विषय -- सच्चा मित्र कौन ???
आप सभी को प्रभु यीशु मसीह
मधुर नाम में जय मसीह की
आज का विषय "यीशु मेरा सच्चा मित्र" आज इसे हम परमेश्वर क वचन से सीखेंगे। यदि आप परमेश्वर के वचन से देखे तो नीतिवचन 17:17 में " मित्र सब समयों में प्रेम रखता है , और विपत्ति के दीन भाई बन जाता है।" बहुत अच्छी बात परमेश्वर के वचन में सुलेमान राजा ने कहा मेरे प्रिय भाइयो और बहनों में आप लोगो से ये कहना चाहती हूँ क्या आपका कोई मित्र है ? यदि हाँ तो कैसी मित्रता है आपकी उनके साथ ? क्या वो आपका सच्चा मित्र है ? इन सारे सवालों के जवाब आपको कही और नहीं बल्कि परमेश्वर के वचन से मिलेंगे । और ये आपको बतायेगा कि आपका सच्चा मित्र कौन हो सकता है। मेरे प्रियो यहाँ जो वचन आपके समुख रखा गया है उसके अनुसार यहाँ दो बाते विशेष है (1) प्रेम , (2) भाई । इन्ही दो बातो को हम देखेंगे कि हमारा सच्चा मित्र इसी संसार से है या फी यीशु मसीह है।
आप सभी को प्रभु यीशु मसीह
मधुर नाम में जय मसीह की
आज का विषय "यीशु मेरा सच्चा मित्र" आज इसे हम परमेश्वर क वचन से सीखेंगे। यदि आप परमेश्वर के वचन से देखे तो नीतिवचन 17:17 में " मित्र सब समयों में प्रेम रखता है , और विपत्ति के दीन भाई बन जाता है।" बहुत अच्छी बात परमेश्वर के वचन में सुलेमान राजा ने कहा मेरे प्रिय भाइयो और बहनों में आप लोगो से ये कहना चाहती हूँ क्या आपका कोई मित्र है ? यदि हाँ तो कैसी मित्रता है आपकी उनके साथ ? क्या वो आपका सच्चा मित्र है ? इन सारे सवालों के जवाब आपको कही और नहीं बल्कि परमेश्वर के वचन से मिलेंगे । और ये आपको बतायेगा कि आपका सच्चा मित्र कौन हो सकता है। मेरे प्रियो यहाँ जो वचन आपके समुख रखा गया है उसके अनुसार यहाँ दो बाते विशेष है (1) प्रेम , (2) भाई । इन्ही दो बातो को हम देखेंगे कि हमारा सच्चा मित्र इसी संसार से है या फी यीशु मसीह है।
प्रेम - किसी के लिए ये प्रेम शब्द कहने में बहुत सरल है लेकिन क्या अपने कभी इस शब्द का मतलब samjhne की कोशिश कि ? आखिर ये प्रेम है क्या ?
मेरे प्रियो ये प्रेम शब्द कहा से आया किसने किया प्रेम ?
1 यहुन्ना 4: 9 " प्रेम इस में नहीं कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया, परन्तु इसमें है कि उसने हमसे प्रेम किया और हमारे पापों के प्रयाश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा। "
जब हमारा कोई मित्र होता है तो हम उससे प्रेम करते है लेकिन क्या आप जानते है कि जिसे अपने अपना मित्र बनाया है क्या वो भिअप्से वैसा ही प्रेम करता / करती है
1 यहुन्ना 4: 9 " प्रेम इस में नहीं कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया, परन्तु इसमें है कि उसने हमसे प्रेम किया और हमारे पापों के प्रयाश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा। "
जब हमारा कोई मित्र होता है तो हम उससे प्रेम करते है लेकिन क्या आप जानते है कि जिसे अपने अपना मित्र बनाया है क्या वो भिअप्से वैसा ही प्रेम करता / करती है
जैसा आप उससे करते है ? जैसा नितिवचन में लिखा है कि "मित्र सब समयों में प्रेम रखता है" क्या आपका जो मित्र है आपसे हर समयों में प्रेम रखता है ?
नहीं मेरे प्रियो ऐसा नहीं होता शयद ही कोई ऐसा हो जो प्रेम रखे यदि आपके मित्र के साथ आपकी बहस या लड़ाई हो जाये तो वो शयद आपसे बात न करे या फिर आपके और आपके मित्रके बिच में बातचीत बंद हो जाये तो क्या यहाँ पर आपके और आपके मित्र के बिच में प्रेम कहा रहा? परन्तु मेरे प्रियो मेरा और आपका यीशु हमसे प्रेम करता है हम उससे यदि याद न करे भूल जाये फिर भी वो आपको और मुझको स्मरण रखता है और हमसे प्रेम करता है अप और में उससे प्रेम न करे या भूल जाये पर वो हमेशा हमे याद रखता है और हमसे प्रेम करता है। हम इस बात को न भूले कि
*प्रभु यीशु तु मुझे
नहीं मेरे प्रियो ऐसा नहीं होता शयद ही कोई ऐसा हो जो प्रेम रखे यदि आपके मित्र के साथ आपकी बहस या लड़ाई हो जाये तो वो शयद आपसे बात न करे या फिर आपके और आपके मित्रके बिच में बातचीत बंद हो जाये तो क्या यहाँ पर आपके और आपके मित्र के बिच में प्रेम कहा रहा? परन्तु मेरे प्रियो मेरा और आपका यीशु हमसे प्रेम करता है हम उससे यदि याद न करे भूल जाये फिर भी वो आपको और मुझको स्मरण रखता है और हमसे प्रेम करता है अप और में उससे प्रेम न करे या भूल जाये पर वो हमेशा हमे याद रखता है और हमसे प्रेम करता है। हम इस बात को न भूले कि
*प्रभु यीशु तु मुझे

आज बहुत से परिवारों में अशांति और झगड़े है और इन झगड़ों का मुख्य कारण है बहस करना सहनशील ना होना और क्षमा ना करना*
*सच्ची क्षमा अपने ह्रदय में दूसरों के प्रति बदले की भावना और कड़वाहट को ना रखना है*
*परमेश्वर का वचन हमें सिखाता है कि हमें लोगों की गलतियों के प्रति धीरजवन्त होना है*
*इसका अर्थ यह नहीं कि हम लोगों को बिगड़ने के लिए छोड़ दें हां*
*हमें लोगों को समझाना और सिखाना है*
*पर बुद्धिमानी से सबसे महत्वपूर्ण परमेश्वर के मार्गदर्शन के अनुसार*
*क्योंकि हम लोगों को नहीं बदल सकते हैं लेकिन परमेश्वर है जो उन को बदल सकता है*
*मत्ती 19:26*
*यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है*
*बहुत बार हमारे जीवन में भी ऐसी परिस्थितियां आती हैं जिसमें हमें बिल्कुल भी समझ में नहीं आता कि हम क्या करें?*
*अब जब तक हम जिंदा है तब तक शैतान हमें परेशान करेगा ही समस्याएं आएंगे ही*
*लेकिन ऐसी परिस्थितियों में भी हम एक शांतिमय जीवन को कैसे जिए?*
*और इसका कुंजी है क्या*
*इसका कुंजी है केवल परमेश्वर की उपस्थिति*
*परमेश्वर की उपस्थिति 5 मिनट बाइबल पढ़ना 10 मिनट प्रार्थना करने से नहीं आती परमेश्वर की उपस्थिति आती है {उसे खोजने में}*
*और खोजने के लिए दो बातों का होना*
*आवश्यक है पहला अपना ध्यान केवल उसी पर लगाना और दूसरा हमारा समय*
*यशायाह 55:6*
*जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो;*
*उसकी उपस्थिति के लिए हमें कीमत चुकानी पड़ती है और वह है हमारा समय*
*हम परमेश्वर की उपस्थिति में दो बातों के द्वारा प्रवेश करते हैं पहला विश्वास और दूसरा प्रभु यीशु का लहू*
*विश्वास करने के द्वारा हम परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करते हैं*
*इब्रानियों 4:3*
*और हम जिन्हों ने विश्वास किया है, उस विश्राम में प्रवेश करते हैं;*
*यह विश्राम वह स्थान है चाहे हम कैसे भी दर्दनाक परिस्थिति से गुजर रहे हो या अत्यंत दुख और क्लेश में हो पर फिर भी हम अंदर से शांत और आनंद में हो)*
*हम नाना प्रकार के समस्याओं से गुजरते तो हैं पर इसमें हम अकेले नहीं हमारे साथ कोई है*
*रोमियो 8:31*
*सो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है*
*और वह अंत तक हमारे साथ रहेगा वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा*
*महिमा केवल हमारे प्रभु को*