Tuesday, 21 August 2018

इस संसार का ध्यान हमारी गलतियों और हमने क्या बुरा किया इस पर रहता है | हम मसीही लोगों को भी यह याद रखना चाहिए कि जब हम पाप करते हैं तब हम परमेश्वर के नाम का अपमान करते हैं | The focus of this world is on our mistakes and what we did bad

इस संसार का ध्यान हमारी गलतियों और हमने क्या बुरा किया इस पर रहता है लेकिन प्रभु का ध्यान हमने क्या गलत किया था हम मे क्या बुराई है इससे कहीं बढ़कर हमें क्या अच्छाइयां हैं हमने क्या अच्छा किया था इसी पर ध्यान रहता है देखें गिनती 12:1-3 मरियम और हारुन ने यह देखा कि मूसा ने क्या गलत किया है लेकिन तीन पद में परमेश्वर तुरंत पवित्र आत्मा के द्वारा यह दिखाता है कि मूसा में क्या अच्छाइयां है गिनती 12:3 मूसा तो पृथ्वी भर के रहने वाले मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।परमेश्वर कहता है कि देख मेरे दास अयूब के समान और कोई नहीं लेकिन शैतान कहता है क्या अयूब परमेश्वर का भय बिना स्वार्थ के मानता है यह स्पष्ट चित्र है कि परमेश्वर हमारे अच्छाइयों को देखता है लेकिन शैतान हमारी बुराइयों को देखता है अब चुनाव हमें करना है कि हम किस की ओर से हैं यदि हम परमेश्वर की ओर से हैं तो हम लोगों की गलतियों से ज्यादा उनके अच्छाइयों पर ध्यान देंगे इसका मतलब यह भी नहीं कि हम लापरवाह हो और उन्हें गलत मार्ग पर जाने दे हां हमें उन्हें समझाना है
लेकिन परमेश्वर के मार्गदर्शन और प्रेम के द्वारा उन्हें समझाना है और उनके लिए प्रार्थना करनी है और परमेश्वर हमें मार्गदर्शन तब देता है जब हम उसे इस वचन के अनुसार खोजते हैं देखें व्यवस्थाविवरण 4:29) पर सबसे मुख्य बात इस पर है कि हम अपना (ध्यान) लोगों की अच्छाइयों पर या उनकी गलतियों पर (लगाए रहते है) आज बहुत से परिवारों में झगड़े और बहुत से लोगों के बीच में कड़वाहट और नफरत है जिसके कारण बहुत से परिवार और रिश्ते टूट रहे हैं और इन सब का एक मुख्य कारण यह भी है कि लोगों की गलतियों पर ध्यान लगाए रहना जब हम लोगों की अच्छाइयों पर ध्यान देंगे हम पाएंगे की उनकी गलतियों से कहीं बढ़कर उनके जीवन में अच्छाइयां हैं कड़वाहट हमें परमेश्वर की उपस्थिति और लोगों से भी दूर रखता है आज लोग एक दूसरे को क्षमा नहीं करते पर कभी हमने इस बात पर ध्यान दिया है कि परमेश्वर हमें कितनी बार क्षमा करता है थोड़ा समय निकालकर सोचें इस विषय में)
और परमेश्वर चाहता है कि जैसा वह हमसे करता है वैसा ही हम दूसरों के साथ करें मत्ती 18:32-33 तब उसके स्वामी ने उस को बुलाकर उस से कहा, हे दुष्ट दास, तू ने जो मुझ से बिनती की, तो मैं ने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया। सो जैसा मैं ने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था? परमेश्वर का वचन हमें सिखाता है बिना मेल मिलाप और पवित्रता कि हम परमेश्वर को देख नहीं सकते हैं और मेल मिलाप के लिए अनिवार्य है की लोगों की गलतियों से कहीं बढ़कर उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देना रोमियो 12:21
बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो॥
      
रोमियो अध्याय 2:17--27 यहूदी, लोग और व्यवस्था  आज का लेख और कल से आगे 17-20 पौलुस यहां इस खंड में यहूदियों को उनके आत्मिक घमंड के लिए व्यंगात्मक रूप से ङाटता है ! वह अलंकारिक रीति से श्रेणियों में क्रमानुसार प्रश्न पूछता है ! एक कट्टर यहूदी परमेश्वर के साथ अपने संबंध के बारे में घमंड करता था ! वह अपने आप पर भरोसा रख करता था ! वह अपने आपको एक उपदेशक एक ज्योति ( प्रकाश ) और एक निर्देशक समझता था ! वह दूसरे लोगों को अंधे मूर्ख और बालक ( शिशु ) समझता था ! यहूदियों के पास उनकी व्यवस्था में ज्ञान और सत्य का नमूना था ! जिसके परिणामस्वरुप वह ईश्वरतत्व लोग बन गए थे !परंतु उनके पास ईश्वरततव ( धार्मिकता ) का सिर्फ बाहरी रुप था उनके पास सच्चा इश्वरततव नहीं था ! पौलुस तीमुथियुस से ऐसे लोगों को वर्णन करते हुए कहता है कि वे भक्ति या ईश्वरतत्व का रूप को धारण करेंगे परंतु उसकी शक्ति को नहीं मानेंगे ! 21-23 -पौलुस यहां यहूदियों की गलतियां बताता है ! पौलुस उन्हें पाखंडी कहता है ! वे जो काम दूसरे लोगों को करने के लिए कहते हैं उन्हें वे खुद नहीं करते हैं ! एक और जहां वे व्यवस्था के बारे में घमंड करते हैं वहीं दूसरी और वे व्यवस्था का निरंतर - उल्लंघन करते हैं ! यीशु ने भी मती के अध्याय 23 में ऐसे यहूदियों को पाखंडी कहा ! तू जो मूर्तियों से घृणा करता है क्या आप खुद मंदिरों को लूटता है ? पौलुस यह प्रश्न पूछता है ! इसका उत्तर है, हां !कुछ यहूदियों ने अन्यजातियों के मंदिरों को तोड़कर मूर्तियों को चुराया था उन्हें बेचने के लिए ! 24 -पौलुस यहां यशायाह 52:5 से उद्धरण प्रस्तुत करता है !जिस प्रकार पुत्र का बुरा व्यवहार पिता का अपमान करता है उसी प्रकार यहूदियों के बुरे व्यवहार परमेश्वर को अपमानित करते थे ! हम मसीही लोगों को भी यह याद रखना चाहिए कि जब हम पाप करते हैं तब हम परमेश्वर के नाम का अपमान करते हैं ! 25 - खतना पुरुष लिंग के ऊपर की अतिरिक्त चमड़ी को काटकर अलग करना है ! परमेश्वर ने यह आज्ञा दी थी कि सभी यहूदी पुरुष या नर शिशुओं का उनके जन्म के आठवें दिन खतना किया जाए ! खतना इस बात का एक बाहरी शारारिक चिन्ह था कि वह पुरुष एक यहूदी अर्थात परमेश्वर की चुनी हुई जाति का एक सदस्य था ! वास्तव में खतना अपने आप मे कोई लाभप्रद विधि नहीं है ! यह सिर्फ इस बात का बाहरी चिन्ह था कि जो किसी व्यक्ति के यहूदी होने का परिचय देता था ! यदि कोई यहूदी व्यवस्था का उल्लंघन करता था तो वह परमेश्वर के साथ अपना विशेष संबंध गवा देता था ! जिसका प्रत्येक खतना था ! तब उस यहूदी की स्थिति ऐसी हो जाती थी कि जैसे उसका कभी खतना नहीं किया गया था ! इसके परिणामस्वरुप वह खतना रहित हो जाता था ! परमेश्वर बाहरी मनुष्य को नहीं देखता है जबकि वह भीतरी मनुष्य अर्थात मनुष्य के हृदय को देखता है ! परमेश्वर के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपने हृदय से उसकी आज्ञा माने ! यदि हमारा हृदय शुद्ध या सही है तो हमारी बाहरी गतिविधियां भी सही होंगी !26 -पौलुस यहां एक अन्य अलंकारिक प्रश्न पूछता है यदि खतनारहित लोग ( अर्थात अन्य जाति के लोग ) यहूदी व्यवस्था का पालन करेंगे तो क्या वे खतना किए हुए लोगों में नहीं गिने जाएंगे !इसका उत्तर है, हा ! पौलुस का कथन यह है कि व्यवस्था का पालन करने वाला अन्यजाति का व्यक्ति परमेश्वर के साथ एक यहूदी समान ही स्थान प्राप्त करेगा ! 27 -सिर्फ इतना ही नहीं यदि शारारिक तौर से खतनारहित व्यक्ति ( अन्यजाति का व्यक्ति ) परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करता है वह उस खतना पाए हुए यहूदी व्यक्ति को जो व्यवस्था का उल्लंघन करता है दंड देगा ! 28--29 -इसलिए सिर्फ बाहरी तौर पर यहूदी होने से कोई लाभ नहीं है कोई अर्थ नहीं है ! कोई व्यक्ति एक सच्चा यहूदी केवल तब होता है जब वह आंतरिक तौर पर अपने हृदय से यहूदी होता है ! इसी समान कारण से सच्चा खतना सिर्फ एक बाहरी या शारारिक चीज नहीं बल्कि एक आंतरिक बात है ! सच्चा खतना आत्मा के द्वारा हृदय का किया गया खतना है ! सच्चा खतना हमारे हृदय से पाप और बुराई को काटकर अलग दूर करना है  !जिस प्रकार कोई व्यक्ति केवल बाहरी तौर पर यहूदी नहीं होता है उसी प्रकार कोई व्यक्ति केवल बाहरी तौर पर मसीही नहीं होता है ! यहूदी लोग उन लोगों से प्रशंसा की अपेक्षा करते थे जो सिर्फ बाहरी बातों को देखते थे ! उस प्रशंसा की तलाश करना अधिक बेहतर जो सब कुछ देखने वाले परमेश्वर की ओर से आती है ! उस प्रशंसा की गणना या गिनती होती है !