विश्वास करने वालों के लिए सब कुछ हो सकता है।।
(मरकुस 5:34)
*प्रभु यीशु ने उस से कहा; पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह॥*
*अतिप्रिय बन्धुओं परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिए उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होती रहे क्योंकि वो भला है उसकी करुणा सदा की है।।।*
प्रियजनों पवित्र शास्त्र बाइबिल में हम पाते हैं कि जब सृजनहार प्रभु परमेश्वर येशु मसीह इस जगत में सदेह विचरण कर रहे थे उस दरमियान में एक अत्याधिक पीढ़ा दायक असाध्य रोग से ग्रसित एक स्त्री का वर्णन पाते हैं, जिसको 12 वर्षो से लहू बहने का रोग था, उस ने अपना सारा धन अपने इलाज के लिए खर्च कर दिया अब इस जगत से उसे न तो कोई उम्मीद बाकी रह गयी थी न ही इतना धन कि आगे को वह कुछ कर सके, उसका इस जगत से भरोसा पूरी तरह से टूट चूका था, उसने सृजनहार परमात्मा परमेश्वर प्रभु येशू मसीह के बारे में काफी कुछ सुन रखा था, इसीलिए उसे प्रभु येशू पर ही अब पूरा भरोसा था वरन उसने जो कुछ भी सुन रखा था उसके अनुसार तो उसमें यहाँ तक विश्वास आ गया था कि मैं यदि प्रभु येशु मसीह के वस्त्र के छोर को ही छू लूंगी तो मैं चंगी हो जाऊंगी।।।
विडंबना ही कहलो या कुछ और कि आज के इस अंतिम युग में हमें ऐसे अनेकों मनुष्य मिल जायेंगे जिनके साम्हने साक्षात रूप से जीवित प्रभु यीशु आकर भी उन्हें छू लें तो भी वे अपने ह्रदय कि कठोरता अर्थात अविश्वास और संदेह के चलते चंगे न होंगे क्योंकि वे तब भी संदेह करेंगे कि सचमुच ऐसा भी हो सकता है क्या??? नहीं यार मेरी व्याधि तो असाध्य है इतनी बड़ी कि बड़े बड़े डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं, अब तो मेरी म्रत्यु निश्चित है, अब मुझे स्वयं परमात्मा भी उतर आये तो नहीं बचा सकते क्योंकि जब बड़े बड़े डॉक्टरों ने जो डिक्लेयर (घोषित) कर दिया है तो हमें कोई नहीं बचा सकता इत्यादि इत्यादि ।।।
प्रियजनों यहाँ पर मनुष्य क्यों बार बार यह भूल जाते हैं कि डॉक्टर भी तो निरे मनुष्य ही हैं वे भी परमात्मा परमेश्वर की सिद्ध इच्छा के आगे विवश ही होते हैं, क्योंकि उन्होंने जितना पढ़ा है अथवा अध्ययन किया है उसी के आधार पर तो वे निर्णय ले सकते हैं, उससे ऊपर कि बातें तो वे कल्पना भी नहीं कर सकते परन्तु हमारा परमेश्वर तो सृजनहार है, उसका ज्ञान तो अगम्य होता है, इसीलिए तो वो हम समस्त आत्माओं का सृजनहार परम आत्मा है उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है, अगर परमेश्वर ने चाहा तो कोई तुम्हारे प्राणों को तुमसे छीन ही नहीं सकता और अगर वो चाहे तो तुम्हें पल भर में भी चंगा कर सकते हैं, परंतु उसके लिए हमें उस पर सम्पूर्ण आत्मा से किंचित मात्र भी संदेह किये बगैर भरोसा रखना होगा अर्थात विश्वास करना होगा ।।।
कुछ लोगों का भरोसा भी बड़े ही अजीब तरह का होता हैं जैसे की एक जवान भाई के शहर में एक बहुत बड़ा प्रचारक आया था और उस आत्मिक सभा में वो जवान भी वचन सुनने के लिए गया हुआ था उस दिन उस प्रचारक ने विश्वाश के बारे में सिखाया और कहा अगर तुम इस पहाड़ से कहोगे उखड़ जा और समुद्र में जा पड़ और मन में संदेह ना करे तो तुम्हारे लिए वैसा ही हो जाएगा बस फिर क्या था वो जवान भी पूरे विश्वास से भर गया और घर लौट कर आया उसके दरवाजे के ठीक साम्हने एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ लागा था जो कि उसके लिए बहुत सी बातों के लिए अड़चन और रुकावट का कारण था परंतु वो उसे काट भी नही सकता था सो उसने जो वचन को सुनकर आया था उसी के अनुसार आंखें बंद करके उस पेड़ से कहा येशू मसीह के नाम से उखड़ जा और सड़क के उस पार जा गिर फिर उसने आंख खोलकर क्या देखा पेड़ अपनी जगह से हिला भी नहीं ,क्या आप जानते हैं उस जवान ने अगले ही पल क्या कहा था ???
उस युवक ने झुंझलाते हुए जोर से चिल्लाकर कहा था, अरे मुझे तो पहिले से सब पता था, अरे मैं तो पहिले से ही जनता था कि ऐसा कुछ भी नही होने वाला है देखो जैसा बार बार मेरे मन में आ रहा था वैसा ही हुआ न सब बेवक़ूफ़ बनाते हैं, आज के बाद में किसी ईश्वर को नहीं मानूंगा!?????
अतिप्रिय बन्धुओं इस जगत में हम ऐसे ही विश्वासियों को अधिक से अधिक देखने पाएंगे इसीलिए इस जगत में एक सच्चे विश्वासी को ढूंढ कर भी पाना बहुत मुश्किल काम होता है, अर्थात वे विश्वासी जो विश्वास की आत्मा अर्थात पवित्रात्मा से भर कर परमेश्वर की सिद्ध इच्छा के अनुसार अपने सृजनहार से जुड़े हुए हों और जो सिर्फ परमेश्वर की आत्मा के चलाये चलते हैं, जिन्हें इस जगत में परमेश्वर के पुत्र के सदृश्य माना गया है, (रोमियों 8 :14)।।।
जिनके जीवन में असंभव शब्द के लिए कोई स्थान ही नहीं होता परन्तु उसी समय परम प्रधान परमेश्वर की सिद्ध इच्छा भी सर्वोपरि होती है, क्योंकि ऐसे लोग भली भांति जानते हैं कि परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता है परन्तु पवित्रात्मा के द्वारा अपने सृजनहार परमेश्वर की सिद्ध इच्छा को भी अपने अनुभव से जान कर सिर्फ उसे ही पूरा करने के लिए जीते हैं इसीलिए परमेश्वर स्वयं भी इनसे प्रसन्न रहते हैं। (रोमियों की पत्री 12:1-2 अत्याधिक ध्यान पूर्वक अध्ययन करें)lll
प्रिय जनों इसीलिए तो परम प्रधान, परमात्मा परमेश्वर, का सनातन सत्य और जीवंत वचन उदघोषणा करता है कि- *और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले को विश्वास करना चाहिए कि वो है और अपने मांगने वालों को प्रतिफल देता है।।।*
*(इब्रानियों 11:6)*
और यह भी कि -
*पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करने वाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा। वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है॥*
*(याकूब 1:6-8)*
परन्तु वही दूसरी ओर स्वयं परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य ओर जीवंत वचन यह भी उदघोषणा करता है कि - *और मनों का जांचने वाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता है।*
*(रोमियो 8:27)*
*और हमें उसके साम्हने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो हमारी सुनता है।*
*(1 यूहन्ना 5:14)*
अर्थात कुलमिलाकर उपरोक्त वचन के अनुसार हम निश्चित तौर पर यह कह सकते हैं कि, अपने सम्पूर्ण समर्पण के द्वारा विश्वास की आत्मा अर्थात उस पवित्रात्मा को भली भांति प्राप्त करना नितांत आवश्यक है जो हमें परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर की सिद्ध इच्छा की अनुभूति कराता है,
क्योंकि पवित्रात्मा के बारे में परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य ओर जीवंत वचन भी अति स्पष्ट रीति से यह उदघोषणा करता है कि - *मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उस में है? वैसे ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा। परन्तु हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।*
*(1 कुरिन्थियों 2:11-12)*
प्रियजनों अतिस्पष्ट है कि परमेश्वर की सिद्ध इच्छा एवं उसकी गूढ़ बातों को जानने के लिए हमें परमेश्वर का आत्मा अर्थात पवित्रात्मा को विधिवत रूप से पाना ही होगा ओर जब भी हम पवित्रात्मा में होकर प्रार्थना करते हैं तो हमारी सुनी जाती है क्योंकि उस दरमियान में हम परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर की सिद्ध इच्छा के अनुसार प्रार्थना कर रहे होते हैं और ध्यान देने योग्य बात तो ये है की प्रभु येशु पर विश्वास करने वाले मनुष्य तो बहुतेरे हैं उनकी अपनी बुद्धि और मानसिकता के अनुसार वे प्रभु को जानते और मानते तो हैं भक्ति भी करते हैं परन्तु पवित्रात्मा के आभाव में भक्ति की शक्ति को नहीं जान पाते हैं यही लोग हैं जो मसीही कहलाने के बावजूद मन्त्र तंत्र, टोना टोटका, झाड़ा फूंकी पर भी विश्वास करते हैं सुरक्षा हेतु काला टीका और काला धागा वगैरह बांधते फिरते हैं ये लोग परमेश्वर के वचन और प्रार्थना के प्रति उदासीन पाए जाते हैं क्योंकि ये प्रभु येशु पर विश्वास तो करते हैं परन्तु इनमें विश्वास
नहीं होता पढ़कर आपको अजीब सा महसूस हो रहा होगा क्योंकि यहाँ दो तरह के विश्वास को हम देखते हैं विश्वास करना और इनमें परमेश्वर का विश्वास होना अर्थात भौतिक विश्वास और आत्मिक पारलौकिक विश्वास एक माता के गर्भ से सीखकर आते हैं अनुवांशिक है और एक परमेश्वर के द्वारा पवित्रात्मा से पाते हैं इनमें अंतर ना कर पाने के कारण ही अधिकांशतः मनुष्य मतिभ्रमित अर्थात कन्फ्यूज्ड हो जाता है, क्योंकि परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करता है कि - *और इसलिये कि हम में वही विश्वास की आत्मा है, (जिस के विषय मे लिखा है, कि मैं ने विश्वास किया, इसलिये मैं बोला) सो हम भी विश्वास करते हैं, इसी लिये बोलते हैं।*
*(2 कुरिन्थियों 4:13)*
यद्यपि बहुतों को मेरी बातें पचेगी नहीं हाजमोला खाने पर भी परन्तु प्रियजनों उपरोक्त वचन मेरे नहीं हैं निःसंदेह हमारे सृजनहार परमेश्वर के ही हैं lll
अतिप्रिय बन्धुओं इसीलिए आज हम स्वयं खुद को परख कर देखें कि हमने *परमेश्वर का विश्वास* अर्थात *विश्वास का आत्मा* पाया लिया है अथवा नहीं क्योंकि यह सिर्फ और सिर्फ पवित्रात्मा को विधिवत रूप से पाने के द्वारा अर्थात पवित्रात्मा का बपतिस्मा लेने के पश्चात् ही हममें आता है, जो कि हरेक स्थिति परिस्थितियों में भी हममें स्थिर बना रहता है घटता बढ़ता नहीं वरन हमारे परमेश्वर के प्रति सच्चे प्रेम के साथ साथ प्रत्येक मनुष्य में स्थिर होता है इसी विश्वास के परिमाण के अनुसार हम हमारे जीवनों में और हमारे द्वारा दूसरों के जीवनों में प्रत्यक्छ रीति से परिवर्तन देख सकते हैं इस विश्वास के बगैर हम किसी भी परमेश्वरीय परालौकिक बातों को देखने और जानने में असक्षम होते हैं यही है वो मूल कारण कि अधिकांशतः मनुष्य पारलौकिक बातों के प्रति उदासीनता दिखाता है, क्योंकि ये बातें उनके लिए अविश्वसनीय होती हैं उसके तर्क शांति या बुद्धिमत्ता के बाहर की बातें होती हैं।।।
परंतु अफसोस तो सिर्फ इस बात का है कि आज के विश्वासियों को तो छोड़ो इस जगत के 85% सेवकों में भी हम ऐसा विश्वास नहीं पाते इसे विडंबना ही कहें या कुछ और परंतु जब प्रचारक ही विश्वास में मंदा अथवा अल्प विश्वासी या अविश्वासी अर्थात विश्वास का आत्मा को प्राप्त ना किया हो तो नाम धारी मसीहियों (विश्वासियों) की क्या बिसात, बड़े ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है जब एक मसीही कहलाकर भी आप अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए झाड़ा फूंकी करने वाले बाबाओं के चक्कर लग जाते हैं और मझारों में मरे हुए निरे मनुष्यों की कब्रों पर चादर चढ़ाते हैं कुछ भी चमत्कार होने के लिए और किसी की नजर से बचाने या नजर उतारने के लिए काला धागा बांधते हो या काला टीका लगाते हो और रविवार को चर्च में जाकर प्रभु भोज में भी शामिल हो जाते हो अत्याधिक वेदना दायक होता है यह दृश्य एक ही पात्र से विष और अमृत दोनों का पान करने कि कोशिश आप लोग खुद ही विचार करें क्या यह उचित है ???
हम यह भी विचार करें कि कितने प्रचारक हैं जिन्हें सचमुच में चुना है, और परमेश्वर ने ही भेजा है, यहां तो हर एक जन कहता है कि मैं तो भेजा हुआ हूँ ???
परंतु विचार करें क्या अविश्वास ओर संदेह प्रगट करने के लिए आप भेजे गए हैं ??
दो नाव पर खुद सवार होकर दूसरों को भी सवारी करवाने के लिए ही आप भेजे गए हैं??? क्या परमेश्वर के अतिरिक्त किसी और पर भी भरोसा रखना सिखाने के लिए आप भेजे गए हैं ???
क्या अपने कभी सोचा कि आपकी भेड़ें अन्यत्र जाती ही क्यों हैं ???
क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके पास पर्याप्त मात्रा में भेड़ों को खिलाने के लिए चारा ही नहीं है ???
या उन चारों में भले चंगे और पुष्ट रहने की सामर्थ नहीं है???
अथवा आपके चारे पर भेड़ों को भरोसा ही नहीं रहा इसलिए वे अन्यत्र चारा पाने के लिए भटकती हैं और आप अपनी भेड़ों पर ही दोष मढ़ रहे हैं ???
विचार करके देखें क्योंकि परमेश्वर का वचन तो स्पष्ट रीति से यह उदघोषणा करता है कि - *क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा। फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें? और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें? और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें? और यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें? जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सुहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं। सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।*
*(रोमियो 10:13-15, 17 ।।।)*
प्रचारक बिना क्योंकर सुनें, और यदि भेजे न जायें, तो क्योंकर प्रचार करें???
इसका रहस्य तो बड़ा ही गंभीर है कितनों ने इस रहस्य को गम्भीरतापूर्वक समझा है ये तो वे स्वयं ही जानते हैं अथवा उनका सृजनहार परमेश्वर परमेश्वर ही जानता है।।।
परंतु मै तो देखता हूँ कि विश्वासियों से अधिक प्रचारक सिर्फ अपनी रोजी रोटी के लिए इस भले कार्य में उतर आये हैं और वो भी यह कहते हुए की परमेश्वर भला है वो व्यवस्था करनेहारा परमेश्वर है ।।।
ठीक है भाई मान लिया आप परमेश्वर कि दया और अनुग्रह के पात्र हैं, परंतु स्मरण रहे न्याय के दिन आपको लेखा तो देना ही पड़ेगा कोई भी न्याय कि इस प्रक्रिया से बच नहीं पायेगा क्योंकि स्वयं परमेश्वर आपसे एक एक आत्माओं का हिसाब मांगेगा।।।
इससे अधिक कुछ भी मुझे कहने का अधिकार नहीं है।।।
परमेश्वर अपने इस संदेश के द्वारा आपको औऱ आपके परिवार को बहुतायक की आशीष दे ।।।आमीन फिर आमीन।।।
(मरकुस 5:34)
*प्रभु यीशु ने उस से कहा; पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह॥*
*अतिप्रिय बन्धुओं परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिए उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होती रहे क्योंकि वो भला है उसकी करुणा सदा की है।।।*
प्रियजनों पवित्र शास्त्र बाइबिल में हम पाते हैं कि जब सृजनहार प्रभु परमेश्वर येशु मसीह इस जगत में सदेह विचरण कर रहे थे उस दरमियान में एक अत्याधिक पीढ़ा दायक असाध्य रोग से ग्रसित एक स्त्री का वर्णन पाते हैं, जिसको 12 वर्षो से लहू बहने का रोग था, उस ने अपना सारा धन अपने इलाज के लिए खर्च कर दिया अब इस जगत से उसे न तो कोई उम्मीद बाकी रह गयी थी न ही इतना धन कि आगे को वह कुछ कर सके, उसका इस जगत से भरोसा पूरी तरह से टूट चूका था, उसने सृजनहार परमात्मा परमेश्वर प्रभु येशू मसीह के बारे में काफी कुछ सुन रखा था, इसीलिए उसे प्रभु येशू पर ही अब पूरा भरोसा था वरन उसने जो कुछ भी सुन रखा था उसके अनुसार तो उसमें यहाँ तक विश्वास आ गया था कि मैं यदि प्रभु येशु मसीह के वस्त्र के छोर को ही छू लूंगी तो मैं चंगी हो जाऊंगी।।।
विडंबना ही कहलो या कुछ और कि आज के इस अंतिम युग में हमें ऐसे अनेकों मनुष्य मिल जायेंगे जिनके साम्हने साक्षात रूप से जीवित प्रभु यीशु आकर भी उन्हें छू लें तो भी वे अपने ह्रदय कि कठोरता अर्थात अविश्वास और संदेह के चलते चंगे न होंगे क्योंकि वे तब भी संदेह करेंगे कि सचमुच ऐसा भी हो सकता है क्या??? नहीं यार मेरी व्याधि तो असाध्य है इतनी बड़ी कि बड़े बड़े डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं, अब तो मेरी म्रत्यु निश्चित है, अब मुझे स्वयं परमात्मा भी उतर आये तो नहीं बचा सकते क्योंकि जब बड़े बड़े डॉक्टरों ने जो डिक्लेयर (घोषित) कर दिया है तो हमें कोई नहीं बचा सकता इत्यादि इत्यादि ।।।
प्रियजनों यहाँ पर मनुष्य क्यों बार बार यह भूल जाते हैं कि डॉक्टर भी तो निरे मनुष्य ही हैं वे भी परमात्मा परमेश्वर की सिद्ध इच्छा के आगे विवश ही होते हैं, क्योंकि उन्होंने जितना पढ़ा है अथवा अध्ययन किया है उसी के आधार पर तो वे निर्णय ले सकते हैं, उससे ऊपर कि बातें तो वे कल्पना भी नहीं कर सकते परन्तु हमारा परमेश्वर तो सृजनहार है, उसका ज्ञान तो अगम्य होता है, इसीलिए तो वो हम समस्त आत्माओं का सृजनहार परम आत्मा है उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है, अगर परमेश्वर ने चाहा तो कोई तुम्हारे प्राणों को तुमसे छीन ही नहीं सकता और अगर वो चाहे तो तुम्हें पल भर में भी चंगा कर सकते हैं, परंतु उसके लिए हमें उस पर सम्पूर्ण आत्मा से किंचित मात्र भी संदेह किये बगैर भरोसा रखना होगा अर्थात विश्वास करना होगा ।।।
कुछ लोगों का भरोसा भी बड़े ही अजीब तरह का होता हैं जैसे की एक जवान भाई के शहर में एक बहुत बड़ा प्रचारक आया था और उस आत्मिक सभा में वो जवान भी वचन सुनने के लिए गया हुआ था उस दिन उस प्रचारक ने विश्वाश के बारे में सिखाया और कहा अगर तुम इस पहाड़ से कहोगे उखड़ जा और समुद्र में जा पड़ और मन में संदेह ना करे तो तुम्हारे लिए वैसा ही हो जाएगा बस फिर क्या था वो जवान भी पूरे विश्वास से भर गया और घर लौट कर आया उसके दरवाजे के ठीक साम्हने एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ लागा था जो कि उसके लिए बहुत सी बातों के लिए अड़चन और रुकावट का कारण था परंतु वो उसे काट भी नही सकता था सो उसने जो वचन को सुनकर आया था उसी के अनुसार आंखें बंद करके उस पेड़ से कहा येशू मसीह के नाम से उखड़ जा और सड़क के उस पार जा गिर फिर उसने आंख खोलकर क्या देखा पेड़ अपनी जगह से हिला भी नहीं ,क्या आप जानते हैं उस जवान ने अगले ही पल क्या कहा था ???
उस युवक ने झुंझलाते हुए जोर से चिल्लाकर कहा था, अरे मुझे तो पहिले से सब पता था, अरे मैं तो पहिले से ही जनता था कि ऐसा कुछ भी नही होने वाला है देखो जैसा बार बार मेरे मन में आ रहा था वैसा ही हुआ न सब बेवक़ूफ़ बनाते हैं, आज के बाद में किसी ईश्वर को नहीं मानूंगा!?????
अतिप्रिय बन्धुओं इस जगत में हम ऐसे ही विश्वासियों को अधिक से अधिक देखने पाएंगे इसीलिए इस जगत में एक सच्चे विश्वासी को ढूंढ कर भी पाना बहुत मुश्किल काम होता है, अर्थात वे विश्वासी जो विश्वास की आत्मा अर्थात पवित्रात्मा से भर कर परमेश्वर की सिद्ध इच्छा के अनुसार अपने सृजनहार से जुड़े हुए हों और जो सिर्फ परमेश्वर की आत्मा के चलाये चलते हैं, जिन्हें इस जगत में परमेश्वर के पुत्र के सदृश्य माना गया है, (रोमियों 8 :14)।।।
जिनके जीवन में असंभव शब्द के लिए कोई स्थान ही नहीं होता परन्तु उसी समय परम प्रधान परमेश्वर की सिद्ध इच्छा भी सर्वोपरि होती है, क्योंकि ऐसे लोग भली भांति जानते हैं कि परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता है परन्तु पवित्रात्मा के द्वारा अपने सृजनहार परमेश्वर की सिद्ध इच्छा को भी अपने अनुभव से जान कर सिर्फ उसे ही पूरा करने के लिए जीते हैं इसीलिए परमेश्वर स्वयं भी इनसे प्रसन्न रहते हैं। (रोमियों की पत्री 12:1-2 अत्याधिक ध्यान पूर्वक अध्ययन करें)lll
प्रिय जनों इसीलिए तो परम प्रधान, परमात्मा परमेश्वर, का सनातन सत्य और जीवंत वचन उदघोषणा करता है कि- *और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले को विश्वास करना चाहिए कि वो है और अपने मांगने वालों को प्रतिफल देता है।।।*
*(इब्रानियों 11:6)*
और यह भी कि -
*पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करने वाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा। वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है॥*
*(याकूब 1:6-8)*
परन्तु वही दूसरी ओर स्वयं परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य ओर जीवंत वचन यह भी उदघोषणा करता है कि - *और मनों का जांचने वाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता है।*
*(रोमियो 8:27)*
*और हमें उसके साम्हने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो हमारी सुनता है।*
*(1 यूहन्ना 5:14)*
अर्थात कुलमिलाकर उपरोक्त वचन के अनुसार हम निश्चित तौर पर यह कह सकते हैं कि, अपने सम्पूर्ण समर्पण के द्वारा विश्वास की आत्मा अर्थात उस पवित्रात्मा को भली भांति प्राप्त करना नितांत आवश्यक है जो हमें परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर की सिद्ध इच्छा की अनुभूति कराता है,
क्योंकि पवित्रात्मा के बारे में परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य ओर जीवंत वचन भी अति स्पष्ट रीति से यह उदघोषणा करता है कि - *मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उस में है? वैसे ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा। परन्तु हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।*
*(1 कुरिन्थियों 2:11-12)*
प्रियजनों अतिस्पष्ट है कि परमेश्वर की सिद्ध इच्छा एवं उसकी गूढ़ बातों को जानने के लिए हमें परमेश्वर का आत्मा अर्थात पवित्रात्मा को विधिवत रूप से पाना ही होगा ओर जब भी हम पवित्रात्मा में होकर प्रार्थना करते हैं तो हमारी सुनी जाती है क्योंकि उस दरमियान में हम परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर की सिद्ध इच्छा के अनुसार प्रार्थना कर रहे होते हैं और ध्यान देने योग्य बात तो ये है की प्रभु येशु पर विश्वास करने वाले मनुष्य तो बहुतेरे हैं उनकी अपनी बुद्धि और मानसिकता के अनुसार वे प्रभु को जानते और मानते तो हैं भक्ति भी करते हैं परन्तु पवित्रात्मा के आभाव में भक्ति की शक्ति को नहीं जान पाते हैं यही लोग हैं जो मसीही कहलाने के बावजूद मन्त्र तंत्र, टोना टोटका, झाड़ा फूंकी पर भी विश्वास करते हैं सुरक्षा हेतु काला टीका और काला धागा वगैरह बांधते फिरते हैं ये लोग परमेश्वर के वचन और प्रार्थना के प्रति उदासीन पाए जाते हैं क्योंकि ये प्रभु येशु पर विश्वास तो करते हैं परन्तु इनमें विश्वास
नहीं होता पढ़कर आपको अजीब सा महसूस हो रहा होगा क्योंकि यहाँ दो तरह के विश्वास को हम देखते हैं विश्वास करना और इनमें परमेश्वर का विश्वास होना अर्थात भौतिक विश्वास और आत्मिक पारलौकिक विश्वास एक माता के गर्भ से सीखकर आते हैं अनुवांशिक है और एक परमेश्वर के द्वारा पवित्रात्मा से पाते हैं इनमें अंतर ना कर पाने के कारण ही अधिकांशतः मनुष्य मतिभ्रमित अर्थात कन्फ्यूज्ड हो जाता है, क्योंकि परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करता है कि - *और इसलिये कि हम में वही विश्वास की आत्मा है, (जिस के विषय मे लिखा है, कि मैं ने विश्वास किया, इसलिये मैं बोला) सो हम भी विश्वास करते हैं, इसी लिये बोलते हैं।*
*(2 कुरिन्थियों 4:13)*
यद्यपि बहुतों को मेरी बातें पचेगी नहीं हाजमोला खाने पर भी परन्तु प्रियजनों उपरोक्त वचन मेरे नहीं हैं निःसंदेह हमारे सृजनहार परमेश्वर के ही हैं lll
अतिप्रिय बन्धुओं इसीलिए आज हम स्वयं खुद को परख कर देखें कि हमने *परमेश्वर का विश्वास* अर्थात *विश्वास का आत्मा* पाया लिया है अथवा नहीं क्योंकि यह सिर्फ और सिर्फ पवित्रात्मा को विधिवत रूप से पाने के द्वारा अर्थात पवित्रात्मा का बपतिस्मा लेने के पश्चात् ही हममें आता है, जो कि हरेक स्थिति परिस्थितियों में भी हममें स्थिर बना रहता है घटता बढ़ता नहीं वरन हमारे परमेश्वर के प्रति सच्चे प्रेम के साथ साथ प्रत्येक मनुष्य में स्थिर होता है इसी विश्वास के परिमाण के अनुसार हम हमारे जीवनों में और हमारे द्वारा दूसरों के जीवनों में प्रत्यक्छ रीति से परिवर्तन देख सकते हैं इस विश्वास के बगैर हम किसी भी परमेश्वरीय परालौकिक बातों को देखने और जानने में असक्षम होते हैं यही है वो मूल कारण कि अधिकांशतः मनुष्य पारलौकिक बातों के प्रति उदासीनता दिखाता है, क्योंकि ये बातें उनके लिए अविश्वसनीय होती हैं उसके तर्क शांति या बुद्धिमत्ता के बाहर की बातें होती हैं।।।
परंतु अफसोस तो सिर्फ इस बात का है कि आज के विश्वासियों को तो छोड़ो इस जगत के 85% सेवकों में भी हम ऐसा विश्वास नहीं पाते इसे विडंबना ही कहें या कुछ और परंतु जब प्रचारक ही विश्वास में मंदा अथवा अल्प विश्वासी या अविश्वासी अर्थात विश्वास का आत्मा को प्राप्त ना किया हो तो नाम धारी मसीहियों (विश्वासियों) की क्या बिसात, बड़े ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है जब एक मसीही कहलाकर भी आप अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए झाड़ा फूंकी करने वाले बाबाओं के चक्कर लग जाते हैं और मझारों में मरे हुए निरे मनुष्यों की कब्रों पर चादर चढ़ाते हैं कुछ भी चमत्कार होने के लिए और किसी की नजर से बचाने या नजर उतारने के लिए काला धागा बांधते हो या काला टीका लगाते हो और रविवार को चर्च में जाकर प्रभु भोज में भी शामिल हो जाते हो अत्याधिक वेदना दायक होता है यह दृश्य एक ही पात्र से विष और अमृत दोनों का पान करने कि कोशिश आप लोग खुद ही विचार करें क्या यह उचित है ???
हम यह भी विचार करें कि कितने प्रचारक हैं जिन्हें सचमुच में चुना है, और परमेश्वर ने ही भेजा है, यहां तो हर एक जन कहता है कि मैं तो भेजा हुआ हूँ ???
परंतु विचार करें क्या अविश्वास ओर संदेह प्रगट करने के लिए आप भेजे गए हैं ??
दो नाव पर खुद सवार होकर दूसरों को भी सवारी करवाने के लिए ही आप भेजे गए हैं??? क्या परमेश्वर के अतिरिक्त किसी और पर भी भरोसा रखना सिखाने के लिए आप भेजे गए हैं ???
क्या अपने कभी सोचा कि आपकी भेड़ें अन्यत्र जाती ही क्यों हैं ???
क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके पास पर्याप्त मात्रा में भेड़ों को खिलाने के लिए चारा ही नहीं है ???
या उन चारों में भले चंगे और पुष्ट रहने की सामर्थ नहीं है???
अथवा आपके चारे पर भेड़ों को भरोसा ही नहीं रहा इसलिए वे अन्यत्र चारा पाने के लिए भटकती हैं और आप अपनी भेड़ों पर ही दोष मढ़ रहे हैं ???
विचार करके देखें क्योंकि परमेश्वर का वचन तो स्पष्ट रीति से यह उदघोषणा करता है कि - *क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा। फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें? और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें? और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें? और यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें? जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सुहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं। सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।*
*(रोमियो 10:13-15, 17 ।।।)*
प्रचारक बिना क्योंकर सुनें, और यदि भेजे न जायें, तो क्योंकर प्रचार करें???
इसका रहस्य तो बड़ा ही गंभीर है कितनों ने इस रहस्य को गम्भीरतापूर्वक समझा है ये तो वे स्वयं ही जानते हैं अथवा उनका सृजनहार परमेश्वर परमेश्वर ही जानता है।।।
परंतु मै तो देखता हूँ कि विश्वासियों से अधिक प्रचारक सिर्फ अपनी रोजी रोटी के लिए इस भले कार्य में उतर आये हैं और वो भी यह कहते हुए की परमेश्वर भला है वो व्यवस्था करनेहारा परमेश्वर है ।।।
ठीक है भाई मान लिया आप परमेश्वर कि दया और अनुग्रह के पात्र हैं, परंतु स्मरण रहे न्याय के दिन आपको लेखा तो देना ही पड़ेगा कोई भी न्याय कि इस प्रक्रिया से बच नहीं पायेगा क्योंकि स्वयं परमेश्वर आपसे एक एक आत्माओं का हिसाब मांगेगा।।।
इससे अधिक कुछ भी मुझे कहने का अधिकार नहीं है।।।
परमेश्वर अपने इस संदेश के द्वारा आपको औऱ आपके परिवार को बहुतायक की आशीष दे ।।।आमीन फिर आमीन।।।