Thursday, 17 April 2025

Good Friday In Hindi वाणी यीशु ने जो क्रूस पर कही

पहली वाणी यीशु ने जो क्रूस पर कही 
यह एक सजीव दृश्य है, जहाँ एक भीड़ है, जो गुस्से में भरी हुई है। यीशु के पार हो रहे इस असहनीय क्षण में, जब उसके कपड़े चिट्ठियों द्वारा बांटे जा रहे हैं, उसकी आवाज़ एक अद्भुत शांति का प्रतीक बन जाती है। वे क्षण, जब एक व्यक्ति अपार पीड़ा सहते हुए भी, दया और करुणा की बात करते हैं, मानवता के लिए एक बड़ा सबक है।
यीशु का यह बयान, 'हे पिता, इन्हें क्षमा कर,' सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक गहन भावनाओं से भरा अनुरोध है। यह एक ऐसा क्षण है जब उसके हृदय में नफरत या प्रतिशोध का स्थान नहीं था। उसकी शब्दों में आशीर्वाद का संदेश है, जो आज भी हमें प्रेरित करता है कि वास्तविक बलिदान वही है, जिसमें प्रतिशोध के भावनाओं को त्यागकर, क्षमा देने का निर्णय लिया जाता है।
इस क्षण को समझना आसान नहीं है। मानवता हमेशा से अपने स्वार्थ और ईर्ष्या के कारण युद्ध, भेदभाव और अन्याय की ओर बढ़ती रही है। लेकिन यीशु के इस क्षणिक उदाहरण से हम सीखते हैं कि सच्ची शक्ति वह है, जो दूसरों को क्षमा करने में होती है। उसके छोड़े गए कपड़े किसी ऐसे व्यक्ति का प्रतीक हैं, जिसने अपने कपड़े भी दूसरों के लिए बांट दिए, और चाहे वह क्षण कितना भी कठिन क्यों न था, उसने हमेशा प्यार और दया को प्राथमिकता दी।
यीशु के इस बयान के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि हमें भी अपने जीवन में क्षमा का अभ्यास करना चाहिए। यह केवल दूसरों को नहीं, बल्कि खुद को भी मुक्त करने का एक साधन है। जब हम क्षमा करते हैं, तो हम अपने हृदय से उन सभी नकारात्मक भावनाओं को निकाल देते हैं, जो हमें बांधकर रखती हैं। इसलिए, इसका संदेश हमें यह सिखाता है कि जीवन में कभी-कभी हमें कठिनाई और अपमान के बावजूद भी क्षमा का रास्ता चुनना चाहिए।
समाप्ति में, इस अद्भुत क्षण की गूंज आज भी हमारे जीवन में जीवित है। यीशु का यह अपील केवल क्षमा की नहीं, बल्कि मानवता के प्रति एक अनमोल प्रेम का प्रतीक है। हम सबको चाहिए कि हम अपने जीवन में भी इस प्रेम और दया का अनुसरण करें ताकि हम अपने चारों ओर एक ऐसा वातावरण बना सकें जिसमें एक दूसरे की क्षमा और समझ बनी रहे।

दूसरी वाणी जिसे यीशु ने क्रूस कही
यीशु ने क्रूस पर लटकते हुए अपने अंतिम क्षणों में जो शब्द कहे, उनमें हमारे लिए गहराई से निहित अर्थ है। लूका 23:43 में लिखा है, 'मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।' यह वाक्य न केवल मरते हुए व्यक्ति को आश्वासन देता है, बल्कि यह विश्वास और उद्धार की शक्तिशाली घोषणा भी करता है।
जब यीशु ने यह कहा, वह व्यक्ति अपराधी था, जिसने जीवन में कई गलतियाँ की थीं। लेकिन यीशु की दया और क्षमा उसकी पहचान बदल देती है। यह हमें याद दिलाता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे उसका अतीत कितना भी बुरा क्यों न हो, प्रभु की कृपा और प्रेम से वंचित नहीं है। यह वचन मनुष्य की क्षमा, पुनरुत्थान और नये जीवन का संदेश देता है।
यीशु का यह वचन यह भी बताता है कि स्वर्गलोक में प्रवेश पाना केवल विश्वास के माध्यम से संभव है। जब अपराधी ने यीशु की पहचान को पहचाना और उन्हें अपना उद्धारकर्ता माना, तब यीशु ने उसे तुरंत आश्वासन दिया। यह सुनिश्चिता दर्शाती है कि प्रभु का प्रेम कितना व्यापक है। हमारे विश्वास की शक्ति, हमें प्रभु के निकट लाती है।
इस वचन में समय का एक गहरा रहस्य भी है। 'आज ही तू', ऐसा कहना यह दर्शाता है कि मृत्यु कोई अंत नहीं है, बल्कि एक नया आरंभ है। यीशु की उपस्थिति में, मृत्यु का भय मिट जाता है और विश्वासियों को जीवन का एक नया दृष्टिकोण मिलता है। यह वचन हमें यह समझाने में मदद करता है कि मृत्यु के बाद की जीवन यात्रा, विश्वास और विश्वास में होती है।
जब हम इस वचन को अपने जीवन में ग्रहण करते हैं, हमें यह अहसास होता है कि जीवन में संकटों और कठिनाइयों में भी, यीशु का प्रेम कभी समाप्त नहीं होता। वह हमारे साथ हर कदम पर होती हैं, हमें मार्गदर्शन करती हैं और हमें अपने सामर्थ्य से भर देती हैं। क्रूस पर यीशु का यह वचन हमें आश्वस्त करता है कि प्रभु का प्यार हमें हर परिस्थिति में घेरे हुए है।
अंत में, यीशु की यह दूसरी वाणी हमें आत्मिक दृढ़ता और साहस प्रदान करती है। इसे सुनकर, हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारा उद्धार केवल यीशु के माध्यम से संभव है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम स्वर्गलोक की ओर देख सकें और अपनी खोई हुई राह को फिर से खोज सकें। यीशु के साथ, जीवन का हर क्षण अनमोल है।
तीसरी वाणी : जिसे यीशु ने क्रूस पर कही ।
यूहन्ना 19:26-27 एक अत्यंत गहन और भावनात्मक क्षण का वर्णन करता है, जहाँ यीशु क्रूस पर लटके हुए अपनी माता के पास खड़े होने वाले चेले से बात कर रहे हैं। यह क्षण प्यार, देखभाल और परिवार के महत्व को उजागर करता है।
जैसे-जैसे यीशु ने अपनी माता की तरफ देखा, उनकी आँखों में एक अदभुत स्नेह था, जो न केवल उनके रक्त संबंध को दर्शाता था, बल्कि एक गहरी समझ और सहयोग को भी। यीशु ने अपनी माता से कहा, 'हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।' इस वाक्य में केवल शब्द नहीं, बल्कि जज़्बात थे, जो यह दर्शाते हैं कि परिवार की सुरक्षा और देखभाल कितनी महत्वपूर्ण होती है, भले ही परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
फिर, उन्होंने उस चेले से कहा, 'यह तेरी माता है।' यह बात केवल पारिवारिक बंधनों को संदर्भित नहीं करती, बल्कि एक नए बंधन की स्थापना भी करती है। यीशु ने अपने चेले को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी, जिससे उस चेले का जीवित रहना केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से भी विकसित कर सके।
इस तरह, यीशु ने अपने प्रेम को व्यावहारिकता में बदल दिया। यह स्पष्ट है कि वे अपने प्रियजनों के भले के लिए चिंतित थे, यहाँ तक कि अपनी अंतिम घड़ियों में भी। उनका संदेश एक नई परिभाषा का संचार करता है कि कैसे हमें एक-दूसरे का ख्याल रखना चाहिए, और एक-दूसरे के प्रति हमारी जिम्मेदारियाँ कैसे बदल सकती हैं।
यूहन्ना 19:26-27 हमें यह सोचने को मजबूर करता है कि हम अपने जीवन में आपसी प्रेम और समर्थन को कैसे बढ़ा सकते हैं। मां और बेटे का बंधन, और चेहरे और गुरु का संबंध हमें यह सिखाता है कि हम किस प्रकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए भी प्रेम को प्राथमिकता दे सकते हैं। रिश्तों की इस खिचड़ी में एक नया अध्याय जोड़ते हुए, यीशु ने हमें यह नसीहत दी कि हम अपने परिवार की भलाई को हमेशा सर्वोपरी रखें।
यही शिक्षाएँ हमें आज भी प्रेरित करती हैं, चाहे हमारे परिवेश कितने भी भिन्न क्यों न हों। इस संवाद के माध्यम से, यीशु ने हम सभी को यह याद दिलाया कि प्रेम और देखभाल की अभिव्यक्ति जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है, और इसी के माध्यम से हम स्वयं को और अपने आस-पास के लोगों को सशक्त बना सकते हैं।

यीशु की चौथी वाणी, जो वह क्रूस पर कहा करते थे, हमें उस गहन दर्द और निराशा का एहसास कराती है जो उन्होंने महसूस की थी। यह वाणी 'इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी' है, जिसका अर्थ है 'हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?' यह शब्द हमें यीशु के अनुभव का एक झलक देते हैं जब उन्होंने मानवता के पापों का भार अपने ऊपर लिया।
तीसरे पहर के समय, जब यीशु क्रूस पर थे, आस-पास के लोग उनके दर्द को देख रहे थे, लेकिन उनके दिल में क्या चल रहा था, यह केवल उन्होंने ही समझा। यह एक ऐसा पल था, जब भगवान की उपस्थिति के साथ भी, वह एक गहरे अकेलेपन का शिकार हो गए। यह उन लोगों के लिए एक स्पष्ट संकेत था कि यीशु को भी मानव भावनाओं का अनुभव करना पड़ा, जिसने उन्हें हमारी मानवता के लिए एक गहरा संबंध बनाया।
जब यीशु ने यह बात कहीं, तब केवल वह अपने भगवान की ओर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे। इस वक्त में यह स्पष्ट होता है कि उनकी प्रार्थना उस समय गहराई से थी। वह पूरी धरती के लिए बलिदान बन गए थे, और अपनी वाणी में उन्होंने हमें दिखाया कि दु:ख के समय में भी भगवान से संपर्क बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
यीशु के इस शोक की वाणी ने न केवल उनके जीवन को प्रस्तुत किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि हमारे लिए उनके बलिदान का क्या महत्व है। यीशु ने हमारी सभी दु:खों और हमारी भावनाओं का अनुभव किया। उनका यह संदेश हमें यह सिखाता है कि जब हमें भी ऐसा महसूस हो कि हम अकेले हैं, तब हमें भी अपने ईश्वर की ओर मुड़ने का साहस रखना चाहिए।
इस वाणी का गहन अर्थ हमें यह भी सिखाता है कि ईश्वर हमेशा हमारे साथ है, भले ही हमें कभी-कभी ऐसा महसूस हो कि हम असहाय हैं। यीशु ने हमें इस अद्भुत सच्चाई को दिखाया है कि भगवान हमारे दु:खों को समझते हैं और हमारा साथ नहीं छोड़ते। उनकी यह वाणी हमें प्रेरित करती है कि हम कभी भी अकेले नहीं होते, क्योंकि भगवान ने हमें कभी छोड़ने का वादा नहीं किया।
आत्मा के इस संकट के माध्यम से, हम जान सकते हैं कि जब भी हम असहाय होते हैं, हम अपनी पीड़ाओं को भगवान के सामने रख सकते हैं। यीशु का यह संदेश उन सभी के लिए आशा का एक स्रोत बन सकता है जो जीवन के कठिन समय का सामना कर रहे हैं। इसलिए, यह वाणी केवल यीशु की पीड़ा का वर्णन नहीं करती, बल्कि यह हमें यह विश्वास भी दिलाती है कि ईश्वर हमेशा हमारे साथ हैं।

पाँचवी वाणी : जिसे प्रभु यीशु ने क्रूस पर कही ।
          " मैं प्यासा हूं  "
यूहन्ना 19:28 इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिये कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कहा, मैं प्यासा हूं।
जब प्रभु यीशु ने क्रूस पर अपने अंतिम पल बिताए, तब उन्होंने एक गहरी और अर्थपूर्ण वाणी कही, "मैं प्यासा हूं।" यह शब्द न केवल शारीरिक पीड़ा का परिचायक थे, बल्कि आत्मिक व्यथा और अधूरेपन की भी गूंज थे। उनके इस उच्चारण से यह ज्ञात होता है कि वह केवल मृत्यु के निकट नहीं थे, बल्कि चेष्टा कर रहे थे कि सभी पवित्र शास्त्र की बातों को पूरा करें।
यह वाणी हमें यह याद दिलाती है कि, भौतिक सूखापन के अलावा, आत्मिक प्यास भी होती है। यीशु का यह कथन एक उद्धरण के रूप में कार्य करता है, जो हमें सिखाता है कि सच्ची तृप्ति केवल ईश्वर की उपस्थिती में मिलती है। जब वह कहते हैं, "मैं प्यासा हूं," तो यह इस बात का संकेत है कि हमारे जीवन में ईश्वर की आवश्यकता कितनी अहम है।
इस क्षण में, एक पवित्र और पूर्ण उद्धार का कार्य पूरा हुआ। यीशु का यह वाक्य हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपनी आत्मिक प्यास को पहचानें और उसे शांत करने के लिए परमेश्वर की ओर बढ़ें। जब हम उन पर भरोसा करते हैं और उनके द्वारा प्रदान किए गए पानी से अपनी आत्मा को तृप्त करते हैं, तब हमें सच्चा जीवन और संतोष प्राप्त होता है।
अंत में, यीशु का "मैं प्यासा हूं" इस गूढ़ संदेश की ओर आग्रह करता है कि हमें उस स्रोत की तलाश करनी चाहिए, जो हमारी आत्मिक प्यास को पूरी तरह से मिटा सके। इसलिए, इस अंतिम वाणी में निहित गहनता का अनुभव करें और इसे अपने जीवन में लागू करने का प्रयास करें।