Saturday, 11 October 2025

जीवन की पुस्तक में नाम लिखा रहे | Revelation 3:5 Hindi Message | Let Your Name Remain in the Book of Life

✝️ जीवन की पुस्तक में नाम लिखा रहे | Let Your Name Remain in the Book of Life

Bible Verse:

प्रकाशितवाक्य 3:5 — “जो जय पाए उसे इसी प्रकार श्वेत वस्त्र पहिनाया जाएगा और मैं उसका नाम जीवन की पुस्तक में से किसी रीति से न काटूंगा, पर उसका नाम अपने पिता और उसके स्वर्गदूतों के साम्हने मान लूंगा।”

 1. जय पानेवाले के जीवन की पहचान

1️⃣ जो जय पाए... – इसका अर्थ क्या है?

“जय पाना” का अर्थ है — पाप, प्रलोभन, संसार और शैतान पर विजय पाना।

यह उन लोगों की बात है जो अपने विश्वास पर अटल रहते हैं, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।

📖 1 यूहन्ना 5:4

“क्योंकि जो कोई परमेश्वर से जन्मा है वह संसार पर जय पाता है; और वह जय जिससे हम ने संसार पर जय पाई है, हमारा विश्वास है।”

व्याख्या:

संसार की चमक, पाप का आकर्षण और शैतान की चालें हर किसी को गिराने की कोशिश करती हैं।

परंतु जो व्यक्ति यीशु पर स्थिर विश्वास रखता है, वही जय पाता है।

जय पाने के लिए हमें प्रतिदिन आत्मिक युद्ध में स्थिर रहना होता है।

2️⃣ श्वेत वस्त्र पहिनाया जाएगा – इसका अर्थ क्या है?

श्वेत वस्त्र पवित्रता, धार्मिकता और उद्धार का प्रतीक है।

📖 यशायाह 1:18 —

“यदि तुम्हारे पाप लाल रंग के हों तो वे हिम के समान उजले हो जाएंगे।”

📖 प्रकाशितवाक्य 7:14 —

“उन्होंने अपने वस्त्र धोकर मेम्ने के लोहू में उजले किए।”

व्याख्या:

श्वेत वस्त्र का अर्थ है कि व्यक्ति ने अपने जीवन को पाप से धोकर शुद्ध किया है।

केवल यीशु के लहू से यह संभव है।

जो प्रभु पर भरोसा रखता है, उसका जीवन स्वच्छ और चमकदार बन जाता है।

 3. आत्मिक रूप से जागृत रहना

यही अध्याय (प्रकाशितवाक्य 3:1-6) सर्दिस की कलीसिया को चेतावनी देता है —

“तू जीता तो कहता है, परंतु मरा हुआ है।”

इसका मतलब है — बाहर से धार्मिक दिखना, पर अंदर आत्मिक रूप से ठंडा हो जाना।

📖 रोमियों 13:11 —

“अब समय है कि तुम नींद से जागो; क्योंकि अब हमारा उद्धार उस समय से निकट है जब हमने विश्वास किया था।”

व्याख्या:

हमारा नाम जीवन की पुस्तक में तभी बना रहेगा, जब हम आत्मिक रूप से जीवित रहेंगे —

प्रार्थना, वचन, प्रेम और सेवा में।

 2. जीवन की पुस्तक और स्वर्ग में स्वीकार्यता

4️⃣ “मैं उसका नाम जीवन की पुस्तक में से किसी रीति से न काटूंगा।”

जीवन की पुस्तक (Book of Life) वह पवित्र सूची है जिसमें उन सबके नाम लिखे हैं जिन्होंने यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार किया है।

📖 फिलिप्पियों 4:3 —

“जिनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हैं।”

📖 निर्गमन 32:32-33 —

मूसा ने कहा, “यदि तू उनका पाप न क्षमा करेगा तो मेरा नाम अपनी पुस्तक से मिटा दे।”

व्याख्या:

परमेश्वर की इस पुस्तक में नाम लिखा होना अनन्त जीवन का प्रतीक है।

पर जो व्यक्ति पाप में लौट जाता है, और पश्चाताप नहीं करता, उसका नाम मिटाया जा सकता है।

परंतु प्रभु यीशु का वादा है — “जो जय पाएगा, उसका नाम कभी नहीं काटा जाएगा।”

5️⃣ “उसका नाम अपने पिता और स्वर्गदूतों के साम्हने मान लूंगा।”

यह परमेश्वर की ओर से सार्वजनिक सम्मान और स्वीकार्यता है।

📖 मत्ती 10:32 —

“जो मनुष्यों के साम्हने मेरा अंगीकार करेगा, मैं भी उसे अपने पिता के साम्हने अंगीकार करूंगा।”

व्याख्या:

जब हम इस पृथ्वी पर यीशु को स्वीकार करते हैं, वह हमें स्वर्ग में स्वीकार करता है।

यह एक अनन्त पुरस्कार है — जब यीशु हमारे नाम को स्वर्ग में घोषित करेगा,

“यह मेरा है, यह विजेता है।”

 6. आज के समय में संदेश

जय पाने के लिए हमें संसार से अलग जीवन जीना है।

हमें अपने विश्वास में दृढ़ रहना है, चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न आए।

हमें प्रतिदिन अपने हृदय को पवित्र रखना है ताकि हमारा नाम जीवन की पुस्तक में बना रहे।

📖 2 कुरिन्थियों 7:1 —

“आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय मानकर पवित्रता को सिद्ध करें।”

🙏  (Conclusion)

जो जय पाएगा वही श्वेत वस्त्र धारण करेगा।

उसका नाम जीवन की पुस्तक में स्थायी रहेगा।

और प्रभु यीशु स्वयं उसके नाम को पिता के सामने स्वीकार करेगा।

आइए हम अपने जीवन की परीक्षा करें —

क्या हम वास्तव में जय पा रहे हैं?

क्या हमारा नाम जीवन की पुस्तक में बना रहेगा?

यदि हम प्रभु से प्रेम रखते हैं, पवित्र जीवन जीते हैं, और अंत तक स्थिर रहते हैं,

तो एक दिन वह हमें श्वेत वस्त्र पहनाकर कहेगा —

“शाबाश, भले और विश्वासयोग्य दास।”

📖 प्रकाशितवाक्य 2:10 — “मृत्यु तक विश्वासयोग्य रह, तब मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।”

📖 मत्ती 24:13 — “पर जो अंत तक बना रहेगा

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Thursday, 9 October 2025

बपतिस्मा किसके नाम से लिया जाता है? | Baptism in the Name of Jesus Christ | Pastor Emmanuel

बपतिस्मा किसके नाम से लिया जाता है? | <a target="_blank" href="https://www.google.com/search?ved=1t:260882&q=define+<a target="_blank" href="https://www.google.com/search?ved=1t:260882&q=define+Baptism&bbid=2009619181704892186&bpid=3328138657355433106" data-preview>Baptism</a>&bbid=2009619181704892186&bpid=3328138657355433106" data-preview>Baptism</a> in the Name of <a target="_blank" href="https://www.google.com/search?ved=1t:260882&q=Jesus+Christ&bbid=2009619181704892186&bpid=3328138657355433106" data-preview><a target="_blank" href="https://www.google.com/search?ved=1t:260882&q=Jesus+Christ&bbid=2009619181704892186&bpid=3328138657355433106" data-preview>Jesus Christ</a></a>

✝️ बपतिस्मा किसके नाम से लिया जाता है? | Baptism in the Name of Jesus Christ

🔹 प्रस्तावना

बपतिस्मा (Baptism) केवल एक धार्मिक रिवाज़ नहीं है, बल्कि यह विश्वास और आज्ञाकारिता का प्रतीक है। यह हमारे पुराने जीवन से पश्चाताप करके नए जीवन में प्रवेश का सार्वजनिक घोषणा है। बहुत से लोग यह प्रश्न पूछते हैं कि — "बपतिस्मा किसके नाम से लिया जाना चाहिए?"
इस प्रश्न का उत्तर हमें स्वयं बाइबल देती है।

🔹 बाइबल में बपतिस्मा का आदेश

मत्ती 28:19
“इसलिये तुम जाकर सब जातियों को चेला बनाओ, और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो।”

यहाँ प्रभु यीशु मसीह ने अपने चेलों को सीधा आदेश दिया कि वे सब जातियों को सुसमाचार सुनाएँ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दें।

पर ध्यान दीजिए — “नामों” नहीं, बल्कि “नाम” (एकवचन) लिखा गया है। इसका अर्थ यह है कि इन तीनों — पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा — का एक ही नाम है।

🔹 वह एक नाम क्या है?

प्रेरितों के काम 2:38
“पतरस ने उनसे कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक व्यक्ति यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लो, ताकि तुम्हारे पाप क्षमा हों, और तुम पवित्र आत्मा का दान पाओ।”

यहाँ स्पष्ट लिखा है कि प्रेरितों ने किसी अन्य नाम से नहीं, बल्कि यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया।

क्योंकि यीशु ही वह नाम है जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा में प्रकट हुआ है।
- पिता — परमेश्वर का आत्मा है जो अदृश्य है।
- पुत्र — वह देह है जिसमें परमेश्वर प्रकट हुआ।
- पवित्र आत्मा — वह शक्ति है जो अब हमारे भीतर कार्य करती है।

और यह तीनों एक ही हैं — यीशु मसीह में पूर्ण परमेश्वर का निवास है।

🔹 बाइबल के अनुसार बपतिस्मा का उदाहरण

  • प्रेरितों के काम 8:16
    “क्योंकि वह (पवित्र आत्मा) उन में से किसी पर नहीं उतरा था, केवल वे प्रभु यीशु के नाम से बपतिस्मा पाए थे।”
  • प्रेरितों के काम 10:48
    “और उसने आज्ञा दी कि वे यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लें।”
  • प्रेरितों के काम 19:5
    “यह सुनकर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम से बपतिस्मा लिया।”

इन सब वचनों में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि प्रेरितों और शुरुआती विश्वासियों ने सदा यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लिया।

🔹 क्यों यीशु के नाम से बपतिस्मा?

  1. क्योंकि यीशु ही वह नाम है जिसमें उद्धार है।
    प्रेरितों के काम 4:12
    “क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें।”
  2. क्योंकि यीशु में ही परमेश्वर का पूरा स्वरूप वास करता है।
    कुलुस्सियों 2:9
    “क्योंकि उसी में परमेश्वरत्व की सारी परिपूर्णता देह रूप में वास करती है।”
  3. क्योंकि यीशु का नाम ही पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का नाम है।
    यूहन्ना 5:43
    “मैं अपने पिता के नाम से आया हूं।”
    यूहन्ना 14:26
    “परन्तु सहायक, अर्थात पवित्र आत्मा, जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा…”

    इसका अर्थ है कि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा — तीनों यीशु के नाम में एक हैं।

🔹 बपतिस्मा का महत्व

बपतिस्मा केवल पानी में डुबकी लेना नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक पुनर्जन्म का प्रतीक है।
जब हम बपतिस्मा लेते हैं, हम यह स्वीकार करते हैं कि
- हमारा पुराना मनुष्य यीशु के साथ मर गया,
- और अब हम नए जीवन में पुनः जीवित हुए हैं।

रोमियों 6:4
“इसलिये हम बपतिस्मा के द्वारा उसके साथ मृत्यु में गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नये जीवन में चलें।”

🔹 बपतिस्मा का सही तरीका

  • पश्चाताप करें – पहले अपने पापों को स्वीकार करें और उनसे दूर हों।
  • यीशु मसीह में विश्वास करें – मानें कि वही आपका उद्धारकर्ता और प्रभु है।
  • यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लें – पूर्ण डुबकी देकर, पुराने जीवन को दफन करें।
  • पवित्र आत्मा प्राप्त करें – ताकि आप नया जीवन मसीह में चला सकें।

🔹 निष्कर्ष

बाइबल के अनुसार, बपतिस्मा किसी धार्मिक परंपरा का हिस्सा नहीं बल्कि यीशु मसीह की आज्ञा का पालन है।
पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का नाम एक ही है — यीशु मसीह।
इसलिए सच्चा बपतिस्मा वही है जो यीशु मसीह के नाम से लिया जाए, ताकि हमारे पाप क्षमा हों और हम नया जीवन प्राप्त करें।

🔹 मुख्य वचन सारांश

  • मत्ती 28:19
  • प्रेरितों के काम 2:38
  • प्रेरितों के काम 8:16
  • प्रेरितों के काम 10:48
  • प्रेरितों के काम 19:5
  • प्रेरितों के काम 4:12
  • कुलुस्सियों 2:9
  • रोमियों 6:4

🔹 निष्कर्ष प्रार्थना 🙏

“हे प्रभु यीशु मसीह, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मुझे सत्य जानने का अवसर दिया। मुझे बपतिस्मा की सच्चाई समझा और अपने नाम की सामर्थ दिखाई।
प्रभु, मुझे अपने वचन में स्थिर कर, ताकि मैं तेरी आज्ञा का पालन कर सकूँ। मेरे पापों को क्षमा कर और मुझे अपने पवित्र आत्मा से भर दे।
मैं अपना जीवन तेरे हाथों में सौंपता हूँ।
यीशु मसीह के नाम से — आमीन।”

Friday, 26 September 2025

अन्य भाषाओं का वरदान – पवित्र आत्मा का अद्भुत कार्य | Bible Study in Hindi

भाषाओं का वरदान – पवित्र आत्मा का अद्भुत कार्य

भाषाओं का वरदान – पवित्र आत्मा का अद्भुत कार्य

परिचय: पवित्र आत्मा के वरदानों में “अन्य भाषा” या “भाषाओं का वरदान” (Gift of Tongues) एक विशेष और अद्भुत वरदान है। यह केवल किसी मानवीय भाषा को सीखना नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा की सामर्थ से परमेश्वर की महिमा करना और आत्मिक निर्माण पाना है। बाइबल हमें बताती है कि यह वरदान आरम्भिक कलीसिया में पवित्र आत्मा के आगमन का स्पष्ट चिन्ह था और आज भी आत्मिक जीवन में गहरी भूमिका निभाता है।

1. पवित्र आत्मा का वादा और पूर्ति

प्रेरितों के काम 2:1-4
“जब पिन्तेकुस्त का दिन आया, तो वे सब एक ही स्थान पर इकट्ठे थे। तभी अचानक आकाश से ऐसा शब्द हुआ, जैसे प्रचण्ड आँधी चलने का शब्द होता है, और उस पूरे घर को भर लिया… और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए और आत्मा ने जैसा उन्हें बोलने की शक्ति दी, वैसी ही वे अलग-अलग भाषाओं में बोलने लगे।”

यह पहला अवसर था जब पवित्र आत्मा ने कलीसिया को अन्य भाषाओं में बोलने की सामर्थ दी। इसका उद्देश्य था कि लोग परमेश्वर के अद्भुत कार्यों को अपने-अपने मातृभाषा में सुन सकें (प्रेरितों 2:11)।

2. भाषाओं का उद्देश्य

1 कुरिन्थियों 14:2
“जो अन्य भाषा में बोलता है, वह मनुष्यों से नहीं, परमेश्वर से बातें करता है; क्योंकि कोई नहीं समझता, परन्तु वह आत्मा में भेद भरे हुए वचन बोलता है।”
  • परमेश्वर से सीधे संवाद: यह प्रार्थना का आत्मिक तरीका है।
  • व्यक्तिगत आत्मिक निर्माण: 1 कुरिन्थियों 14:4 – “जो अन्य भाषा में बोलता है, वह अपनी ही आत्मा का निर्माण करता है।”

3. व्यवस्था और कलीसिया में प्रयोग

1 कुरिन्थियों 14:27-28
“यदि कोई अन्य भाषा में बोलता है, तो दो या सबसे अधिक तीन व्यक्ति क्रम से बोलें, और कोई उसका अर्थ बताए; पर यदि कोई अर्थ बताने वाला न हो, तो वह सभा में चुप रहे और अपने मन में और परमेश्वर से बातें करे।”

पवित्र आत्मा का वरदान अनुशासन और शांति में उपयोग होना चाहिए। कलीसिया में अर्थ बताने वाला हो तो ही सार्वजनिक रूप से भाषाओं में बोलें।

4. आत्मिक जीवन में लाभ

रोमियों 8:26
“इसी प्रकार आत्मा भी हमारी दुर्बलताओं में सहायता करता है; क्योंकि हम नहीं जानते कि हमें कैसी प्रार्थना करनी चाहिए, पर आत्मा स्वयं ऐसी आहें भरकर, जिन्हें शब्दों में नहीं कह सकते, हमारे लिये बिनती करता है।”

यह प्रार्थना में गहराई, आत्मा की संगति और आत्मिक युद्ध में सामर्थ प्रदान करता है।

5. आज के मसीही के लिए संदेश

1 कुरिन्थियों 12:7,11
“आत्मा का प्रगटीकरण हर एक को लाभ के लिये दिया जाता है… परन्तु यह सब एक ही आत्मा करता है, और वही अपनी इच्छा अनुसार हर एक को अलग-अलग बांटता है।”

भाषाओं का वरदान हर विश्वासियों के लिए खुला है, परन्तु यह परमेश्वर की इच्छा और आत्मा की अगुवाई पर निर्भर है।

व्यावहारिक सुझाव

  • पवित्र आत्मा की भरपूरी के लिए नियमित प्रार्थना और उपवास।
  • बाइबल अध्ययन और कलीसिया की संगति में बने रहना।
  • वरदान के पीछे नहीं, वरदान देने वाले—यीशु मसीह—के पीछे लगे रहना।

निष्कर्ष

भाषाओं का वरदान केवल आत्मिक अनुभव नहीं, बल्कि परमेश्वर की महिमा, व्यक्तिगत आत्मिक उन्नति और कलीसिया की भलाई के लिए है। पवित्र आत्मा आज भी विश्वासियों को सामर्थ देता है। हमें हृदय खोलकर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह अपनी इच्छा अनुसार हमें यह वरदान दे और इसके सही प्रयोग में मार्गदर्शन करे।

Wednesday, 17 September 2025

प्रभु यीशु से आशीष कैसे प्राप्त करें –How to Receive Blessings from Lord Jesus

प्रभु यीशु से आशीष प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए

प्रभु यीशु से आशीष प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए

प्रस्तावना

हर इंसान अपने जीवन में शांति, आनंद, सफलता और आशीष की तलाश करता है। लेकिन सच्ची और स्थायी आशीष केवल प्रभु यीशु मसीह में ही मिलती है, क्योंकि वही परमेश्वर का पुत्र और उद्धार का स्रोत हैं। यीशु ने कहा, “मैं आया हूँ कि वे जीवन पाएं और बहुतायत से पाएं” (यूहन्ना 10:10)। आइए समझें कि प्रभु यीशु से आशीष पाने के लिए हमें किन आत्मिक कदमों पर चलना चाहिए।

1. विश्वास और स्वीकार करना

आशीष का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है—विश्वास। बाइबिल कहती है, “जो कोई उस पर विश्वास करेगा वह नाश नहीं होगा, पर अनन्त जीवन पाएगा” (यूहन्ना 3:16)
– यह स्वीकार करें कि यीशु ही आपके उद्धारकर्ता हैं।
– अपने पापों को ईमानदारी से प्रभु के सामने स्वीकार करें।
– विश्वास करें कि उनकी क्रूस पर दी गई बलिदानमय मृत्यु आपके पापों का पूरा मूल्य चुका चुकी है।

2. प्रार्थना और संगति में रहना

प्रभु से निकटता में रहना निरंतर प्रार्थना और संगति से संभव है।
व्यक्तिगत प्रार्थना: दिन की शुरुआत और अंत प्रभु से बात करते हुए करें।
बाइबिल पाठ: प्रतिदिन परमेश्वर के वचन को पढ़ना और उस पर मनन करना आशीष के द्वार खोलता है।
संगति: आत्मिक परिवार या कलीसिया में संगति आपको विश्वास में स्थिर रखती है और सामूहिक प्रार्थना से शक्ति देती है।

3. आज्ञाकारिता में चलना

परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना आशीष पाने का महत्वपूर्ण आधार है। व्यवस्थाविवरण 28 में लिखा है कि जो उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, उन पर आशीषें बरसती हैं।
– अपने व्यवहार, विचार और कार्यों को वचन के अनुसार बनाएं।
– क्षमा करना सीखें, क्योंकि प्रभु क्षमा करने वालों को ही आशीष देते हैं।
– पवित्रता और ईमानदारी का जीवन जीने का प्रयास करें।

4. दान और सेवा का जीवन

यीशु ने सिखाया, “जो सबसे छोटों के लिए करते हो, वह मेरे लिए करते हो” (मत्ती 25:40)
– गरीबों, अनाथों, विधवाओं, और जरूरतमंदों की सहायता करें।
– समय, प्रतिभा और संसाधन दूसरों की सेवा में लगाएँ।
– सेवा का हृदय परमेश्वर को प्रसन्न करता है और अनुग्रह के द्वार खोलता है।

5. दसवाँ हिस्सा (Tithing)

बाइबिल हमें सिखाती है कि हमारी कमाई का दसवाँ हिस्सा परमेश्वर का है। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि विश्वास और आज्ञाकारिता का कार्य है।
वचन: “सारी दशमांश भंडार में ले आओ, कि मेरे भवन में भोजन हो; और अब इस में मुझे परखो, सेनाओं का यहोवा कहता है, कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोल कर ऐसी आशीष बरसाऊँगा कि तुम्हारे पास रखने को जगह न होगी” (मलाकी 3:10)
– दशमांश देना परमेश्वर पर हमारे विश्वास को दर्शाता है कि वह हमारी हर ज़रूरत को पूरी करेगा।
– यह केवल धन तक सीमित नहीं; समय, प्रतिभा और संसाधनों में भी हम प्रभु को प्राथमिकता दें।

6. धन्यवाद और स्तुति

आशीष का रहस्य कृतज्ञता में छिपा है। “हर बात में धन्यवाद दो” (1 थिस्सलुनीकियों 5:18)
– हर परिस्थिति में प्रभु का धन्यवाद करें—सुख-दुःख दोनों में।
– भजन और गीतों से उसकी स्तुति करें।
– धन्यवाद का जीवन प्रभु की उपस्थिति और शांति को आमंत्रित करता है।

7. पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन

पवित्र आत्मा हमारे सहायक और मार्गदर्शक हैं। जब हम पवित्र आत्मा की अगुवाई में चलते हैं, तो आत्मिक वरदान और आशीषें स्वतः मिलती हैं।
– पवित्र आत्मा से भरपूर जीवन जीने के लिए नियमित प्रार्थना करें।
– उसके निर्देशन पर संवेदनशील रहें और अवज्ञा न करें।

निष्कर्ष

प्रभु यीशु से आशीष प्राप्त करना कोई जादू नहीं, बल्कि विश्वास, आज्ञाकारिता और प्रेम से भरा निरंतर आत्मिक जीवन है। जब हम पूरे मन से प्रभु को खोजते हैं, तो वे स्वयं वचन देते हैं: “मुझ को ढूंढोगे तो मुझे पाओगे, जब अपने सारे मन से मुझे ढूंढोगे” (यिर्मयाह 29:13)

आज ही निर्णय लें—प्रभु यीशु पर विश्वास करें, उनका वचन पढ़ें, प्रार्थना करें, दान करें, अपना दशमांश निष्ठा से दें और दूसरों के लिए आशीष बनें। तब आप देखेंगे कि उनके अनुग्रह और आशीषें आपके जीवन के हर क्षेत्र में भरपूर बहने लगेंगी।

How to Receive Blessings from Lord Jesus

How to Receive Blessings from Lord Jesus

Introduction

Every heart longs for peace, joy, success, and lasting blessings. The truest and most abundant blessing can only be found in Lord Jesus Christ, the Son of God and the source of salvation. Jesus said, “I have come that they may have life, and have it to the full” (John 10:10). Let’s explore the spiritual steps to receive His abundant blessings.

1. Faith and Acceptance

The first and most important step is faith. Scripture declares, “For God so loved the world that He gave His one and only Son, that whoever believes in Him shall not perish but have eternal life” (John 3:16).
– Accept Jesus as your personal Savior.
– Confess your sins honestly before God.
– Believe that His sacrifice on the cross paid the full price for your redemption.

2. Prayer and Fellowship

Stay close to the Lord through consistent prayer and fellowship.
Personal Prayer: Begin and end each day by talking with God.
Scripture Reading: Daily meditation on His Word opens the door of blessing.
Christian Fellowship: Being part of a church or faith community strengthens your walk with Christ and the power of corporate prayer.

3. Living in Obedience

God’s blessings follow obedience. In Deuteronomy 28, God promises blessings to those who keep His commands.
– Align your actions and thoughts with the Word.
– Learn to forgive, as God blesses those who forgive.
– Strive for holiness and integrity in every area of life.

4. Life of Giving and Service

Jesus taught, “Whatever you did for one of the least of these brothers and sisters of mine, you did for me” (Matthew 25:40).
– Help the poor, orphans, widows, and anyone in need.
– Offer your time, talents, and resources to serve others.
– A servant’s heart delights God and opens the floodgates of His grace.

5. Tithing (The Principle of the Tenth)

The Bible teaches that one-tenth of our income belongs to God. This is not mere tradition but an act of faith and obedience.
Scripture: “Bring the whole tithe into the storehouse, that there may be food in my house. Test me in this,” says the Lord Almighty, “and see if I will not throw open the floodgates of heaven and pour out so much blessing that there will not be room enough to store it” (Malachi 3:10).
– Tithing shows trust that God will provide all your needs.
– It’s not limited to money; we can tithe our time and abilities as well.

6. Thanksgiving and Praise

Gratitude unlocks the secret of blessing. “Give thanks in all circumstances” (1 Thessalonians 5:18).
– Thank God in every situation—both in joy and in trials.
– Worship with psalms, hymns, and songs of praise.
– A thankful heart invites God’s presence and peace.

7. Guidance of the Holy Spirit

The Holy Spirit is our Helper and Guide. When we walk in the Spirit, spiritual gifts and blessings naturally flow.
– Pray regularly to be filled with the Holy Spirit.
– Stay sensitive to His direction and do not resist His prompting.

Conclusion

Receiving blessings from Lord Jesus is not magic but a continual life of faith, obedience, and love. God promises, “You will seek me and find me when you seek me with all your heart” (Jeremiah 29:13).

Decide today to trust in Jesus completely, meditate on His Word, pray faithfully, give generously, offer your tithe with a sincere heart, and become a blessing to others. Then you will see His grace and abundant blessings overflow in every area of your life.

यीशु मसीह का जन्म | Jesus Birth Story of Love & Hope | Christmas Special

यीशु मसीह का जन्म – संसार के लिए आशा और उद्धार का संदेश

यीशु मसीह का जन्म – संसार के लिए आशा और उद्धार का संदेश

प्रस्तावना

हर वर्ष 25 दिसंबर को पूरी दुनिया प्रभु यीशु मसीह का जन्म दिन उत्साह और श्रद्धा से मनाती है। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि ईश्वर के उस अद्भुत प्रेम का स्मरण है जिसमें उसने अपने पुत्र को मानव जाति के उद्धार के लिए इस पृथ्वी पर भेजा। यह दिन हमें याद दिलाता है कि अंधकार में डूबे संसार को सच्चा प्रकाश मिल चुका है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

लगभग दो हजार वर्ष पहले यहूदिया के बेथलहम नगर में मरियम और यूसुफ के घर प्रभु यीशु का जन्म हुआ। बाइबल बताती है कि उस समय रोमी साम्राज्य का शासन था और सभी लोग जनगणना के लिए अपने नगर लौट रहे थे। सराय में जगह न मिलने के कारण यीशु का जन्म एक साधारण गौशाला में हुआ। यही सादगी आज भी हमें यह संदेश देती है कि परमेश्वर का प्रेम किसी महल या धन दौलत का मोहताज नहीं है।

जन्म का उद्देश्य

यीशु का आगमन केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि परमेश्वर की महान योजना का हिस्सा था। उनका जन्म इसलिए हुआ कि वे मानवता को पाप और निराशा से मुक्ति दें। वे शांति, प्रेम और क्षमा का मार्ग दिखाने आए। उनकी शिक्षा—दूसरों से प्रेम करो, शत्रुओं को भी क्षमा करो, और परमेश्वर पर विश्वास रखो—आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी दो हजार वर्ष पहले थी।

क्रिसमस का वास्तविक अर्थ

रंगीन सजावट, उपहार, और रोशनी क्रिसमस के उत्सव का हिस्सा हैं, पर इसका असली सार आत्मिक है। यह पर्व हमें उदारता, दया और सेवा की याद दिलाता है। जब हम जरूरतमंदों की सहायता करते हैं, गरीबों को भोजन कराते हैं या अकेले लोगों के साथ समय बिताते हैं, तब हम वास्तव में यीशु के जन्म का उत्सव मनाते हैं।

हमारे जीवन के लिए संदेश

यीशु का जन्म हमें आशा देता है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा हो, एक छोटी सी ज्योति सब कुछ बदल सकती है। उनके जीवन से हम सीखते हैं कि सच्ची महानता नम्रता में है, और सच्चा सुख दूसरों को आशीष देने में है।

निष्कर्ष

यीशु मसीह का जन्म दिन केवल इतिहास का पन्ना नहीं, बल्कि हर इंसान के हृदय को छूने वाला जीवंत संदेश है—प्रेम, क्षमा, और अनन्त जीवन का। इस क्रिसमस हम सब संकल्प लें कि अपने घर-परिवार और समाज में शांति, करुणा और भाईचारे का प्रकाश फैलाएँ।

The Birth of Jesus – A Message of Hope and Salvation for the World

The Birth of Jesus – A Message of Hope and Salvation for the World

Introduction

Every year on December 25, people around the world celebrate the birth of Lord Jesus Christ with joy and reverence. Christmas is more than a festival; it is the remembrance of God’s amazing love, when He sent His Son to earth for the salvation of all humanity. This day reminds us that true light has come into a world filled with darkness.

Historical Background

Around two thousand years ago, in the town of Bethlehem of Judea, Jesus was born to Mary and Joseph. According to the Bible, during the Roman Empire’s rule everyone had returned to their hometowns for a census. Because there was no room at the inn, Jesus was born in a humble stable. This simplicity still speaks to us today, showing that God’s love is not dependent on wealth or palaces.

Purpose of His Birth

The birth of Jesus was not just a historical event; it was part of God’s great plan. He came to free humanity from sin and despair. Jesus brought a message of peace, love, and forgiveness. His teachings—to love others, forgive even our enemies, and trust in God—remain as powerful and relevant today as they were two millennia ago.

The Real Meaning of Christmas

Decorations, gifts, and bright lights are joyful parts of Christmas, but the true essence is spiritual. The festival calls us to generosity, compassion, and service. When we help the needy, feed the hungry, or spend time with the lonely, we celebrate the true spirit of Christ’s birth.

A Message for Our Lives

The birth of Jesus gives us hope that no matter how deep the darkness, a single light can transform everything. His life teaches us that real greatness is found in humility and that true happiness comes from blessing others.

Conclusion

The birth of Jesus Christ is not merely a page of history; it is a living message that touches every human heart—love, forgiveness, and eternal life. This Christmas, let us commit ourselves to spreading light, peace, compassion, and brotherhood in our homes, families, and communities.

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