हर दीन प्रार्थना करने के लिए दस कारण !
१. प्रार्थना हमें बचाती है।२ प्रार्थना चीज़ें बदलती है।३ प्रार्थना आपको परमेश्वर के इच्छा में रखती है।४ प्रार्थना आपको परमेश्वर के क़रीब खींचती है।५ प्रार्थना आपको ख़ुश करती है।६ प्रार्थना आपको आशा देती है।७ प्रार्थना आपको कम स्वार्थी बनाती है ८ प्रार्थना आपको सभी दर्द से ठीक करती है।९ प्रार्थना आपको आध्यात्मिक रुप से मज़बूत बनाती है।१० प्रार्थना हमें शांति देती है।
नम्रता और महानता
विश्वासियों के बीच में आज सबसे बड़ी गड़बड़ ये चल रही है कि वो एक दूसरे के अभिषेक की न ही कदर कर रहे है और न ही अपनी सही हैसियत मान ने को तैयार है।
पर इस गठबंधन का सबसे अच्छा उधारण हमे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले और प्रभु यीशु मसीह की सेवकाई में मिलता है।
ये उस वक़्त की बात है जब यीशु जी बपतिस्मा लेने को यूहन्ना के पास आए, और यूहन्ना ने बपतिस्मा देने में असहजता दिखाई पर प्रभु यीशु ने कहा "हमें इसी रीति से धार्मिकता को पूरी करना उचित है"-
(13 उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास.। उस से बपतिस्मा लेने आया।
14 परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, कि मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यक्ता है, और तू मेरे पास आया है?
15 यीशु ने उस को यह उत्तर दिया, कि अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धामिर्कता को पूरा करना उचित है, तब उस ने उस की बात मान ली। मत्ती 3:13-15)
(13 उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास.। उस से बपतिस्मा लेने आया।
14 परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, कि मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यक्ता है, और तू मेरे पास आया है?
15 यीशु ने उस को यह उत्तर दिया, कि अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धामिर्कता को पूरा करना उचित है, तब उस ने उस की बात मान ली। मत्ती 3:13-15)
इस कथन में हमे यीशु मसीह और यूहन्ना दोनो की नम्रता दिखती है, यीशु जी यूहन्ना से बपतिस्मा लेने जाते है , ये बिल्कुल ऐसे ही है जैसे स्कूल का प्रिन्सिपल नर्सरी क्लास के बच्चो के साथ बैठकर abcd सीखने आया हो, और टीचर उस वक़्त प्रिंसिपल को देखकर घबरा जाएगा और सोचेगा की मैं इन्हें क्या abcd पढ़ाऊं उल्टा ये मुझे पड़ा सकते है।
या ये बिल्कुल ऐसे है जैसे कि कोई तैराक बच्चो को 10 फ़ीट गहरे स्विमिंग पूल में तैरना सिखा रहा हो और उससे कोई ऐसा उस्ताद तैराकी सीखने आ जाए जो समंदर में सर्फिंग व डाइविंग करता हो, ठीक इसी रीति से यूहन्ना की घबराहट यीशु मसीह को देखकर जायज़ थी और सोच रहा होगा कि मैं इन्हें क्या बपतिस्मा दूँ उल्टा ये मुझे बपतिस्मा दे सकते है।पर यीशु जी ने अपनी महानता को दरकिनार कर के यूहन्ना से ही बपतिस्मा लिया। यूहन्ना की महानता इसमे है कि वो मान गया कि वो यीशु से रुतबे में बहुत छोटे है और यीशु मसीह की महानता इसमें थी कि अपने से कम अभिषक्त, कम बुद्धिमान और कम सामर्थी जन से उन्होंने बपतिस्मा लिया, यानी खुद को यूहन्ना से छोटा कर लिया।
या ये बिल्कुल ऐसे है जैसे कि कोई तैराक बच्चो को 10 फ़ीट गहरे स्विमिंग पूल में तैरना सिखा रहा हो और उससे कोई ऐसा उस्ताद तैराकी सीखने आ जाए जो समंदर में सर्फिंग व डाइविंग करता हो, ठीक इसी रीति से यूहन्ना की घबराहट यीशु मसीह को देखकर जायज़ थी और सोच रहा होगा कि मैं इन्हें क्या बपतिस्मा दूँ उल्टा ये मुझे बपतिस्मा दे सकते है।पर यीशु जी ने अपनी महानता को दरकिनार कर के यूहन्ना से ही बपतिस्मा लिया। यूहन्ना की महानता इसमे है कि वो मान गया कि वो यीशु से रुतबे में बहुत छोटे है और यीशु मसीह की महानता इसमें थी कि अपने से कम अभिषक्त, कम बुद्धिमान और कम सामर्थी जन से उन्होंने बपतिस्मा लिया, यानी खुद को यूहन्ना से छोटा कर लिया।
यूहन्ना अगर आत्मिक जन न होता तो यीशु को अपने से महान न बताता, क्योंकि अभी तक यीशु की सेवकाई शुरू नहीं हुई थी, पर यूहन्ना हज़ारो को बपतिस्मा दे चुका था।
यूहन्ना सोच सकता था कि अभी तक यीशु ने तो एक भी आत्मा नहीं जीती पर मैंने तो जाने कितनों को बपतिस्मा दे दिया है, पर यूहन्ना ने अपनी सामर्थी सेवकाई पर घमंड नहीं किया और मान लिया कि यीशु उससे बहुत सामर्थी और महान है(जबकि अपने बपतिस्मे तक यीशु ने एक भी आत्मा नहीं जीती थी)।
यूहन्ना सोच सकता था कि अभी तक यीशु ने तो एक भी आत्मा नहीं जीती पर मैंने तो जाने कितनों को बपतिस्मा दे दिया है, पर यूहन्ना ने अपनी सामर्थी सेवकाई पर घमंड नहीं किया और मान लिया कि यीशु उससे बहुत सामर्थी और महान है(जबकि अपने बपतिस्मे तक यीशु ने एक भी आत्मा नहीं जीती थी)।
यीशु मसीह भी अगर आत्मिक जन न होते तो खुद को यूहन्ना के सामने छोटा न करते, और घमंड दिखाकर यूहन्ना को खुद से छोटा होने का एहसास करा सकते थे, पर नहीं उन्होंने खुद को शून्य कर लिया।
पर आज जो जलन और खुद को दूसरे से बेहतर दिखाने की होड़ अन्यजातियों में है वहीं होड़ मसीही समाज मे है, विश्वासियों में और प्रभु के दासो में है। कोई अगर अभिषेक में, पवित्र आत्मा के सामर्थ में और प्रकाशनों में अगर दूसरे से बड़ा है तो दूसरा इसे मान ने को तैयार नहीं और अगर कोई वाकई में बड़ा है तो वो झुकने को तैयार नहीं।
कई बार मैं ऐसे युवाओं को देखता हूँ जो अभी बाइबल सेमनरी से पास्टर होने की डिग्री ले आए और डिग्री मिलते ही वो पता नहीं कौन से आसमान पर चढ़ जाते है और उन्हें लगता है को अब हमसे बड़ा कोई नहीं, भले ही आज तक परमेश्वर के राज्य के लिए एक भी आत्मा न जीती हो पर उन्हें ये लगता है कि हम बनने से पहले ही कुछ बन गए।
अगर अपने नाम के आगे एक प्रभु के दास ने apostle/प्रेरित या prophet/भविष्यवक्ता लगा लिया तो दूसरा भी लगाने में देर नहीं लगाता सिर्फ इसी लिए की कही मैं इससे छोटा न गिना जाऊ, अगर ये apostle है या ये prophet है तो मैं भी कम नहीं।
भले ही उसकी बुलाहट apostle या prophet की न हो,पर वो यूहन्ना की तरह खुद को छोटा मान नहीं पाते और इसीलिए अधूरे रह जाते है क्योंकि ऐसे अंधे सेवको को दूसरे सेवक से जो ज्ञान,प्रकाशन और सामर्थ में इनसे ज़्यादा है कुछ सीखने में शर्म आती है।
भले ही उसकी बुलाहट apostle या prophet की न हो,पर वो यूहन्ना की तरह खुद को छोटा मान नहीं पाते और इसीलिए अधूरे रह जाते है क्योंकि ऐसे अंधे सेवको को दूसरे सेवक से जो ज्ञान,प्रकाशन और सामर्थ में इनसे ज़्यादा है कुछ सीखने में शर्म आती है।
यूहन्ना ने खुद को छोटा मान लिया(यानी की राज्य में उसने अपनी सही उपाधी को स्वीकार) और यीशु जी ने खुद को छोटा यानी यूहन्ना से भी छोटा कर लिया( यानी कि अपनी बुद्धि, सामर्थ और अभिषेक के सामने यूहन्ना को तुच्छ नहीं जाना)।
हमसे अच्छा कोई गाता है पर हम अच्छे गाने वाले को कभी शाबाशी नहीं देते और न ही ये स्वीकारते है कि ये अच्छा गाता है, कोई अच्छा प्रचार करता है पर हम नहीं स्वीकार कर पाते, कोई अच्छा व सुंदर है पर हम नहीं स्वीकारते, इसके विपरीत हम जलन के शिकार हो जाते है और खुद की दृष्टि में महान बनने की कोशिश करते है।
आज अगर यही नम्रता कलीसिया में और प्रभु के दासो में आ जाए तो उन्हें बड़ा और महान होने से कोई नही रोक सकता।
हमसे अच्छा कोई गाता है पर हम अच्छे गाने वाले को कभी शाबाशी नहीं देते और न ही ये स्वीकारते है कि ये अच्छा गाता है, कोई अच्छा प्रचार करता है पर हम नहीं स्वीकार कर पाते, कोई अच्छा व सुंदर है पर हम नहीं स्वीकारते, इसके विपरीत हम जलन के शिकार हो जाते है और खुद की दृष्टि में महान बनने की कोशिश करते है।
आज अगर यही नम्रता कलीसिया में और प्रभु के दासो में आ जाए तो उन्हें बड़ा और महान होने से कोई नही रोक सकता।
परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है, सुखी है वह इंसान जो उसकी पनाह में आता है। उसका डर माननेवालों को कोई कमी नहीं होती। भज. 34:8, 9
जवानों में दमखम होता है जिससे वे यहोवा की सेवा में बहुत कुछ कर सकते हैं। (नीति. 20:29) बेथेल में सेवा करनेवाले कुछ जवान भाई-बहन बाइबल और किताबें-पत्रिकाएँ छापने और उन पर जिल्द चढ़ाने का काम करते हैं। बहुत-से जवान भाई-बहन राज-घर का निर्माण काम करते हैं और उनकी देखरेख करने में मदद करते हैं। जब कोई प्राकृतिक विपत्ति आती है, तब जवान भाई-बहन राहत काम में मदद करते हैं। और बहुत-से जवान पायनियर दूसरी भाषा सीखते हैं या दूसरे इलाकों में खुशखबरी का प्रचार करने जाते हैं। भजनहार ने कहा, “यहोवा के खोजियों को किसी भली वस्तु की घटी न होगी।” (भज. 34:10) यहोवा उन लोगों को निराश नहीं करता, जो जोश से उसकी सेवा करते हैं। जब हम यहोवा की सेवा में अपना भरसक करते हैं, तब हम खुद ‘परखकर देखते हैं कि यहोवा कैसा भला है।’ और जब हम तन-मन से यहोवा की उपासना करते हैं, तब हमें ऐसी खुशी मिलती है जो किसी और काम से नहीं मिल सकती। प्र16.08 3:5, 8