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Friday, 15 August 2025

इसराइल: बाइबल से आज तक — इतिहास वाचा और भविष्यवाणी | Israel: From the Bible to Today — History Covenant and Prophecy

इसराइल: बाइबल से आज तक — इतिहास, वाचा और भविष्यवाणियाँ

यह लेख इसराइल की बाइबलनिष्ठ यात्रा को शुरुआत से वर्तमान तक समझाता है—अबराहम की वाचा, मिस्र से उद्धार, राज्य-विभाजन, निर्वासन, वापसी, दूसरे मंदिर का काल, यीशु मसीह का आगमन, रोमी विनाश, 1948 की आधुनिक पुनर्स्थापना और अंत समय की भविष्यवाणियाँ—सब कुछ वचन-संदर्भों के साथ, ताकि आप इसे प्रचार/बाइबल अध्ययन में सीधे उपयोग कर सकें।


1) शुरुआत: अब्राहम की बुलाहट और भूमि-वाचा

उत्पत्ति 12:1–3 — “मैं तुझे एक बड़ी जाति बनाऊँगा… और तुझमें पृथ्वी के सब कुल आशीष पाएँगे।”

उत्पत्ति 15:18 — “उस दिन यहोवा ने अब्राम के साथ वाचा बंधाई…”

उत्पत्ति 17:7–8 — “यह वाचा सदा की वाचा ठहरेगी… कनान देश तुम्हारी सदा की संपत्ति होगा।”

अब्राहम → इसहाक (उत्प. 17:19) → याकूब (इसराइल, उत्प. 32:28) → 12 गोत्र (उत्प. 49). वाचा की तीन डोर—भूमि, वंश, आशीष—यही इसराइल की पहचान/बुलाहट का आधार है।

2) मिस्र से उद्धार, व्यवस्था और भूमि-प्रवेश

निर्गमन 3:7–10; 12 — फसह और उद्धार; परमेश्वर का छुड़ाना।

निर्गमन 19:5–6 — “याजकों का राज्य और पवित्र जाति।”

निर्गमन 20 — दस आज्ञाएँ; व्यवस्थाविवरण — राष्ट्र-जीवन की रूपरेखा।

यहोशू की अगुवाई में भूमि-प्रवेश (यहो. 1) और गोत्रों में बाँट। इस चरण में इसराइल एक वाचा-राष्ट्र के रूप में स्थापित होता है।

3) न्यायियों का चक्र, संयुक्त राजशाही और विभाजन

न्यायियों का दौर (अवज्ञा → दमन → पुकार → छुड़ाना; न्या. 2) के बाद संयुक्त राजशाही: शाऊल–दाऊद–सुलैमान (1 शमूएल–1 राजा). 2 शमूएल 7:12–16 में दाऊदी वाचा—“तेरा सिंहासन सदा”। बाद में राज्य विभाजन (1 राजा 12): उत्तर में इसराइल (समरिया), दक्षिण में यहूदा (यरूशलेम)।

4) पतन, निर्वासन और वापसी (दूसरा मंदिर)

2 राजा 17 — 722 ई.पू. उत्तरी राज्य का पतन (अश्शूर)।

2 राजा 25 — 586 ई.पू. यहूदा का पतन (बाबुल), मंदिर नष्ट।

यिर्मयाह 29:10–14 — 70 वर्षों के बाद वापसी की प्रतिज्ञा।

एज्रा 1 — कुस्रू (Cyrus) का फरमान; वापसी व मंदिर-निर्माण (516 ई.पू.).

नहेमायाह — यरूशलेम की दीवारें।

5) मसीहा का युग और रोमी विनाश

मीका 5:2 — बेतलेहेम से शासक। यशायाह 53 — दु:खी सेवक।

दानिय्येल 9:24–27 — समय-संकेत (कई व्याख्याएँ, मसीह की ओर संकेत माना जाता है)।

लूका 21:20–24 — यरूशलेम पर घेराव की चेतावनी; 70 ई. में विनाश (इतिहास)।

मसीह का क्रूस और पुनरुत्थान इतिहास का महान मोड़; उसके बाद व्यापक डायस्पोरा (बिखराव)।

6) बाइबल की प्रमुख भविष्यवाणियाँ (चयनित पाठ)

  • वापसी/इकट्ठा होना: व्यवस्थाविवरण 30:1–5; यिर्मयाह 31:8–10; आमोस 9:14–15
  • सूखी हड्डियाँ (पुनर्जीवन का चित्र): यहेजकेल 37:1–14
  • यरूशलेम केंद्र में: जकर्याह 12:2–3; 14 अध्याय
  • नई वाचा: यिर्मयाह 31:31–34
  • राष्ट्रों/समय की दृष्टि: रोमियों 11:25–27

इन पाठों की व्याख्या में मतभेद हो सकते हैं; पर मुख्य संदेश—परमेश्वर वाचा का विश्वासयोग्य है, और अन्तिम समाधान नई वाचा में है।

7) आधुनिक काल: 19वीं–20वीं सदी और पुनर्स्थापना

उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में वापसी की धाराएँ; 1917 बैलफोर घोषणा; ब्रिटिश मैंडेट. 14 मई 1948—आधुनिक State of Israel की घोषणा; इसके बाद युद्ध/संघर्ष और विश्वभर से समुदायों का लौटना. कई मसीही इसे इकट्ठा किए जाने की भविष्यवाणियों (यहेज. 36–37; यिर्म. 31; आमोस 9) के साथ जोड़कर देखते हैं।

8) “अब तक” का रेखाचित्र (Genesis से वर्तमान)

  • अबराहम को वाचा: उत्प. 12; 15; 17
  • मूसा से उद्धार; यहोशू से भूमि-प्रवेश
  • दाऊद–सुलैमान; फिर विभाजन (1 राजा 12)
  • 722/586 ई.पू.: पतन/निर्वासन; फिर एज्रा–नहेम्याह द्वारा वापसी
  • 70 ई.: रोमी विनाश; दीर्घ डायस्पोरा
  • 1948: आधुनिक राज्य; 1967 के बाद के फेरबदल

9) प्रचार-बिंदु: वचन + लागू

यहेजकेल 36:24–28 — बाहरी पुनर्स्थापना + आंतरिक नवीनीकरण (“नया मन/नई आत्मा”).

यहेजकेल 37 — चरणबद्ध पुनर्जीवन: पहले जोड़, फिर श्वास।

जकर्याह 12–14 — यरूशलेम की वैश्विक संवेदनशीलता; प्रभु का हस्तक्षेप।

यिर्मयाह 31:31–34 — नई वाचा: हृदय पर व्यवस्था।

रोमियों 11 — विनम्रता, प्रार्थना, परमेश्वर की योजना पर भरोसा।

10) आज हमारे लिए क्या अर्थ?

  • प्रार्थना — शांति और उद्धार के लिए (भजन 122:6; 1 तीमु. 2:1–4).
  • वचन-केन्द्रित दृष्टि — खबरों को भविष्यवाणी-पाठों की रोशनी में समझें, पर सनसनी से दूर रहें (मत्ती 24:6).
  • आध्यात्मिक तैयारी — नई वाचा के अनुसार पश्चाताप, पवित्रता और मसीह में आशा।

निष्कर्ष

कथा का सूत्र एक ही है—परमेश्वर वाचा का ईमानदार है। अब्राहम की प्रतिज्ञा से लेकर निर्वासन और फिर वापसी तक, और आज की घटनाओं तक, बाइबल दिखाती है कि इतिहास संयोग नहीं—उद्धार-योजना का हिस्सा है। अंतिम समाधान नई वाचा और मसीह में है—जहाँ न्याय, शांति और अनन्त राज्य का वचन है (यिर्म. 31; जकर. 14; प्रकाशितवाक्य 21).

त्वरित संदर्भ सूची (Quick Scripture Index)

उत्प. 12; 15; 17; 32:28; 49 | निर्ग. 12; 19–20 | व्यव. 28–30 | यहो. 1 | 1–2 शमूएल; 1–2 राजा | यिर्म. 29; 31 | यहेज. 36–37 | दानि. 9 | जकर. 12–14 | लूका 21 | रोमि. 11 | भज. 122:6 | प्रकाशित. 21

Israel: From the Bible to Today — History, Covenant, and Prophecies

This article traces Israel’s biblical journey from its beginning to the present—the Abrahamic covenant, the Exodus from Egypt, the division of the kingdom, exile, return, the Second Temple era, the coming of Jesus Christ, the Roman destruction, the modern restoration in 1948, and end-time prophecies—all with scriptural references so you can use it directly for preaching or Bible study.


1) Beginning: Abraham’s Call and the Land Covenant

Genesis 12:1–3 — “I will make you into a great nation… and all peoples on earth will be blessed through you.”

Genesis 15:18 — “On that day the LORD made a covenant with Abram…”

Genesis 17:7–8 — “This covenant will be everlasting… Canaan will be your everlasting possession.”

Abraham → Isaac (Gen. 17:19) → Jacob (Israel, Gen. 32:28) → 12 tribes (Gen. 49). Three strands of the covenant—land, descendants, blessing—form the basis of Israel’s identity and calling.

2) Exodus, the Law, and Entry into the Land

Exodus 3:7–10; 12 — Passover and deliverance; God’s redemption.

Exodus 19:5–6 — “A kingdom of priests and a holy nation.”

Exodus 20 — The Ten Commandments; Deuteronomy — the national constitution.

Under Joshua’s leadership, Israel entered the land (Josh. 1) and divided it among the tribes. This stage established Israel as a covenant nation.

3) Judges, United Monarchy, and Division

The Judges period (disobedience → oppression → cry → deliverance; Judg. 2) was followed by the united monarchy: Saul–David–Solomon (1 Samuel–1 Kings). In 2 Samuel 7:12–16 God promised David, “Your throne will be established forever.” Later, the kingdom split (1 Kings 12): Israel (north, Samaria) and Judah (south, Jerusalem).

4) Decline, Exile, and Return (Second Temple)

2 Kings 17 — 722 BC: Northern kingdom falls (Assyria).

2 Kings 25 — 586 BC: Judah falls (Babylon), temple destroyed.

Jeremiah 29:10–14 — Promise of return after 70 years.

Ezra 1 — Cyrus’ decree; return and temple rebuilt (516 BC).

Nehemiah — Rebuilding Jerusalem’s walls.

5) Messianic Age and Roman Destruction

Micah 5:2 — Ruler from Bethlehem. Isaiah 53 — Suffering servant.

Daniel 9:24–27 — Prophetic timetable (often interpreted as pointing to Messiah).

Luke 21:20–24 — Warning of Jerusalem’s siege; fulfilled in AD 70.

The crucifixion and resurrection of Christ marked history’s turning point, followed by the great diaspora (scattering).

6) Key Biblical Prophecies

  • Return/Gathering: Deuteronomy 30:1–5; Jeremiah 31:8–10; Amos 9:14–15
  • Dry bones vision: Ezekiel 37:1–14
  • Jerusalem at the center: Zechariah 12:2–3; ch. 14
  • New Covenant: Jeremiah 31:31–34
  • Gentile time frame: Romans 11:25–27

Interpretations vary, but the main theme remains: God is faithful to His covenant, and the ultimate fulfillment is in the New Covenant.

7) Modern Era: 19th–20th Century and Restoration

In the late 19th century, waves of return began; 1917 Balfour Declaration; British Mandate. On May 14, 1948, the modern State of Israel was declared, followed by wars and waves of immigration. Many Christians connect this with the prophetic “gathering” (Ezek. 36–37; Jer. 31; Amos 9).

8) “So Far” — Timeline (Genesis to Today)

  • Abraham’s covenant: Gen. 12; 15; 17
  • Deliverance through Moses; land entry through Joshua
  • David–Solomon; then division (1 Kings 12)
  • 722/586 BC: Fall/exile; return under Ezra–Nehemiah
  • AD 70: Roman destruction; long diaspora
  • 1948: Modern state; post-1967 changes

9) Preaching Points: Word + Application

Ezekiel 36:24–28 — Outer restoration + inner renewal (“new heart, new spirit”).

Ezekiel 37 — Stages of revival: first sinews, then breath.

Zechariah 12–14 — Jerusalem’s global centrality; the Lord’s intervention.

Jeremiah 31:31–34 — New covenant written on the heart.

Romans 11 — Humility, prayer, trust in God’s plan.

10) What Does This Mean for Us Today?

  • Prayer — For peace and salvation (Psalm 122:6; 1 Tim. 2:1–4).
  • Scripture-centered view — Understand news in the light of prophecy, but avoid sensationalism (Matt. 24:6).
  • Spiritual readiness — Repentance, holiness, and hope in Christ under the New Covenant.

Conclusion

The thread running through history is one: God is faithful to His covenant. From Abraham’s promise to exile and return, up to today’s events, the Bible shows history is no accident—it’s part of the plan of redemption. The ultimate solution is in the New Covenant through Christ, where justice, peace, and an eternal kingdom are promised (Jer. 31; Zech. 14; Rev. 21).

Quick Scripture Index

Gen. 12; 15; 17; 32:28; 49 | Ex. 12; 19–20 | Deut. 28–30 | Josh. 1 | 1–2 Samuel; 1–2 Kings | Jer. 29; 31 | Ezek. 36–37 | Dan. 9 | Zech. 12–14 | Luke 21 | Rom. 11 | Ps. 122:6 | Rev. 21

Tuesday, 1 July 2025

महीने के लिए आशीष भरे वचन | 25 Blessings for Month – Healing Success & Spiritual Growth

महीने के लिए 25 आशीष वचन

इस जुलाई महीने की शुरुआत परमेश्वर के वचनों और आत्मिक आशीषों से करें। नीचे दिए गए 25 आशीष भरे वाक्य आपको और आपके परिवार को प्रोत्साहन, चंगाई, सफलता और आत्मिक शांति देंगे।

  • 🕊️ जुलाई के महीने में आपका जीवन प्रभु की उपस्थिति से भर जाए।
  • 🔥 आपके घर में शांति, रिश्तों में बहाली और आत्मा में ताज़गी आए।
  • 📖 परमेश्वर का वचन आपके जीवन का दीपक बने और हर अंधकार को दूर करे।
  • 💼 जो दरवाज़े बंद थे, इस महीने प्रभु उन्हें खोल देगा — नौकरी, व्यापार और अवसरों के लिए।
  • 🌾 जो मेहनत आपने छुपकर की, उसका प्रतिफल इस महीने प्रगट होगा।
  • 💧 आपका शरीर चंगा हो, मन शुद्ध हो और आत्मा नई जोश से भर जाए।
  • 🎯 जो कार्य अधूरे थे, जुलाई में प्रभु उन्हें पूरा करेगा।
  • 🌄 यह महीना आपके लिए नई शुरुआत और नई दिशा लेकर आएगा।
  • 🕊️ आप जहां भी जाएं, वहां शांति और सामर्थ्य का वातावरण बने।
  • 🙌 प्रभु की आशीष आप पर और आपके परिवार पर स्थिर बनी रहे।
  • 📜 आपकी हर प्रार्थना प्रभु के सिंहासन तक पहुँचे और उत्तर पाए।
  • 🌟 आपका मन भय से नहीं, विश्वास और प्रेम से भरा हो।
  • 👣 प्रभु आपके कदमों को स्थिर करेगा और आप गलत मोड़ पर नहीं जाएंगे।
  • 📈 जहां आपको हटाया गया था, वहीं परमेश्वर आपको फिर से ऊंचाई पर लाएगा।
  • 💖 आपके रिश्तों में प्रेम, क्षमा और समझदारी बढ़ेगी।
  • 🌿 आपकी आत्मिक यात्रा और भी गहरी और फलदायक होगी।
  • ⛪ आप प्रभु के राज्य में उपयोगी और आशीष का स्रोत बनें।
  • 💡 जहां आपके पास योजना नहीं थी, वहां प्रभु स्वर्गीय योजना प्रकट करेगा।
  • 🕯️ आपके अतीत के घाव भरेंगे और नया प्रकाश आपके भीतर से निकलेगा।
  • 🎉 जुलाई का हर दिन आपके लिए गवाही, आश्चर्य और चमत्कार से भरा हो।
  • 🫶 प्रभु आपको ऐसे लोगों से जोड़ देगा जो आपको ऊपर उठाएँगे।
  • 🥀 आपकी थकान प्रभु की उपस्थिति में विश्राम पाएगी।
  • 💬 आपके होंठ प्रशंसा से और आपका हृदय आभार से भरा रहेगा।
  • 📌 आप केवल आशीष नहीं पाएंगे, दूसरों के लिए भी आशीष का जरिया बनेंगे।
  • 🕊️ प्रभु का वचन आप पर पूरा होगा — आप सिर होंगे, पूँछ नहीं।

ईश्वर आपके इस महीने को सफल, सुरक्षित और आत्मिक रूप से फलदायक बनाए।

Blessings for the Month of July – A Fresh Start With God

Start this month of July with the promises, peace, and presence of the Lord. May His Word guide you, and His Spirit lead you into a month full of healing, favor, and success.

  • 🕊️ May your life be filled with the presence of the Lord this July.
  • 🔥 May your home experience peace, restoration in relationships, and freshness in spirit.
  • 📖 May the Word of God be a lamp to your path and remove every darkness from your life.
  • 💼 Doors that were once shut will be opened this month — for jobs, business, and new opportunities.
  • 🌾 The efforts you made in secret will be rewarded and revealed this month.
  • 💧 May your body be healed, your mind renewed, and your soul be filled with new energy.
  • 🎯 Tasks that were left incomplete — the Lord will bring them to fulfillment in July.
  • 🌄 This month will bring new beginnings and divine direction for your life.
  • 🕊️ Wherever you go, may the atmosphere be filled with peace and power.
  • 🙌 May the Lord's blessings remain upon you and your family continually.
  • 📜 May every prayer you lift up reach the throne of God and be answered.
  • 🌟 Let your heart be filled with faith and love — not fear.
  • 👣 The Lord will establish your steps and you will not go the wrong way.
  • 📈 Where you were rejected, God will restore and lift you again.
  • 💖 May your relationships grow in love, forgiveness, and understanding.
  • 🌿 May your spiritual walk deepen and bear fruit abundantly.
  • ⛪ May you be useful in God's Kingdom and become a source of blessing to others.
  • 💡 Where you had no plan, God will reveal His heavenly purpose.
  • 🕯️ Your past wounds will heal and new light will shine from within you.
  • 🎉 Each day of July will bring testimony, wonder, and divine miracles.
  • 🫶 God will connect you with people who will lift you higher.
  • 🥀 Your weariness will find rest in the presence of the Lord.
  • 💬 May your lips overflow with praise and your heart with gratitude.
  • 📌 You will not only be blessed, but become a blessing to many others.
  • 🕊️ God’s Word will be fulfilled in your life — you shall be the head and not the tail.

May this July be full of peace, healing, new beginnings, and divine favor. Trust the Lord, and walk into His promises!

Sunday, 18 May 2025

अय्यूब 1 अध्याय – पूरा वचन और गहरी व्याख्या | Hindi Bible Study | Job Chapter 1 Explanation

अय्यूब 1 अध्याय – पूरा वचन और विस्तार से व्याख्या | हिंदी बाइबल अध्ययन

अय्यूब 1 अध्याय – पूरा वचन और विस्तार से व्याख्या

अय्यूब 1 अध्याय के बारे में जानकारी:
अय्यूब 1 अध्याय में हम एक धर्मात्मा और धीरजवान इंसान अय्यूब की कहानी पढ़ते हैं। यह अध्याय हमें सिखाता है कि जब इंसान पर विपत्तियाँ आती हैं तब भी उस पर विश्वास बनाए रखना कितना जरूरी होता है। इस अध्याय में शैतान और परमेश्वर के बीच संवाद के माध्यम से अय्यूब की परीक्षा का वर्णन है, जिससे हमें धैर्य और ईमानदारी की प्रेरणा मिलती है।


अय्यूब 1:1

"उश की धरती पर एक मनुष्य था, जिसका नाम अय्यूब था। वह निःसंदेह था और परमेश्वर से डरा हुआ था, और बुराई से कटता था।"

व्याख्या: अय्यूब का परिचय इस वचन में मिलता है कि वह एक धार्मिक और सच्चा इंसान था। उसका जीवन परमेश्वर की आज्ञाओं के अनुसार था और वह बुराई से दूर रहता था। इससे हमें यह सीख मिलती है कि एक सच्चा विश्वास रखने वाला इंसान अपने आचरण से अलग पहचाना जाता है।

अय्यूब 1:2

"उसके सात पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं।"

व्याख्या: अय्यूब के परिवार का परिचय यहाँ दिया गया है, जो एक खुशहाल और समृद्ध परिवार था। इस से यह पता चलता है कि वह केवल व्यक्तिगत रूप से ही नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी स्थापित और समृद्ध था।

अय्यूब 1:3

"उसके पास बहुत सारी भेड़ें और ऊँट थे, बहुत से मजदूर और बहुत धन-दौलत थी। वह पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा था।"

व्याख्या: अय्यूब की संपत्ति और सामाजिक स्थिति का वर्णन करता है कि वह अपने समय के सबसे सम्पन्न और सम्मानित व्यक्ति थे। इससे यह पता चलता है कि वह सफल था, लेकिन फिर भी विनम्र और परमेश्वर का भय रखने वाला था।

अय्यूब 1:4

"उसके पुत्र अपने घरों में भोज किया करते थे, और उनकी तीनों बहनें उनके साथ भोजन करती थीं।"

व्याख्या: यहाँ अय्यूब के परिवार में प्रेम और मेलजोल की बात की गई है। परिवार के सदस्य मिलजुल कर खुशहाल समय बिताते थे, जो परिवार की एकता और प्रेम को दर्शाता है।

अय्यूब 1:5

"जब भोज पूरा होता, तो अय्यूब उठता, और अपने बच्चों को पवित्र करता, और प्रत्येक को क्षमा करने के लिए प्रार्थना करता, क्योंकि वह कहता था, 'किस knows, may be my children sinned and cursed God in their hearts.'"

व्याख्या: अय्यूब की ईमानदारी और परमेश्वर के प्रति उसकी गहरी श्रद्धा यहां दिखती है। वह अपने बच्चों के लिए भी परमेश्वर से क्षमा मांगता था, जो बताता है कि वह आत्मा की शुद्धता के लिए कितना चिंतित था। यह हमें भी अपने परिवार और स्वयं के लिए ईश्वर की रहमत के लिए प्रार्थना करने की सीख देता है।

अय्यूब 1:6

"एक दिन जब परमेश्वर के बेटे उसके सामने आये, तब शैतान भी उनके बीच में आ गया।"

व्याख्या: यह वचन स्वर्गीय सभा का परिचय देता है जहाँ परमेश्वर के स्वर्गदूत आते हैं, और शैतान भी उनके बीच में आता है। यह हमे दिखाता है कि परमेश्वर की योजना में शैतान की भी एक भूमिका होती है। यह संघर्ष का आरंभ है जो अय्यूब की परीक्षा के लिए तैयार करता है।

अय्यूब 1:7

"परमेश्वर ने शैतान से कहा, 'तुम कहां से आये?' शैतान ने परमेश्वर से कहा, 'धरती पर और वहां के लोगों के बीच घूम रहा था।'"

व्याख्या: शैतान की धरती पर गतिविधि का उल्लेख यह बताता है कि वह लगातार मनुष्यों को परीक्षा में डालने और परमेश्वर के कार्यों को चुनौती देने के लिए सक्रिय है। हमें अपने जीवन में शैतान की चालाकियों से सावधान रहना चाहिए।

अय्यूब 1:8

"परमेश्वर ने शैतान से कहा, 'क्या तुमने मेरे सेवक अय्यूब को देखा है? वहां कोई नहीं है जो मेरा सेवक जैसा हो। वह निःसंदेह है और परमेश्वर से डरा हुआ है, और बुराई से कटता है।'"

व्याख्या: परमेश्वर अय्यूब की प्रशंसा करता है और उसकी सच्चाई की गवाही देता है। यह हमें याद दिलाता है कि ईश्वर अपने सेवकों को देखता है और उनकी भक्ति को महत्व देता है।

अय्यूब 1:9

"शैतान ने परमेश्वर से कहा, 'क्या अय्यूब बिना कारण परमेश्वर से डरा है?'"

व्याख्या: शैतान अय्यूब के विश्वास पर संदेह करता है और कहता है कि अय्यूब सिर्फ इसलिए परमेश्वर से डरता है क्योंकि वह समृद्ध और सुरक्षित है। यह हमारे जीवन की सच्चाई की परीक्षा का प्रतीक है।

अय्यूब 1:10

"क्या तुमने उसके ऊपर और उसके घर पर अपनी छाया नहीं डाली है? उसने तेरी संपत्ति का रखरखाव किया है। इसलिए वह तुम्हारा नाम पूजता है।"

व्याख्या: शैतान कहता है कि अय्यूब का भक्ति केवल उसके भौतिक आशीर्वादों के कारण है। यह चुनौती है कि क्या विश्वास विपत्ति में भी कायम रह सकता है।

अय्यूब 1:11

"परंतु अब हाथ उठा कर उसे छू, और देख, क्या वह खुलेआम तुझे श्राप नहीं देगा।'"

व्याख्या: शैतान परमेश्वर को चुनौती देता है कि अगर अय्यूब को दुःख दिया जाए तो वह उसका विश्वास तोड़ देगा। यह जीवन में परीक्षा और संघर्ष के समय हमारी सच्चाई की परीक्षा का प्रतीक है।

अय्यूब 1:12

"परमेश्वर ने शैतान से कहा, 'देख, वह तेरे हाथ में है; पर उसकी जान को मत छूना।' तब शैतान परमेश्वर के सामने से चला गया।"

व्याख्या: परमेश्वर की अनुमति से शैतान अय्यूब की परीक्षा करता है, लेकिन उसकी जान को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता। यह हमें सिखाता है कि ईश्वर अपनी सीमाएँ निर्धारित करता है, और हमारी रक्षा करता है।

अय्यूब 1:13

"एक दिन जब उसके पुत्र और पुत्रियाँ अपने घरों में भोज कर रहे थे, तब एक दूत अय्यूब के पास आया।"

व्याख्या: यहाँ विपत्ति की शुरुआत होती है, जब अय्यूब के खुशहाल जीवन में संकट आता है। यह जीवन के उतार-चढ़ाव को दर्शाता है, जो किसी भी इंसान के लिए संभव है।

अय्यूब 1:14

"उसने कहा, 'तुम्हारे भेड़ों पर हमला हुआ है, और जो भेड़ों को चराते थे, वे मार दिए गए। मैं भाग कर आया हूँ कि तुम्हें खबर दूं।'"

व्याख्या: यह वचन अय्यूब की पहली बड़ी हानि की सूचना देता है। अचानक हुए नुकसान से जीवन में अस्थिरता और पीड़ा आती है।

अय्यूब 1:15

"जब वह बात कर रहा था, एक और आया, और कहा, 'तेरे सात बैल और तीन ऊँट आग में जल गए, और उनके चरवाहे मरे। मैं भाग कर आया हूँ कि तुम्हें खबर दूं।'"

व्याख्या: लगातार दूसरी आपदा अय्यूब की परीक्षा को और बढ़ाती है। यह दर्शाता है कि विपत्तियाँ एक के बाद एक आ सकती हैं, लेकिन विश्वास बनाए रखना आवश्यक है।

अय्यूब 1:16

"जब वह बात कर रहा था, तो एक और आया, और कहा, 'तेरे बेटे और बेटियाँ भोज कर रहे थे, और एक मजबूत हवा ने चारों को मार डाला। मैं अकेला बच कर आया हूँ कि तुम्हें खबर दूं।'"

व्याख्या: सबसे बड़ी हानि परिवार की मौत से अय्यूब की परीक्षा चरम पर पहुँचती है। यह इंसान के जीवन की नाजुकता और ईश्वर पर विश्वास की जरूरत को दर्शाता है।

अय्यूब 1:17

"अय्यूब ने उठ कर अपने वस्त्र फाड़े, अपना सिर मट्ठे, और गिर कर परमेश्वर की उपासना की।"

व्याख्या: अय्यूब की प्रतिक्रिया हमें सिखाती है कि विपत्ति में भी हमें परमेश्वर की पूजा करनी चाहिए, दुख में भी विश्वास को नहीं खोना चाहिए। यह सच्चे विश्वास का परिचायक है।

अय्यूब 1:18

"उसका सब परिवार उसके सामने था, और वह हर कष्ट से गुज़र रहा था।"

व्याख्या: यहां अय्यूब की पीड़ा और उसकी परीक्षा का जिक्र है। जीवन के सबसे कठिन क्षणों में भी वह अपने विश्वास को नहीं छोड़ता। यह सभी के लिए प्रेरणा है।

अय्यूब 1:19

"अय्यूब ने कहा, 'नंगे हाथ मैं अपनी माँ की गोद से निकला हूँ, और नंगे हाथ लौट जाऊँगा।'"

व्याख्या: यह वचन बताता है कि मनुष्य इस दुनिया में कुछ भी लेकर नहीं आता और कुछ भी लेकर नहीं जाता। जीवन अस्थायी है, और हमें परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए।

अय्यूब 1:20

"फिर उसने घुटनों के बल गिर कर उपासना की।"

व्याख्या: विपत्ति में अय्यूब की नम्रता और भक्ति का यह सुंदर दृश्य है। यह हमें भी सिखाता है कि संकट के समय हमें भी विनम्र होकर ईश्वर की ओर लौटना चाहिए।

अय्यूब 1:21

"अय्यूब ने कहा, 'परमेश्वर ने दिया है, परमेश्वर ने लिया है; परमेश्वर का नाम धन्य हो।'"

व्याख्या: अय्यूब का यह कथन हमारे विश्वास की गहराई को दर्शाता है। वह जानता है कि सारी संपत्ति और खुशियाँ परमेश्वर की देन हैं, और किसी भी परिस्थिति में उसका नाम धन्य माना जाना चाहिए।

अय्यूब 1:22

"सभी इस प्रकार की बातों पर अय्यूब ने कोई पाप नहीं किया, न ही उसने परमेश्वर को दोषी ठहराया।"

व्याख्या: अंतिम वचन यह दिखाता है कि अय्यूब ने अपने विश्वास को नहीं खोया, और उसने परमेश्वर को दोष नहीं दिया। यह हमें सिखाता है कि हमें जीवन की कठिनाइयों में भी ईश्वर पर भरोसा बनाए रखना चाहिए।


यह पोस्ट Pastor Emmanuel के द्वारा लिखा गया है।

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