क्या इस आदमी को पहचान रहे हैं ?
आपसे पूछ रहा हूँ,
(जिसकी शकल आपने बिगाड़ दी थी, शायद पहचान न पाओ)
(प्रकाशितवाक्य 2,3 में प्रभु यीशु के स्वयं परिचय )
1. मैं वही हूँ जो सातों तारे अपने दाहिने हाथ में लिए हुए हूँ और सोने की सातों दीवटों के बीच में फिरता हूँ
- चरनी की गंदगी में पैदा हुए यीशु का हमशकल ?
2. मैं प्रथम और अन्तिम हूँ जो मर गया था और अब जीवित हो गया हूँ
- आपकी कुर्सी टेबल बनाने वाला नासरत का बढ़ई ?
3. मैं वही हूँ जिस के पास दोधारी और चोखी तलवार है
- जिसे धक्के और गालियां देकर आराधनालय से निकाला था , वही है ?
4. मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ जिस की आंखे आग की ज्वाला की नाईं, और जिस के पांव उत्तम पीतल के समान हैं
- जिसे थप्पड़ मारे और मुंह पर थूका था, वही तो नही ?
5. मैं वही हूँ जिस के पास परमेश्वर की सात आत्माएं और सात तारे हैं
-वो यीशु तो नहीं, जिसे धोखेबाज़ कहा था, और शैतान का सरदार सोचा था ?
6. मैं वही जो पवित्र और सत्य हूँ और जो दाऊद की कुंजी रखता हूँ, जिस के खोले हुए को कोई बन्द नहीं कर सकता और बन्द किए हुए को कोई खोल नहीं सकता है।
- आपके पांव धोनेवाला प्रभु यीशु ?
7. मैं जो आमीन, और विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह हूँ, और परमेश्वर की सृष्टि का मूल कारण हूँ
- जिसे आपने क्रूस पर चढ़ाया ?
वह शून्य बन गया, अपने आप को "मनुष्य का पुत्र" कहलाना पसंद किया,
वो इसलिए कि - मुझे, तुम धक्के दो, मंदिरों से निकालो, पत्थरवाह करो, थप्पड़ मारो, गलियों दो, और मेरा कत्ल कर दो, मैं सह लूंगा, तुम्हें क्षमा भी करूँगा। मैं इसलिए आया हूँ, की तुम जीवन पाओ और बहुतायत का जीवन पाओ )
आज सवाल है,
धर्म का मार्ग*
हल पर हाथ रखने का निर्णय लेना आसान है, परन्तु अंत तक हल पर हाथ रखे रहना मुश्किल है| इंसान धर्म की कठिन राह पर चल तो पड़ता है, परन्तु मंज़िल तक पहुंचना सबके बस की बात नहीं| सच्चाई के रास्ते पर चलकर दुःख उठाना, दौलत कमाने की अंधी दौड़ में पीछे रह जाना, क्या अब भी तू अपने खराई पर बना है, जैसे प्रश्नों का सामना करना इंसान को निराश करता है| अहम् पद पर पहुंच कर ईमानदारी का दामन थामे रहना, इस ज़माने में बेबकूफ़ी समझी जाती है| दुखों की मझधार में अपने भी किनारा करने लगते हैं| लोग सवाल पूछते हैं, ईमानदारी का हासिल क्या है? जब आप ख़यालों के दोराहे पर आकर ठिठक कर रुक जाते हैं| तब संसार और शैतान कहते हैं, हमारा दरवाज़ा अब भी खुला है| दूसरी तरफ आपके हाथ में आपका हल है| फ़ैसले की घड़ी हर एक की ज़िन्दगी में आती है| एक तरफ दौलत, शौहरत और दिमागी सुकून है तो दूसरे तरफ तंगहाली, चिंता और परेशानी है| आप किसके साथ जीना चाहते हैं| कभी ना कभी हल पर से हाथ हटाने का ख़याल दिमाग़ में मचलने लगता है |यही वो लम्हा है, जहां उफनते सैलाब में आपको लंगर डालने की ज़रूरत होती है| अय्यूब 17:9 में लिखा है--तौभी धर्मी लोग अपना मार्ग पकड़े रहेंगे; और शुद्ध काम करने वाले सामर्थ पर सामर्थ पाते जायेंगे| धर्म की राह को हर हाल में पकड़े रहना आपकी ज़िन्दगी का मकसद है| ईमानदारी की रोटी में जो सुकून है, वो बेईमानी के लज़ीज़ खाने में नहीं| ईमानदारी की रोटी पर आप पूरी ईमानदारी से दुआ मांग सकते हैं| उस दुआ में आपका विवेक आपको कचोटेगा नहीं है|
हल पर हाथ रखने का निर्णय लेना आसान है, परन्तु अंत तक हल पर हाथ रखे रहना मुश्किल है| इंसान धर्म की कठिन राह पर चल तो पड़ता है, परन्तु मंज़िल तक पहुंचना सबके बस की बात नहीं| सच्चाई के रास्ते पर चलकर दुःख उठाना, दौलत कमाने की अंधी दौड़ में पीछे रह जाना, क्या अब भी तू अपने खराई पर बना है, जैसे प्रश्नों का सामना करना इंसान को निराश करता है| अहम् पद पर पहुंच कर ईमानदारी का दामन थामे रहना, इस ज़माने में बेबकूफ़ी समझी जाती है| दुखों की मझधार में अपने भी किनारा करने लगते हैं| लोग सवाल पूछते हैं, ईमानदारी का हासिल क्या है? जब आप ख़यालों के दोराहे पर आकर ठिठक कर रुक जाते हैं| तब संसार और शैतान कहते हैं, हमारा दरवाज़ा अब भी खुला है| दूसरी तरफ आपके हाथ में आपका हल है| फ़ैसले की घड़ी हर एक की ज़िन्दगी में आती है| एक तरफ दौलत, शौहरत और दिमागी सुकून है तो दूसरे तरफ तंगहाली, चिंता और परेशानी है| आप किसके साथ जीना चाहते हैं| कभी ना कभी हल पर से हाथ हटाने का ख़याल दिमाग़ में मचलने लगता है |यही वो लम्हा है, जहां उफनते सैलाब में आपको लंगर डालने की ज़रूरत होती है| अय्यूब 17:9 में लिखा है--तौभी धर्मी लोग अपना मार्ग पकड़े रहेंगे; और शुद्ध काम करने वाले सामर्थ पर सामर्थ पाते जायेंगे| धर्म की राह को हर हाल में पकड़े रहना आपकी ज़िन्दगी का मकसद है| ईमानदारी की रोटी में जो सुकून है, वो बेईमानी के लज़ीज़ खाने में नहीं| ईमानदारी की रोटी पर आप पूरी ईमानदारी से दुआ मांग सकते हैं| उस दुआ में आपका विवेक आपको कचोटेगा नहीं है|