब दोपहर हो चली थी।
चेलों ने सोचा कि यीशु को भूख लगी होगी इसलिए उन्होंने उसे कुछ खाने के लिए दिया।
तब यीशु ने उन्हें बताया कि उसकी ज़िंदगी का मकसद क्या है। उसके लिए परमेश्वर का
दिया काम, खाना खाने से ज़्यादा ज़रूरी था। उसने अपनी बातों और कामों से दिखाया कि
उसके जीने का मकसद है, परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना। इसमें क्या-क्या शामिल था?
ज़रूरी काम क्या था, इस बारे में बाइबल कहती है: “यीशु सारे गलील प्रदेश का दौरा
करता हुआ . . . सिखाता और राज की खुशखबरी का प्रचार करता रहा।”
यीशु ने परमेश्वर के राज के बारे में सिर्फ प्रचार या घोषणा नहीं की, वह लोगों
को सिखाता भी था। यानी वह उन्हें हिदायत देता, समझाता और ठोस दलीलें देकर
यकीन दिलाता था। परमेश्वर का राज ही यीशु के संदेश का मुख्य विषय था।
प्रचार काम के दौरान यीशु ने लोगों को सिखाया कि परमेश्वर का राज क्या है और
वह राज क्या करेगा। राज के बारे में आगे दी सच्चाइयों पर गौर कीजिए। उनके
बाद बाइबल के हवाले भी दिए गए हैं जो बताते हैं कि यीशु ने उस विषय पर क्या कहा था।
धरती पर उसकी मरज़ी पूरी होगी।
में तबदील कर दिया जाएगा। 1000 साल के राज मे
1000 साल के राज मे
लेकिन, अपनी साढ़े-तीन साल की सेवा में उसने ढेरों शक्तिशाली काम किए।
इन कामों से कम-से-कम दो मकसद पूरे हुए। पहला, इनसे यह साबित हुआ कि
यीशु को वाकई परमेश्वर है
मत्ती 14:17-21;15:34-38.
लूका 7:11-15; 8:41-55;
यूहन्ना 11:38-44.
यूहन्ना 21:2
#NewLifeSikhteHaiKuch
#PastorEmmanuel