अय्यूब 2 अध्याय – पूरा वचन और विस्तार से व्याख्या
अय्यूब 2 अध्याय – पृष्ठभूमि, सन्देश और आत्मिक शिक्षा
अय्यूब अध्याय 2 बाइबल के सबसे मार्मिक और गहरे अध्यायों में से एक है। इसमें हम देखते हैं कि कैसे परमेश्वर ने शैतान को दूसरी बार अय्यूब की परीक्षा लेने की अनुमति दी, इस बार उसके शरीर पर। यह अध्याय केवल एक शारीरिक पीड़ा की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे विश्वास, धैर्य और समर्पण की असली परीक्षा को प्रकट करता है।
यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि जब एक विश्वासयोग्य जन पर संकट आता है, तब उसका व्यवहार कैसा होना चाहिए। अय्यूब का शरीर घावों से भर गया, लेकिन उसका हृदय परमेश्वर में अडिग रहा। यह भी उल्लेखनीय है कि उसकी पत्नी ने भी उसे धिक्कारा, लेकिन उसने परमेश्वर की निन्दा नहीं की।
इस अध्याय में हमें एक और बात ध्यान देनी चाहिए — अय्यूब के मित्रों का आगमन। वे चुपचाप उसके साथ सात दिन तक बैठे रहे। यह हमें सिखाता है कि दुखी जन के साथ मौन में सहानुभूति जताना कितना शक्तिशाली हो सकता है।
आध्यात्मिक सन्देश: यह अध्याय हमें सिखाता है कि सच्चा विश्वास कठिन परिस्थितियों में ही प्रमाणित होता है। अय्यूब का उदाहरण हमें प्रेरणा देता है कि जब तक जीवन है, हमें परमेश्वर में अडिग रहना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
प्रेरक वाक्य: “क्या हम परमेश्वर के हाथ से केवल भलाई ही लें और बुराई न लें?” (अय्यूब 2:10)
इस अध्याय में शैतान की योजना, मानव पीड़ा, पत्नी की परीक्षा, मित्रों की मौन सहानुभूति और अंत में अय्यूब का परमेश्वर पर अटल विश्वास एक अद्भुत आत्मिक चित्र प्रस्तुत करता है जो आज भी लाखों लोगों के जीवन में प्रेरणा का स्रोत है।
अय्यूब 2 अध्याय – पूरा वचन और विस्तार से व्याख्या
अय्यूब 2 का परिचय: यह अध्याय परमेश्वर द्वारा शैतान को अय्यूब की परीक्षा करने की दूसरी अनुमति देता है। अय्यूब की शारीरिक पीड़ा के बावजूद उसका विश्वास अडिग रहता है। इसमें हम सीखते हैं कि कठिनाइयों में भी विश्वास को कैसे बनाये रखना चाहिए।
अय्यूब 2:1
वचन: फिर एक और दिन यहोवा के पुत्र यहोवा के सम्मुख उपस्थित हुए, और शैतान भी उनके बीच यहोवा के सम्मुख उपस्थित हुआ।
व्याख्या: यह दर्शाता है कि परमेश्वर की सभा में शैतान फिर से उपस्थित होता है, जो मनुष्य को गिराने की योजना बनाता है।
अय्यूब 2:2
वचन: तब यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहाँ से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, पृथ्वी पर इधर-उधर घूमता-फिरता और वहां टहलता हुआ आया हूँ।
व्याख्या: शैतान पृथ्वी पर निरंतर घूमता रहता है, मनुष्यों को फंसाने के लिए अवसर ढूंढता है।
अय्यूब 2:3
वचन: यहोवा ने शैतान से कहा, क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? कि उसके समान खरा और सीधा और परमेश्वर का भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है; और वह अब तक अपनी खराई पर अडिग है, यद्यपि तू ने मुझे उकसाया कि मैं बिना कारण उसको नाश करूं।
व्याख्या: परमेश्वर अय्यूब की भक्ति की प्रशंसा करते हैं, जो कठिनाई के बावजूद अडिग है।
अय्यूब 2:4
वचन: शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, त्वचा के बदले त्वचा; मनुष्य अपना प्राण बचाने के लिये सब कुछ दे देता है।
व्याख्या: शैतान कहता है कि मनुष्य केवल अपने जीवन की सुरक्षा के लिए अच्छा रहता है।
अय्यूब 2:5
वचन: परन्तु अब अपना हाथ बढ़ा कर उसकी हड्डी और मांस को छू, तब वह तेरे मूंह पर तेरी निन्दा करेगा।
व्याख्या: शैतान चाहता है कि अय्यूब की आस्था शारीरिक पीड़ा से टूट जाए।
अय्यूब 2:6
वचन: यहोवा ने शैतान से कहा, देख, वह तेरे वश में है; केवल उसका प्राण बचा रख।
व्याख्या: परमेश्वर शैतान को सीमित करते हैं, वह केवल शरीर को चोट पहुँचा सकता है, लेकिन जीवन नहीं ले सकता।
अय्यूब 2:7
वचन: तब शैतान यहोवा के सम्मुख से निकलकर अय्यूब को पांव से ले कर सिर तक दुखदाई फोड़ों से पीड़ित करने लगा।
व्याख्या: अय्यूब की शरीर पर गहरी पीड़ा आई, जो उसकी आस्था की परीक्षा थी।
अय्यूब 2:8
वचन: वह राख में बैठ गया, और एक ठीकरा लेकर अपने को खुजलाने लगा।
व्याख्या: अय्यूब की स्थिति इतनी दयनीय थी कि वह राख में बैठकर ठीकरे से खुद को खुजला रहा था।
अय्यूब 2:9
वचन: तब उसकी पत्नी ने उससे कहा, क्या तू अब तक अपनी खराई पर अडिग है? परमेश्वर की निन्दा कर, और मर जा।
व्याख्या: अय्यूब की पत्नी ने उसे निराश किया, पर अय्यूब ने उसका विरोध किया।
अय्यूब 2:10
वचन: उसने उस से कहा, तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है; क्या हम परमेश्वर के हाथ से सुख लें और दुःख न लें? इन सब बातों में भी अय्यूब के मुँह से कोई पाप नहीं निकला।
व्याख्या: अय्यूब ने कठिनाइयों में भी परमेश्वर पर विश्वास बनाए रखा।
अय्यूब 2:11
वचन: जब अय्यूब के तीन मित्रों, एलीपज तेमानी, और बिल्दद शूही, और सोपर नामाती ने सुना कि उस पर सारी विपत्ति आयी है, तब वे अपने अपने स्थान से चले, और एक दूसरे से मिलकर उसे शांति देने और शोक प्रकट करने को आये।
व्याख्या: अय्यूब के मित्र संकट में उसके पास आए और सहानुभूति दिखाई।
अय्यूब 2:12
वचन: उन्होंने दूर से आंखें उठाकर उसे देखा, पर उसे पहचान न सके; तब वे ऊंचे स्वर से रोए और सब ने अपने वस्त्र फाड़े और अपने सिरों पर आकाश की ओर मिट्टी उड़ाई।
व्याख्या: मित्रों ने उसकी दयनीय दशा देख कर शोक व्यक्त किया।
अय्यूब 2:13
वचन: और सात दिन और सात रात तक उसके संग भूमि पर बैठे रहे, और उस से एक भी बात न कही, क्योंकि उन्होंने देखा कि उसका दुःख बहुत ही बड़ा है।
व्याख्या: मौन में भी मित्रों ने अय्यूब के साथ सहानुभूति जताई।