जलता हुआ दीपक"
(क्या मतलब है)
प्रभु यीशु यूहन्ना के बारे में कहते हैं, वह तो 'जलता' और 'चमकता' हुआ दीपक था। यूहन्ना ५:३५
A lamp that burned and gave light - John 5:35
बहुत साल पहले जब में पहली बार नेपाल गया, उस वक्त मैं वहां किसी से परिचित नहीं था। मुम्बई से दिल्ली पहुंचा, और निराश होकर मैं वापस मुम्बई जाने की सोच ही रहा था, तो अचानक एक भाई का फोन आया, बोले आप नेपाल अवश्य जाईये।
खैर में काठमांडू पहुंचा, मैं एक वरिष्ठ मसीही व्यक्ति से मिला, उन्होनें ज्ञान सुनाया, और एक खास बात भी कही, कि किसी विदेशी को लेकर यदि हम गांव में जाते हैं तो गांव का कुत्ता भी उसे पहचान जाता है, और उसी पर भौंकता है।
उनका इशारा शायद गोरे लोगों से था, पर मैं भी कुछ सहम गया, क्योंकि मेरे पहरावे और शकल से अक्सर सड़कों और गांवों के कुत्ते नाराज रहते हैं।
बहरहाल उन्होनें मुझ से पूछा, आप का क्या कार्यक्रम है नेपाल में ? मैंने जवाब दिया, कुछ भी नहीं, मुझे किसी ने निमंत्रण नहीं दिया है।
तब एक बार फिर मुझे ऊपर से नीचे तक देखने के बाद बोले
हम लोग ईस्ट नेपाल जा रहे हैं युथ मीटिंग के लिए क्या आप चलोगे? मैं बहुत उत्साहित हो गया और कुर्सी से उठ बैठा, भाई मेरे पास तो टाइम ही टाइम है, मैं चलूंगा।
विराटनगर से आगे एक छोटे कस्बे में हम पहुंचे।
३ दिन की मीटिंग होगी। मेरे साथी किसी के घर मे रहने चले गए। मैं भी चाहता था पर उन्होंने मना कर दिया। मेरी व्यवस्था बस स्टैंड के पास एक गंदगी भरे छोटे से होटल में हो गई थी।
सारी रात नींद नहीं आयी, कई कारण थे, भयंकर गर्मी, ऊंची छत पर धीमी गति से चलता पंखा। मच्छरदानी के अंदर में, और बाहर मच्छरों का आतंक, कई घंटो तक बिजली गुल, में पसीने में नहाता हुआ।
कमरे से बाहर देर रात को निकला तो अनैतिक धंधों में लगे कुछ लोगों ने घूर कर देखा, तो मैं वापस अंदर आ गया।
शौचालय में न पानी था, न कोई साधन।
फिर भी मैं खुश था। क्यों ?
इसलिए कि मैंने प्रभु से वादा किया था, चाहे कुछ भी हो जाये, कुछ भी मुश्किलात आयें, में शिकायत नहीं करूंगा।
(मुझे लगा, सारी रात मेरी परीक्षा थी)
इस बस्ती में आने के पहले,
काठमांडू में रात को बाजार में घूमते समय में एक बुक स्टोर में गया था, वहां मुझे 'मदर टेरेसा' की एक किताब मिली, शीर्षक "Love of Christ"
उसी रात मैंने वो किताब, पूरी पढ़ ली थी। उनका एक 'quote' था।
"Without our own suffering, any work would just be social work, very good and helpful but it would not be the work of Jesus Christ"
(बिना हमारे स्वयं कष्ट उठाये, हमारी कोई भी सेवा अच्छी समाज सेवा तो हो सकती है, लेकिन वो प्रभु यीशु की सेवा नही कहलाएगी )
उस छोटी बस्ती में बहुत जवानों ने प्रभु को जाना और में लौट आया।
प्रभु यीशु की गवाही यूहन्ना के बारे मैं यह थी कि वो खुद जलकर प्रकाश दे रहा था, सिर्फ एक दर्पण (mirror) की तरह प्रकाश रिफ्लेक्ट नहीं कर रहा था।
सच है,आखिर उसका सर भी काट दिया गया।
इसीलिए प्रभु यीशु कहते हैं,
"जगत की ज्योति मैं हूँ"
और साथ ही
"तुम जगत की ज्योति हो"
यूहन्ना ८:१२, मत्ती ५:१४
प्रभु यीशु का जीवन कुर्बानी का था और उसके अनुयाइयों का जीवन भी कुर्बानी का ही होगा।
हमारी कुर्बानी के अंदर दुनिया को प्रभु यीशु नज़र आयेंगे।
मत्ती ५:१६ "उसी प्रकार तुम्हारा प्रकाश मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें"॥
मैं सबसे अधिक सम्मान उन प्रचारकों का करता हूँ जो सड़कों और गलियों में गवाही देते हैं दुख उठाते हैं, जिन्हें भूख प्यास और गरीबी से वाकफियत है। जिन्हें शायद उनके शहर के बाहर कोई न जाने, उन्हें न अंग्रेज़ी आये, न ही कोई प्रचार करने किसी कन्वेंशन में बुलाये।
वे खुद जलते हैं और प्रकाश भी देते हैं।
आज सवाल है,
जल भी रहे हैं, या बस प्रकाश (ज्ञान) दे रहे हैं ?
Thanks & Regards, SHIV KUMAR
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