Monday, 28 January 2019

PRARTHA KE BINA PAVITR AATMA KA SAMARTH PRAPT KARNA NAMUMKIN प्रार्थना के बगैर पवित्र आत्मा का सामर्थ्य प्राप्त करना नामुमकिन ?

पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त व्यक्ति 
का प्रभावशाली जीवन ।
यह पोस्ट थोड़ा लम्बा जरूर है लेकिन मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि आप जब इस पोस्ट को पूरा पढ़ेंगे पढ़ने के बाद आप पवित्र आत्मा के सामर्थ्य को पाने के अभिलाषी हो जायेंगे । 

जब हम प्रभु यीशु जी को अपने जीवन का उद्धारकर्ता ग्रहण करते है और उनके पीछे चलने का निर्णय लेते है तो हम बहुत प्रकार के परीक्षा ( जैसे मसीह में विश्वास की वजह से सताव , सेवकाई की वजह से सताव , संसार के समक्ष यीशु मसीह को स्वीकार करने की वजह से सताव , रिस्तेदारो के ताने , संसार को अप्रिय जान कर प्रभु के पीछे चलने से आने वाले सताव , झूठी बात गढ़ कर नाम खराब करने की वजह से सताव , नौकरी की जगह में सताव , बीमारी के द्वारा परखा जाना , व्यभिचार , लालच , क्रोध , बदला , चुगली निंदा करने , बदनाम करने जैसे विचारो के द्वारा परखा जाना , आर्थिक समस्या के द्वारा परखा जाना , परिवार का प्रभु में स्थिर न रहना , परिवार का लंबे अंतराल से उद्धार न होना , बच्चो की शादी न होना , पति बच्चे का गलत संगति में पड़ जाना , विपरीत परिस्थितियों में विश्वास का परखा जाना कि हम कुड़कुड़ाने बुडबुड़ाने तो नही लगते ) में से होकर गुजरते है । हम प्रभु यीशु मसीह के जीवन को देखते है जिसमे प्रार्थना उनके जीवन का सबसे मुख्य भाग था । वे हर दिन पौ फटने ( सूरज की किरण निकलने ) से पहले प्रार्थना करने जंगल या पहाड़ो में एकांत में जाते थे और प्रार्थना करने के द्वारा परमेश्वर से पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त करते थे और निःसंदेह यही सामर्थ्य उन्हें परिक्षाओ से भरे पुरे दिन में परमेश्वर के स्वभाव को अपनी देह में लेकर फिरने में सहायता करती थी और सामर्थ्य भी देती थी कि यीशु अद्भुत चिन्ह चमत्कार के द्वारा पिता की महिमा करे ।


लोग उन्हें बुरी बुरी बाते कहते थे गलत इल्जाम लगाते थे  दुस्टात्माओ का सरदार कहते थे लेकिन उनके जीवन में प्रार्थना का विशेष स्थान होने की वजह से वे प्रार्थनाओं के द्वारा स्वर्ग से हर दिन जो पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त करते थे वह सामर्थ्य ही उन्हें हर बात को सहन करने का ताकत देती थी । पवित्र आत्मा की सामर्थ्य का पहला भाग यह था कि परिक्षाओ में भी पिता के स्वभाव ( प्रेम , दया , क्षमा , भलाई ) को लोगो पर प्रकट कर के परीक्षाओं में न गिरकर स्थिर बने रहने में शक्ति प्रदान करती थी । हमे एक बात आज जान लेनी चाहिए कि बगैर परमेश्वर के साथ समय व्यतीत किये हम किसी से भी बेशर्त प्रेम दया क्षमा भलाई नही कर सकते । पवित्र आत्मा के सामर्थ्य का दूसरा भाग यह कि यीशु प्रार्थना में प्राप्त पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा ही हर दिन बीमारो को चंगा किया करते थे , दुस्टात्माओ को निकालते थे , अंधे , बहरे , गूंगे , लँगड़े ठीक किये जाते थे । हम भी जब यीशु की तरह प्रतिदिन प्रार्थना करते है स्वर्ग से पवित्र आत्मा का सामर्थ्य के दोनों भागो को प्राप्त करते है , पहला भाग हमे यीशु मसीह का स्वभाव देता है जिसे हम विपरीत परिस्थितियों में संसार पर प्रकट करे और अद्भुत चिन्ह चमत्कार करने का भी सामर्थ्य प्राप्त करते है जिससे हमारे जीवन के द्वारा परमेश्वर का राज्य संसार के लोगो तक पहुंचाया जाये और दोनों ही भागो के द्वारा परमेश्वर पिता की महिमा हो । 

पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के दोनों भाग को हम किस तरह से प्राप्त कर सकते है इसके विषय में बाइबल ऐसा बताती है कि जो प्रभु की संगति ( प्रार्थना , आराधना , बाइबल अध्ययन ) में रहता है, वह उसके साथ एक आत्मा ( जो आत्मा की परिपूर्णता यीशु में थी वही आत्मा हममे आ जाती है ) हो जाता है ( 1 कुरिन्थियों 6:16 ) । हम अपनी जिंदगी में एक बात देख सकते है हमारी जिससे दोस्ती होती है , हम जिसके साथ ज्यादा समय बिताते है उसका स्वभाव हममे आने लगता है और हम उसके जैसा बनने लगते है । यदि हम यीशु को अपना दोस्त बनाते है और उनके साथ समय व्यतीत करते है तो हम भी यीशु मसीह के जीवन के दोनों भागो ( स्वभाव + सामर्थ्य ) को प्राप्त कर सकते है । तो हमे उनके साथ समय बिताने की जरूरत है । ये दोनों प्रकार का सामर्थ्य पवित्र आत्मा की परिपूर्णता है । लेकिन अफ़सोस आज बहुत से सेवक और विश्वासी केवल यीशु मसीह के स्वभाव धारण करने को अधिक महत्त्व देते है तो कई सेवक और विश्वासी सिर्फ चिन्ह और चमत्कार को अधिक महत्व देते है । लेकिन हमें यह बात याद रखने की जरूरत है कि पक्षी केवल एक पंख से नही उड़ सकता । ठीक ऐसे ही हम भी स्वभाव + चिन्ह चमत्कार दोनों प्रकार का सामर्थ्य एक साथ लेकर न चले तो परमेश्वर के राज्य को शोर शराबे के साथ नही बढ़ा सकते । 

यीशु मसीह अपने पकड़वाए जाने वाली रात गतसमनि बाग़ में पूरी रात प्रार्थना किये और क्रूस के दर्द को सहन करने के लिए पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को स्वर्ग से प्राप्त किये । पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा ही यीशु जी क्रूस पर अपने भेदने वालो को ये कह सके हे पिता इन्हें क्षमा कर । क्या ही अद्भुत सामर्थ्य प्रभु के भीतर कार्य कर रही थी । यह प्रार्थना में बैठकर स्वर्ग से पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त करने का चिन्ह है । इसलिए यीशु ने प्रेरितों से कहा जागते और प्रार्थना करते रहो कि तुम परिक्षाओ में मत पड़ो । प्रभु पर परीक्षाएं तो आयी लेकिन प्रार्थना के द्वारा प्राप्त पवित्र आत्मा का सामर्थ्य उन्हें किसी भी परीक्षा में गिरने नही दिया । बाइबल ऐसा बताती है यीशु सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला ( इब्रानियों 4:15 ) ।

अब हम यह जानने की कोशिश करते है कि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य 
प्राप्त करने के बाद प्रेरितों का जीवन कैसा हो गया था ? 

हम यह जानते है कि जिस रात प्रभु पकड़ाये गये पतरस ने प्रभु के नाम का तीन बार इंकार किया और बाकि 10 प्रेरित इस डर से भाग गये कि यदि हम यीशु के साथ रहे तो हमे भी मार खाना पड़ेगा । अब वही प्रेरित यीशु के स्वर्गारोहण के बाद पवित्र आत्मा का सामर्थ्य प्राप्त किये और खड़े होकर महायाजकों के बीच कह रहे है कि हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटका कर मार डाला था ( प्रेरितों के काम 5:30 ) । यह कितनी कठोर और साहसी बात थी जिसे कहने का सामर्थ्य इन्हें पवित्र आत्मा दे रहा था । और यह सामर्थ्य उन्हें पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त होने के बाद ही हुआ । आगे  बाइबल ऐसा बताती है कि महायाजको ने प्रेरितों को बुलवाकर पिटवाया क्योंकि वे बिना डरे प्रभु यीशु का सुसमाचार सुनाते थे , और जब प्रेरित मार खाये तो बाइबल ऐसा बताती है कि वे महासभा के साम्हने से आनंदित होकर चले गये ( प्रेरितों के काम 5 ) । अब वे प्रेरित बदल चुके थे । अब वे ही प्रेरित जो पवित्र आत्मा का सामर्थ्य प्राप्त करने से पहले डर के कारण यीशु को छोड़कर भाग गए थे अब निडर होकर प्रचार कर रहे थे । प्रेरितों पर उसी किस्म की परीक्षाये आयी की वे प्रभु का इंकार करे , सुसमाचार प्रचार का इंकार करे , सताव में प्रभु का पीछा करना बंद कर के वापस अपने कामो में लौट जाये लेकिन इस बार प्रेरित मार खा कर भी परीक्षा में स्थिर थे और आनंद मना रहे थे क्योंकि इन्हें पवित्र आत्मा का सामर्थ्य प्राप्त हो चूका था । जिस पतरस ने यीशु को पकड़ने वाले व्यक्ति का अपनी तलवार से कान उड़ा दिया अब वही पतरस यीशु के नाम से भरी सभा में  मार खा रहा था । अब प्रेरित पवित्र आत्मा का सामर्थ्य प्राप्त करने के बाद यीशु के स्वभाव को अपनी देह में लिए फिर रहे थे और यीशु के नाम से अद्भुत चिन्ह चमत्कार किया करते थे । जिन चेलो ने अपने अविश्वास के कारण दुस्टात्मा नही निकाल पाए अब वे प्रेरित पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्ति के द्वारा दुस्टात्माएँ निकाल रहे थे । पतरस की परछाई तक बीमारो पर पड़ जाती थी और वे बीमार चंगे हो जाते थे । पतरस और यूहन्ना ने एक लँगड़े से कहा यीशु के नाम से उठ और वह लँगडा चलने लगा । क्योंकि अब वे पवित्र आत्मा का सामर्थ्य से भरा हुआ जीवन जी रहे थे । वे जान गये थे कि परीक्षा सताव क्लेश दुःख कष्ट मसीही जीवन का अभिन्न भाग है । और यदि हम प्रभु में है तो इस सताव के भाग से दूर नही जा सकते । लेकिन हम इन परीक्षाओं में , प्रार्थना में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त करने के द्वारा परमेश्वर की योजना पर न कुड़कुडाकर , न संदेह कर कर परीक्षा आने पर न गिरकर विपरीत परिस्थिति में भी प्रभु का धन्यवाद कर सकते है , आनंदित रह सकते है , अपने विश्वास की रखवाली प्राण जाते तक कर सकते है । इसलिए पौलुस ने कहा कि जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे ( 2 तीमुथियुस 3:12 ) । 


प्रार्थना के बगैर पवित्र आत्मा का सामर्थ्य प्राप्त करना नामुमकिन ?

प्रभु ने अपने मरने वाली रात 3 बार प्रेरितों से कहा उठो और प्रार्थना करो की तुम परीक्षा में न पड़ो लेकिन तीनो ही बार प्रेरित प्रभु के निर्देश के बावजूद प्रार्थना करते नही पाए गए इसलिए वे पवित्र आत्मा का सामर्थ्य भी नही प्राप्त कर पाए कि वे आने वाली परीक्षाओं में स्थिर रह पाए और सभी यीशु को छोड़कर भाग गये । प्रार्थनाएं परीक्षाओं में डटे रहने का सामर्थ्य देती है ।

हम बगैर प्रार्थना किये  बगैर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त किये पतरस के समान बड़ी बड़ी बाते तो जरूर कर सकते है कि हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, वरन मरने को भी तैयार हूं ( लूका 22:33 ) लेकिन परिणाम वो ही होगा जो पतरस ने किया , 3 बार इंकार । आज हमें यह बात अच्छे तरीके से जान लेना चाहिए कि हम प्रार्थना के बगैर मसीही जीवन में एक कदम भी नही चल सकते ।
हम यह न सोचें कि परीक्षाएं सिर्फ शारीरिक क्लेशो के द्वारा ही होती है, परीक्षाएं वैचारिक भी हो सकती है । हो सकता है हमारे विचारों में व्यभिचार , किसी स्त्री या पुरुष को देखकर बुरे ख्याल , लालच , हमारे खिलाफ गलत होने पर बदला , माफ़ न करने , क्रोध , बुरी युक्ति , किसी की बदनामी , चुगली करने , परिस्थितियों के
न बदलते हुए देख परमेश्वर के विरुद्ध बाते कहने जैसे ख्याल पैदा हो सकती है लेकिन हम एकांत में प्रार्थना करने के द्वारा परमेश्वर से प्रभु का अनुग्रह और पवित्र आत्मा का सामर्थ्य प्राप्त कर सकते है और परीक्षाओं में न गिरकर अपने विश्वास की रखवाली कर सकते है 

परीक्षाओं का आना मसीही जीवन का भाग है लेकिन परीक्षाओं में धन्यवाद और आनंद के साथ वही मसीही स्थिर रह सकता है जो प्रभु के साथ प्रार्थना , आराधना , बाइबल अध्ययन के द्वारा संगति करता है और पवित्र आत्मा का सामर्थ्य प्राप्त करता है ।

प्रभु यीशु हम सभो को बहुत आशीष दे । प्रभु यीशु हमसे बेहद प्यार करते है । यदि हम प्रतिदिन प्रार्थना करते है तो प्रभु यीशु हमारे जीवन के विपरीत परिस्थितियों में और वैचारिक परीक्षाओं में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य देने के द्वारा हमे अपने विश्वास की रखवाली करने में सहायता प्रदान करने में सदैव हमारे साथ है ।



और भी आशीषित पोस्ट देखे निचे दिये गये लेख पर क्लिक करे 
 JUST CLICK NOW--------

1} दशमांश किसको देना है ??





5} प्रार्थना में घुटने टेकने का अर्थ।