Friday, 18 April 2025

यीशु जिंदा हो गया देखो ओ यहां नहीं है परन्तु ओ मुर्दों में से जी उठा है

 यीशु जिंदा हो गया देखो ओ यहां नहीं है परन्तु ओ मुर्दों में से जी उठा है 
मरकुस 16 का एक 
जब सब्त का दिन बीत गया, तो मरियम मगदलीनी और याकूब की माता मरियम और शलोमी ने सुगन्धित वस्तुएं मोल ली, कि आकर उस पर मलें।
मरकुस 16 का दो 
और सप्ताह के पहिले दिन बड़ी भोर, जब सूरज निकला ही था, वे कब्र पर आईं।
मरकुस 16: का तीन 
और आपस में कहती थीं, कि हमारे लिये कब्र के द्वार पर से पत्थर कौन लुढ़ाएगा?
मरकुस 16 : 4
जब उन्हों ने आंख उठाई, तो देखा कि पत्थर लुढ़का हुआ है! क्योंकि वह बहुत ही बड़ा था।
मरकुस 16: 5
और कब्र के भीतर जाकर, उन्हों ने एक जवान को श्वेत वस्त्रा पहिने हुए दहिनी ओर बैठे देखा, और बहुत चकित हुई।
मरकुस 16: 6
उस ने उन से कहा, चकित मत हो, तुम यीशु नासरी को, जो क्रूस पर चढ़ाया गया था, ढूंढ़ती हो: वह जी उठा है; यहां नहीं है; देखो, यही वह स्थान है, जहां उन्हों ने उसे रखा था।
मरकुस 16: 7
परन्तु तुम जाओ, और उसके चेलों और पतरस से कहो, कि वह तुम से पहिले गलील को जाएगा; जैसा उस ने तुम से कहा था, तुम वही उसे देखोगे।
मरकुस 16: 8
और वे निकलकर कब्र से भाग गईं; क्योंकि कपकपी और घबराहट उन पर छा गई थीं और उन्हों ने किसी से कुछ न कहा, क्योंकि डरती थीं।।
मरकुस 16: 9
सप्ताह के पहिले दिन भोर होते ही वह जी उठ कर पहिले पहिल मरियम मगदलीनी को जिस में से उस ने सात दुष्टात्माएं निकाली थीं, दिखाई दिया।
मरकुस 16: 10
उस ने जाकर उसके साथियों को जो शोक में डूबे हुए थे और रो रहे थे, समाचार दिया।
मरकुस 16: 11
और उन्हों ने यह सुनकर की वह जीवित है, और उस ने उसे देखा है प्रतीति न की।।
मरकुस 16: 12
इस के बाद वह दूसरे रूप में उन में से दो को जब वे गांव की ओर जा रहे थे, दिखाई दिया।
मरकुस 16: 13
उन्हों ने भी जाकर औरों को समाचार दिया, परन्तु उन्हों ने उन की भी प्रतीति न की।।
मरकुस 16: 14
और उस ने उन से कहा, तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो।
मरकुस 16: 15
जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उद्धार होगा, परन्तु जो विश्वास ने करेगा वह दोषी ठहराया जाएगा।
मरकुस 16: 16
और विश्वास करनेवालों में ये चिन्ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे।
मरकुस 16: 17
नई नई भाषा बोलेंगे, सांपों को उठा लेंगे, और यदि वे नाशक वस्तु भी पी जांए तौभी उन की कुछ हानि न होगी, वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएंगे।
मरकुस 16: 18
निदान प्रभु यीशु उन से बातें करने के बाद स्वर्ग पर उठा लिया गया, और परमेश्वर की दहिनी ओर बैठ गया।
मरकुस 16: 19
और उन्हों ने निकलकर हर जगह प्रचार किया, और प्रभु उन के साथ काम करता रहा, और उन चिन्हों के द्वारा जो साथ साथ होते थे वचन को, दृढ़ करता रहा। आमीन।।

                                                      

Thursday, 17 April 2025

Good Friday In Hindi वाणी यीशु ने जो क्रूस पर कही

पहली वाणी यीशु ने जो क्रूस पर कही 
यह एक सजीव दृश्य है, जहाँ एक भीड़ है, जो गुस्से में भरी हुई है। यीशु के पार हो रहे इस असहनीय क्षण में, जब उसके कपड़े चिट्ठियों द्वारा बांटे जा रहे हैं, उसकी आवाज़ एक अद्भुत शांति का प्रतीक बन जाती है। वे क्षण, जब एक व्यक्ति अपार पीड़ा सहते हुए भी, दया और करुणा की बात करते हैं, मानवता के लिए एक बड़ा सबक है।
यीशु का यह बयान, 'हे पिता, इन्हें क्षमा कर,' सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक गहन भावनाओं से भरा अनुरोध है। यह एक ऐसा क्षण है जब उसके हृदय में नफरत या प्रतिशोध का स्थान नहीं था। उसकी शब्दों में आशीर्वाद का संदेश है, जो आज भी हमें प्रेरित करता है कि वास्तविक बलिदान वही है, जिसमें प्रतिशोध के भावनाओं को त्यागकर, क्षमा देने का निर्णय लिया जाता है।
इस क्षण को समझना आसान नहीं है। मानवता हमेशा से अपने स्वार्थ और ईर्ष्या के कारण युद्ध, भेदभाव और अन्याय की ओर बढ़ती रही है। लेकिन यीशु के इस क्षणिक उदाहरण से हम सीखते हैं कि सच्ची शक्ति वह है, जो दूसरों को क्षमा करने में होती है। उसके छोड़े गए कपड़े किसी ऐसे व्यक्ति का प्रतीक हैं, जिसने अपने कपड़े भी दूसरों के लिए बांट दिए, और चाहे वह क्षण कितना भी कठिन क्यों न था, उसने हमेशा प्यार और दया को प्राथमिकता दी।
यीशु के इस बयान के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि हमें भी अपने जीवन में क्षमा का अभ्यास करना चाहिए। यह केवल दूसरों को नहीं, बल्कि खुद को भी मुक्त करने का एक साधन है। जब हम क्षमा करते हैं, तो हम अपने हृदय से उन सभी नकारात्मक भावनाओं को निकाल देते हैं, जो हमें बांधकर रखती हैं। इसलिए, इसका संदेश हमें यह सिखाता है कि जीवन में कभी-कभी हमें कठिनाई और अपमान के बावजूद भी क्षमा का रास्ता चुनना चाहिए।
समाप्ति में, इस अद्भुत क्षण की गूंज आज भी हमारे जीवन में जीवित है। यीशु का यह अपील केवल क्षमा की नहीं, बल्कि मानवता के प्रति एक अनमोल प्रेम का प्रतीक है। हम सबको चाहिए कि हम अपने जीवन में भी इस प्रेम और दया का अनुसरण करें ताकि हम अपने चारों ओर एक ऐसा वातावरण बना सकें जिसमें एक दूसरे की क्षमा और समझ बनी रहे।

दूसरी वाणी जिसे यीशु ने क्रूस कही
यीशु ने क्रूस पर लटकते हुए अपने अंतिम क्षणों में जो शब्द कहे, उनमें हमारे लिए गहराई से निहित अर्थ है। लूका 23:43 में लिखा है, 'मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।' यह वाक्य न केवल मरते हुए व्यक्ति को आश्वासन देता है, बल्कि यह विश्वास और उद्धार की शक्तिशाली घोषणा भी करता है।
जब यीशु ने यह कहा, वह व्यक्ति अपराधी था, जिसने जीवन में कई गलतियाँ की थीं। लेकिन यीशु की दया और क्षमा उसकी पहचान बदल देती है। यह हमें याद दिलाता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे उसका अतीत कितना भी बुरा क्यों न हो, प्रभु की कृपा और प्रेम से वंचित नहीं है। यह वचन मनुष्य की क्षमा, पुनरुत्थान और नये जीवन का संदेश देता है।
यीशु का यह वचन यह भी बताता है कि स्वर्गलोक में प्रवेश पाना केवल विश्वास के माध्यम से संभव है। जब अपराधी ने यीशु की पहचान को पहचाना और उन्हें अपना उद्धारकर्ता माना, तब यीशु ने उसे तुरंत आश्वासन दिया। यह सुनिश्चिता दर्शाती है कि प्रभु का प्रेम कितना व्यापक है। हमारे विश्वास की शक्ति, हमें प्रभु के निकट लाती है।
इस वचन में समय का एक गहरा रहस्य भी है। 'आज ही तू', ऐसा कहना यह दर्शाता है कि मृत्यु कोई अंत नहीं है, बल्कि एक नया आरंभ है। यीशु की उपस्थिति में, मृत्यु का भय मिट जाता है और विश्वासियों को जीवन का एक नया दृष्टिकोण मिलता है। यह वचन हमें यह समझाने में मदद करता है कि मृत्यु के बाद की जीवन यात्रा, विश्वास और विश्वास में होती है।
जब हम इस वचन को अपने जीवन में ग्रहण करते हैं, हमें यह अहसास होता है कि जीवन में संकटों और कठिनाइयों में भी, यीशु का प्रेम कभी समाप्त नहीं होता। वह हमारे साथ हर कदम पर होती हैं, हमें मार्गदर्शन करती हैं और हमें अपने सामर्थ्य से भर देती हैं। क्रूस पर यीशु का यह वचन हमें आश्वस्त करता है कि प्रभु का प्यार हमें हर परिस्थिति में घेरे हुए है।
अंत में, यीशु की यह दूसरी वाणी हमें आत्मिक दृढ़ता और साहस प्रदान करती है। इसे सुनकर, हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारा उद्धार केवल यीशु के माध्यम से संभव है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम स्वर्गलोक की ओर देख सकें और अपनी खोई हुई राह को फिर से खोज सकें। यीशु के साथ, जीवन का हर क्षण अनमोल है।
तीसरी वाणी : जिसे यीशु ने क्रूस पर कही ।
यूहन्ना 19:26-27 एक अत्यंत गहन और भावनात्मक क्षण का वर्णन करता है, जहाँ यीशु क्रूस पर लटके हुए अपनी माता के पास खड़े होने वाले चेले से बात कर रहे हैं। यह क्षण प्यार, देखभाल और परिवार के महत्व को उजागर करता है।
जैसे-जैसे यीशु ने अपनी माता की तरफ देखा, उनकी आँखों में एक अदभुत स्नेह था, जो न केवल उनके रक्त संबंध को दर्शाता था, बल्कि एक गहरी समझ और सहयोग को भी। यीशु ने अपनी माता से कहा, 'हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।' इस वाक्य में केवल शब्द नहीं, बल्कि जज़्बात थे, जो यह दर्शाते हैं कि परिवार की सुरक्षा और देखभाल कितनी महत्वपूर्ण होती है, भले ही परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
फिर, उन्होंने उस चेले से कहा, 'यह तेरी माता है।' यह बात केवल पारिवारिक बंधनों को संदर्भित नहीं करती, बल्कि एक नए बंधन की स्थापना भी करती है। यीशु ने अपने चेले को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी, जिससे उस चेले का जीवित रहना केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से भी विकसित कर सके।
इस तरह, यीशु ने अपने प्रेम को व्यावहारिकता में बदल दिया। यह स्पष्ट है कि वे अपने प्रियजनों के भले के लिए चिंतित थे, यहाँ तक कि अपनी अंतिम घड़ियों में भी। उनका संदेश एक नई परिभाषा का संचार करता है कि कैसे हमें एक-दूसरे का ख्याल रखना चाहिए, और एक-दूसरे के प्रति हमारी जिम्मेदारियाँ कैसे बदल सकती हैं।
यूहन्ना 19:26-27 हमें यह सोचने को मजबूर करता है कि हम अपने जीवन में आपसी प्रेम और समर्थन को कैसे बढ़ा सकते हैं। मां और बेटे का बंधन, और चेहरे और गुरु का संबंध हमें यह सिखाता है कि हम किस प्रकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए भी प्रेम को प्राथमिकता दे सकते हैं। रिश्तों की इस खिचड़ी में एक नया अध्याय जोड़ते हुए, यीशु ने हमें यह नसीहत दी कि हम अपने परिवार की भलाई को हमेशा सर्वोपरी रखें।
यही शिक्षाएँ हमें आज भी प्रेरित करती हैं, चाहे हमारे परिवेश कितने भी भिन्न क्यों न हों। इस संवाद के माध्यम से, यीशु ने हम सभी को यह याद दिलाया कि प्रेम और देखभाल की अभिव्यक्ति जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है, और इसी के माध्यम से हम स्वयं को और अपने आस-पास के लोगों को सशक्त बना सकते हैं।

यीशु की चौथी वाणी, जो वह क्रूस पर कहा करते थे, हमें उस गहन दर्द और निराशा का एहसास कराती है जो उन्होंने महसूस की थी। यह वाणी 'इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी' है, जिसका अर्थ है 'हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?' यह शब्द हमें यीशु के अनुभव का एक झलक देते हैं जब उन्होंने मानवता के पापों का भार अपने ऊपर लिया।
तीसरे पहर के समय, जब यीशु क्रूस पर थे, आस-पास के लोग उनके दर्द को देख रहे थे, लेकिन उनके दिल में क्या चल रहा था, यह केवल उन्होंने ही समझा। यह एक ऐसा पल था, जब भगवान की उपस्थिति के साथ भी, वह एक गहरे अकेलेपन का शिकार हो गए। यह उन लोगों के लिए एक स्पष्ट संकेत था कि यीशु को भी मानव भावनाओं का अनुभव करना पड़ा, जिसने उन्हें हमारी मानवता के लिए एक गहरा संबंध बनाया।
जब यीशु ने यह बात कहीं, तब केवल वह अपने भगवान की ओर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे। इस वक्त में यह स्पष्ट होता है कि उनकी प्रार्थना उस समय गहराई से थी। वह पूरी धरती के लिए बलिदान बन गए थे, और अपनी वाणी में उन्होंने हमें दिखाया कि दु:ख के समय में भी भगवान से संपर्क बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
यीशु के इस शोक की वाणी ने न केवल उनके जीवन को प्रस्तुत किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि हमारे लिए उनके बलिदान का क्या महत्व है। यीशु ने हमारी सभी दु:खों और हमारी भावनाओं का अनुभव किया। उनका यह संदेश हमें यह सिखाता है कि जब हमें भी ऐसा महसूस हो कि हम अकेले हैं, तब हमें भी अपने ईश्वर की ओर मुड़ने का साहस रखना चाहिए।
इस वाणी का गहन अर्थ हमें यह भी सिखाता है कि ईश्वर हमेशा हमारे साथ है, भले ही हमें कभी-कभी ऐसा महसूस हो कि हम असहाय हैं। यीशु ने हमें इस अद्भुत सच्चाई को दिखाया है कि भगवान हमारे दु:खों को समझते हैं और हमारा साथ नहीं छोड़ते। उनकी यह वाणी हमें प्रेरित करती है कि हम कभी भी अकेले नहीं होते, क्योंकि भगवान ने हमें कभी छोड़ने का वादा नहीं किया।
आत्मा के इस संकट के माध्यम से, हम जान सकते हैं कि जब भी हम असहाय होते हैं, हम अपनी पीड़ाओं को भगवान के सामने रख सकते हैं। यीशु का यह संदेश उन सभी के लिए आशा का एक स्रोत बन सकता है जो जीवन के कठिन समय का सामना कर रहे हैं। इसलिए, यह वाणी केवल यीशु की पीड़ा का वर्णन नहीं करती, बल्कि यह हमें यह विश्वास भी दिलाती है कि ईश्वर हमेशा हमारे साथ हैं।

पाँचवी वाणी : जिसे प्रभु यीशु ने क्रूस पर कही ।
          " मैं प्यासा हूं  "
यूहन्ना 19:28 इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिये कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कहा, मैं प्यासा हूं।
जब प्रभु यीशु ने क्रूस पर अपने अंतिम पल बिताए, तब उन्होंने एक गहरी और अर्थपूर्ण वाणी कही, "मैं प्यासा हूं।" यह शब्द न केवल शारीरिक पीड़ा का परिचायक थे, बल्कि आत्मिक व्यथा और अधूरेपन की भी गूंज थे। उनके इस उच्चारण से यह ज्ञात होता है कि वह केवल मृत्यु के निकट नहीं थे, बल्कि चेष्टा कर रहे थे कि सभी पवित्र शास्त्र की बातों को पूरा करें।
यह वाणी हमें यह याद दिलाती है कि, भौतिक सूखापन के अलावा, आत्मिक प्यास भी होती है। यीशु का यह कथन एक उद्धरण के रूप में कार्य करता है, जो हमें सिखाता है कि सच्ची तृप्ति केवल ईश्वर की उपस्थिती में मिलती है। जब वह कहते हैं, "मैं प्यासा हूं," तो यह इस बात का संकेत है कि हमारे जीवन में ईश्वर की आवश्यकता कितनी अहम है।
इस क्षण में, एक पवित्र और पूर्ण उद्धार का कार्य पूरा हुआ। यीशु का यह वाक्य हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपनी आत्मिक प्यास को पहचानें और उसे शांत करने के लिए परमेश्वर की ओर बढ़ें। जब हम उन पर भरोसा करते हैं और उनके द्वारा प्रदान किए गए पानी से अपनी आत्मा को तृप्त करते हैं, तब हमें सच्चा जीवन और संतोष प्राप्त होता है।
अंत में, यीशु का "मैं प्यासा हूं" इस गूढ़ संदेश की ओर आग्रह करता है कि हमें उस स्रोत की तलाश करनी चाहिए, जो हमारी आत्मिक प्यास को पूरी तरह से मिटा सके। इसलिए, इस अंतिम वाणी में निहित गहनता का अनुभव करें और इसे अपने जीवन में लागू करने का प्रयास करें।
                                                          

three types of sins तीन प्रकार के पाप बाईबल से जाने

                तीन प्रकार के पाप
पहला पाप - अनुवांशिक पाप आदम और हवा का पापी स्वभाव जो वंशानुगत तरीके से हमारे जीवन में पाया जाता है।
दूसरा पाप - हमारे द्वारा जानबूझकर किये गये पाप। 
तीसरा पाप - परमेश्वर की आज्ञाओ को न मानना। 
जो पाप हमारे द्वारा किए गये उन्हें क्षमा करके यीशु मसीह ने हमारे हृदयों में बयाने के रूप में अपनी आत्मा को दिया है जो हे अब्बा हे अब्बा हे पिता पुकारती हैं। 
हमें अपने लहूँ से धोकर आदम और हवा द्वारा किए गए पाप जो हमारे जीवन में वंशानुगत तरीके से थे हमें उससे छुटकारा दिया और हमें उस वंश से निकालकर अपने वंश में अर्थात् उसके खून से साफ हुए लोगो के झुंड में मिलाया अब हम एक चुना हुआ वंश और परमेश्वर के बेटे बेटियाँ है। 
(2) राजपद धारी - राजपदधारी का मतलब हैं राज्य करने का अधिकार धारण करने वाला । राज्य का अधिकार केवल राजा ही धारण करता है अर्थात् हम ( प्रत्येक विश्वासी)  अर्थात् राज्य करने का अधिकार करने वाले हैं। अर्थात् हम राजा है। ( प्र . वा 1:6,5:10)
(3) पवित्र लोग - प्रभु यीशु मसीह द्वारा हमें अपने वचनों से पवित्र किया गया है ( यूहनां 15:13 ) हम पवित्र इसलिए हैं कयोंकि -(1) येशु के लहु से धुलकर शुद्ध और पवित्र हुए हैं। (2) मसीह यीशु के वचनों को सुनकर या पढ़कर हम जो वचन पालन करते हैं तो हम इस वचन के द्वारा शुद्ध होते है इसलिए हम विश्वासी पवित्र है। 
(4) परमेश्वर की निज प्रजा - हम सब विश्वासी परमेश्वर की निज प्रजा है। अधीनता एवं आज्ञापालन का जीवन ही मनुष्य को किसी के भी आधीन कर सकता है जिस तरह राजा के अधीन प्रजा होती है और राजय के कानुनो का पालन करती हैं उसी तरह यदि विश्वासी प्रभु के कानुन का पालन करता है तो वह उसकी प्रजा बन जाता है। 
(5) याजकों का समाज - याजक सुनकर ऐसा लगता है जैसे कोई लंबा चोड़ा पहने हुए पटुआ बांधे हुए कोई वह व्यक्ति बड़ी दाड़ी रखे हुए होगा लेकिन हम इससे हटकर बगैर ऐसी वेशभूषा और रूप वाले याजक हैं। 
पुराने नियम में तीन प्रकार के लोग 
(1) साधारण लोग ( 11 गोत्र इसत्राएल के) 
(2) लेवी ( परमेश्वर के तम्बू की सेवा करने वाले लेवी गोत्र के लोग) 
(3) याजक ( हारुन जो कि लेवी के गोत्र का था और उसके बेटे)
(1) 11 गोत्र ( साधारण लोग - लेमेन)- इसत्राएल देश को परमेश्वर ने 11 क्षेत्रों में बांटकर सारी भूमि 11 गोत्रों के लोगों को दी थी। इस भूमि में जो भी फसल एवं पशु होते हैं उनका दसमांश वे लोग परमेश्वर के तम्बू की सेवा करने वाले लेपियों को देते थे एवं पापबली, मेलबली, अननबली आदि बली वस्तु मंदिर में ले जाकर याजकों द्वारा परमेश्वर को चढ़ाते थे। प्रिय पाठको मंदिर व तंबू में परमेश्वर के समुख पैसा था  नगदी नहीं दिखाई जाती थी ( गिनती 18:26-27) परमेश्वर के समुख केवल बलिदान चढ़ाए जाते थे। 
(2) लेबी गोत्र - यह गोत्र परमेश्वर के तम्बू की सेवा करता था और परमेश्वर की सेवा के लिए अलग किया गया था। इसत्राएल के 11 गोत्र लेवियों को फसल एवं पशु का दशमांश देते थे और  लेवि गोत्र इस दशमांश उठाने की भेंट के रूप में याजको को देते थे। ( गिनती 3:5-8, 18:21-32)
इस तरह जीविकोपार्जन हेतु लेवियों को दशमांश एवं याजको को उठाने की भेंट प्राप्त होती हैं। 
(3) याजक- लेवी गोत्र के हारून महायाजक एवं उसके कुल के लोग ही याजक की सेवा करते थे। इन्हें लेवियों से उठाने की भेंट प्राप्त होती थी तथा बली पशु की मांस का कुछ हिस्सा और अर्पूण की हुई वस्तुएं। ( लैवय 10:8 - 20, गिनती 3:10)
इस तरह बाइबल यह बताती हैं कि - 
11 गोत्र - फसल एवं पशु व्यवसाय करते थे। 
लेवी - परमेश्वर व तंबू की सेवा करते थे। 
याजक - बलिदान चढ़ाने का कार्य करते थे। 
नये नियम में एक समाज - याजको का समाज
संर्पूण विश्व की लगभग 6500 जातियों के लोग जो इसत्राइली नहीं है उन्हें परमेश्वर ने पुत्र मसीह पर विश्वास लाने के चलते याजक पद नियुक्त किया है। वे अपनी ही जाती के हैं वे परमेश्वर के याजक हैं। 
नये नियम में केवल एक समाज - नये नियम की कलीसिया में केवल चुने हुए लोग हैं जो कि संसार से प्रभु की दया द्वारा निकलकर उद्वार प्राप्त कर मसीह की देह ( कलीसिया) में शामिल होते हैं। वह याजक बन जाते हैं वह एक साधारण व्यक्ति नहीं रहते परंतु परमेश्वर उस  व्यक्ति को याजक बना देते हैं।
                                                                  


प्रभु यीशु की चिंता हमारे जीवन में जैसे सूरज की पहली किरण होती है

 प्रभु यीशु की चिंता हमारे जीवन में जैसे सूरज की पहली किरण होती है, जो हमें अंधकार से निकालती है। जब जीवन की कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ हमें घेरे रहती हैं, तब हमें यह जानने की आवश्यकता होती है कि हमारे साथ कोई है जो सचमुच हमारी परवाह करता है। यीशु की प्रेमपूर्ण उपस्थिति हमें प्रेरणा देती है, हमें साहस देती है और हमारी समस्याओं का समाधान ढूँढने में सहायता करती है।

प्रभु यीशु का सन्देश हमेशा स्नेह और सहानुभूति से भरा होता है। जब हम किसी कठिनाई से गुजरते हैं, तो यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि वह हमारे हृदयों की गहराइयों में बसे हुए हैं। उनकी चिंता केवल हमारे भौतिक कल्याण के लिए नहीं है, बल्कि वह हमारी आत्मा के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। जब हम प्रार्थना करते हैं और उनके प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं, तो हम उनके प्रेम के एक नए स्तर का अनुभव करते हैं।
कई बार हम अपनी चिंताओं में इतने डूब जाते हैं कि हमें बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिखता। इस समय, प्रभु यीशु हमें याद दिलाते हैं कि हमें उसकी ओर देखने की आवश्यकता है। उनकी प्रेरणा से, हम अपनी चिंताओं को उनके पास लेकर जा सकते हैं। यह एक पक्षी के उड़ान भरने जैसा है - जैसे वह अपनी चिंता को भूलकर आसमान में उड़ता है, ठीक उसी तरह हम भी अपने डर और संदेह को उनसे दूर कर सकते हैं।
जब हम खुद को प्रभु यीशु की देखभाल में सौंप देते हैं, तो हमें ईश्वर के प्रेम की गहराई का अनुभव होता है। उनके प्रति हमारी निष्ठा और विश्वास हमें दिलासा देता है कि वह हमेशा हमारे साथ हैं, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। वह हमारी समस्याओं के प्रति संवेदनशील हैं, और हर समय हमें अपनी राह पर चलने में मदद करते हैं।
आइए हम अपनी जिंदगी में प्रभु यीशु की चिंता को महसूस करें और इसे अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाएं। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हम अकेले नहीं हैं। वह हमारे हर कदम पर हमारे साथ हैं, हमें आगे बढ़ने, और हमारी चुनौतियों का सामना करने के लिए समर्थन प्रदान करते हैं। उनकी चिंता सिर्फ हमारे आज के लिए नहीं है, बल्कि हमारे भविष्य के लिए भी है। हमें उनके प्रेम की गहराई में खुद को डुबोना चाहिए और हर दिन उनके प्रकाश में जीना चाहिए।
                                                             

Good Friday Message | गुड फ्राइडे | यीशु के लहू की विशेषताएँ

  यीशु के लहू की विशेषताएँ धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह लहू न केवल एक शारीरिक तत्व है, बल्कि यह विश्वासियों के लिए मुक्तिदाता का प्रतीक भी है। जैसे ही यह लहू क्रॉस पर बहा, उसने मानवता के पापों को धोने की प्रक्रिया को आरंभ किया। वह क्षमा, उद्धार और नई शुरूआत का एक संकेत बन गया, जो हर मनुष्य को यीशु के करीब लाने का काम करता है।

इस लहू का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह बलिदान का प्रतीक है। यीशु ने अपने जीवन को मानवता की भलाई के लिए बलिदान कर दिया। यह बलिदान दर्शाता है कि सच्चे प्रेम और करुणा की प्रेरणा से हम अपने स्वार्थ को त्याग सकते हैं। यह एक ऐसा बलिदान है, जो केवल एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के उद्धार के लिए आवश्यक था। इसकी गहराई में जाने पर हम समझते हैं कि यह लहू केवल अपराधों का प्रायश्चित नहीं करता, बल्कि एक गहरी सच्चाई को उजागर करता है कि परमेश्वर ने हमें अपने प्रेम से गले लगाया है।

हालांकि, यीशु के लहू का महत्व केवल धार्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी महत्वपूर्ण है। यह उन लोगों के लिए आशा का स्रोत बन जाता है, जो अपने पथ में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। जब लोग यह विश्वास करते हैं कि यीशु के लहू के माध्यम से वे अपने पापों से मुक्त हो सकते हैं, तो वे जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा पाते हैं। यह विश्वास उन्हें सशक्त बनाता है और उन्हें अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जीवन जीने में सहायता करता है।

इस लहू के माध्यम से मिलती क्षमा केवल एक अनुग्रह का संकेत नहीं है, बल्कि यह एक जिम्मेदारी भी लाती है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में अच्छाई और सत्य का पालन करें। लोग यह समझते हैं कि जब तक वे इस लहू के बलिदान से प्रेरित होकर सहभागिता करते हैं, तब तक ही वे अपने और दूसरों के जीवन में परिवर्तन ला सकते हैं। इस प्रकार, यीशु के लहू की विशेषताएँ न केवल आध्यात्मिकता से संबंधित हैं, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन में भी गहरी भूमिका निभाती हैं।

इन सभी पहलुओं के माध्यम से, यीशु के लहू का महत्व स्पष्ट होता है। यह केवल धार्मिक विश्वास तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में गहराई से समाहित है। यही कारण है कि यह लहू हर एक विश्वासकर्ता के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल एक बचाव का साधन है, बल्कि यह जीवन के अर्थ को भी उजागर करता है।

प्रभु आप सभी को आशीष से भरे आमीन और भीर आमीन इस संदेश को दूसरों तक भेजे आप अभी को जय मसीह की ये संदेश Pastor Emmanuel के द्वारा लिखा गया है