Friday, 18 April 2025
यीशु जिंदा हो गया देखो ओ यहां नहीं है परन्तु ओ मुर्दों में से जी उठा है
Thursday, 17 April 2025
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तीन प्रकार के पाप
पहला पाप - अनुवांशिक पाप आदम और हवा का पापी स्वभाव जो वंशानुगत तरीके से हमारे जीवन में पाया जाता है।
दूसरा पाप - हमारे द्वारा जानबूझकर किये गये पाप।
तीसरा पाप - परमेश्वर की आज्ञाओ को न मानना।
जो पाप हमारे द्वारा किए गये उन्हें क्षमा करके यीशु मसीह ने हमारे हृदयों में बयाने के रूप में अपनी आत्मा को दिया है जो हे अब्बा हे अब्बा हे पिता पुकारती हैं।
हमें अपने लहूँ से धोकर आदम और हवा द्वारा किए गए पाप जो हमारे जीवन में वंशानुगत तरीके से थे हमें उससे छुटकारा दिया और हमें उस वंश से निकालकर अपने वंश में अर्थात् उसके खून से साफ हुए लोगो के झुंड में मिलाया अब हम एक चुना हुआ वंश और परमेश्वर के बेटे बेटियाँ है।
(2) राजपद धारी - राजपदधारी का मतलब हैं राज्य करने का अधिकार धारण करने वाला । राज्य का अधिकार केवल राजा ही धारण करता है अर्थात् हम ( प्रत्येक विश्वासी) अर्थात् राज्य करने का अधिकार करने वाले हैं। अर्थात् हम राजा है। ( प्र . वा 1:6,5:10)
(3) पवित्र लोग - प्रभु यीशु मसीह द्वारा हमें अपने वचनों से पवित्र किया गया है ( यूहनां 15:13 ) हम पवित्र इसलिए हैं कयोंकि -(1) येशु के लहु से धुलकर शुद्ध और पवित्र हुए हैं। (2) मसीह यीशु के वचनों को सुनकर या पढ़कर हम जो वचन पालन करते हैं तो हम इस वचन के द्वारा शुद्ध होते है इसलिए हम विश्वासी पवित्र है।
(4) परमेश्वर की निज प्रजा - हम सब विश्वासी परमेश्वर की निज प्रजा है। अधीनता एवं आज्ञापालन का जीवन ही मनुष्य को किसी के भी आधीन कर सकता है जिस तरह राजा के अधीन प्रजा होती है और राजय के कानुनो का पालन करती हैं उसी तरह यदि विश्वासी प्रभु के कानुन का पालन करता है तो वह उसकी प्रजा बन जाता है।
(5) याजकों का समाज - याजक सुनकर ऐसा लगता है जैसे कोई लंबा चोड़ा पहने हुए पटुआ बांधे हुए कोई वह व्यक्ति बड़ी दाड़ी रखे हुए होगा लेकिन हम इससे हटकर बगैर ऐसी वेशभूषा और रूप वाले याजक हैं।
पुराने नियम में तीन प्रकार के लोग
(1) साधारण लोग ( 11 गोत्र इसत्राएल के)
(2) लेवी ( परमेश्वर के तम्बू की सेवा करने वाले लेवी गोत्र के लोग)
(3) याजक ( हारुन जो कि लेवी के गोत्र का था और उसके बेटे)
(1) 11 गोत्र ( साधारण लोग - लेमेन)- इसत्राएल देश को परमेश्वर ने 11 क्षेत्रों में बांटकर सारी भूमि 11 गोत्रों के लोगों को दी थी। इस भूमि में जो भी फसल एवं पशु होते हैं उनका दसमांश वे लोग परमेश्वर के तम्बू की सेवा करने वाले लेपियों को देते थे एवं पापबली, मेलबली, अननबली आदि बली वस्तु मंदिर में ले जाकर याजकों द्वारा परमेश्वर को चढ़ाते थे। प्रिय पाठको मंदिर व तंबू में परमेश्वर के समुख पैसा था नगदी नहीं दिखाई जाती थी ( गिनती 18:26-27) परमेश्वर के समुख केवल बलिदान चढ़ाए जाते थे।
(2) लेबी गोत्र - यह गोत्र परमेश्वर के तम्बू की सेवा करता था और परमेश्वर की सेवा के लिए अलग किया गया था। इसत्राएल के 11 गोत्र लेवियों को फसल एवं पशु का दशमांश देते थे और लेवि गोत्र इस दशमांश उठाने की भेंट के रूप में याजको को देते थे। ( गिनती 3:5-8, 18:21-32)
इस तरह जीविकोपार्जन हेतु लेवियों को दशमांश एवं याजको को उठाने की भेंट प्राप्त होती हैं।
(3) याजक- लेवी गोत्र के हारून महायाजक एवं उसके कुल के लोग ही याजक की सेवा करते थे। इन्हें लेवियों से उठाने की भेंट प्राप्त होती थी तथा बली पशु की मांस का कुछ हिस्सा और अर्पूण की हुई वस्तुएं। ( लैवय 10:8 - 20, गिनती 3:10)
इस तरह बाइबल यह बताती हैं कि -
11 गोत्र - फसल एवं पशु व्यवसाय करते थे।
लेवी - परमेश्वर व तंबू की सेवा करते थे।
याजक - बलिदान चढ़ाने का कार्य करते थे।
नये नियम में एक समाज - याजको का समाज
संर्पूण विश्व की लगभग 6500 जातियों के लोग जो इसत्राइली नहीं है उन्हें परमेश्वर ने पुत्र मसीह पर विश्वास लाने के चलते याजक पद नियुक्त किया है। वे अपनी ही जाती के हैं वे परमेश्वर के याजक हैं।
नये नियम में केवल एक समाज - नये नियम की कलीसिया में केवल चुने हुए लोग हैं जो कि संसार से प्रभु की दया द्वारा निकलकर उद्वार प्राप्त कर मसीह की देह ( कलीसिया) में शामिल होते हैं। वह याजक बन जाते हैं वह एक साधारण व्यक्ति नहीं रहते परंतु परमेश्वर उस व्यक्ति को याजक बना देते हैं।

प्रभु यीशु की चिंता हमारे जीवन में जैसे सूरज की पहली किरण होती है, जो हमें अंधकार से निकालती है। जब जीवन की कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ हमें घेरे रहती हैं, तब हमें यह जानने की आवश्यकता होती है कि हमारे साथ कोई है जो सचमुच हमारी परवाह करता है। यीशु की प्रेमपूर्ण उपस्थिति हमें प्रेरणा देती है, हमें साहस देती है और हमारी समस्याओं का समाधान ढूँढने में सहायता करती है।
यीशु के लहू की विशेषताएँ धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह लहू न केवल एक शारीरिक तत्व है, बल्कि यह विश्वासियों के लिए मुक्तिदाता का प्रतीक भी है। जैसे ही यह लहू क्रॉस पर बहा, उसने मानवता के पापों को धोने की प्रक्रिया को आरंभ किया। वह क्षमा, उद्धार और नई शुरूआत का एक संकेत बन गया, जो हर मनुष्य को यीशु के करीब लाने का काम करता है।
इस लहू का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह बलिदान का प्रतीक है। यीशु ने अपने जीवन को मानवता की भलाई के लिए बलिदान कर दिया। यह बलिदान दर्शाता है कि सच्चे प्रेम और करुणा की प्रेरणा से हम अपने स्वार्थ को त्याग सकते हैं। यह एक ऐसा बलिदान है, जो केवल एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के उद्धार के लिए आवश्यक था। इसकी गहराई में जाने पर हम समझते हैं कि यह लहू केवल अपराधों का प्रायश्चित नहीं करता, बल्कि एक गहरी सच्चाई को उजागर करता है कि परमेश्वर ने हमें अपने प्रेम से गले लगाया है।
हालांकि, यीशु के लहू का महत्व केवल धार्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी महत्वपूर्ण है। यह उन लोगों के लिए आशा का स्रोत बन जाता है, जो अपने पथ में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। जब लोग यह विश्वास करते हैं कि यीशु के लहू के माध्यम से वे अपने पापों से मुक्त हो सकते हैं, तो वे जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा पाते हैं। यह विश्वास उन्हें सशक्त बनाता है और उन्हें अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जीवन जीने में सहायता करता है।
इस लहू के माध्यम से मिलती क्षमा केवल एक अनुग्रह का संकेत नहीं है, बल्कि यह एक जिम्मेदारी भी लाती है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में अच्छाई और सत्य का पालन करें। लोग यह समझते हैं कि जब तक वे इस लहू के बलिदान से प्रेरित होकर सहभागिता करते हैं, तब तक ही वे अपने और दूसरों के जीवन में परिवर्तन ला सकते हैं। इस प्रकार, यीशु के लहू की विशेषताएँ न केवल आध्यात्मिकता से संबंधित हैं, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन में भी गहरी भूमिका निभाती हैं।
इन सभी पहलुओं के माध्यम से, यीशु के लहू का महत्व स्पष्ट होता है। यह केवल धार्मिक विश्वास तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में गहराई से समाहित है। यही कारण है कि यह लहू हर एक विश्वासकर्ता के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल एक बचाव का साधन है, बल्कि यह जीवन के अर्थ को भी उजागर करता है।
प्रभु आप सभी को आशीष से भरे आमीन और भीर आमीन इस संदेश को दूसरों तक भेजे आप अभी को जय मसीह की ये संदेश Pastor Emmanuel के द्वारा लिखा गया है